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ये क्यूँ और कैसे हो गया

हद में रहकर भी बेहद हो गया 

  

था कभी जो नज़रों और ख्वाबों में,

ना जाने अब क्यूँ ओझल हो गया

चाहूँ मैं उसको जितना ज्यादा 

वो दूर क्यूँ मुझसे उतना हो गया

ये क्यूँ और कैसे हो गया

हद में रहकर भी बेहद हो गया

सोचा भूल जाऊँ अब उसे मैं 

पर वो क्यूँ मेरी रूह में बस गया

लौट-लौट कर आती हैं यादें तेरी

क्यूँ हर लम्हा मेरा तेरे नाम हो गया

पाना क्यूँ मेरे लिए तुझको

तन्हा सा इक ख्वाब हो गया

ये इश्क़ हुआ है जो मुझको

ना जाने कब और कैसे हो गया

ये क्यूँ और कैसे हो गया

हद में रहकर भी बेहद हो गया 

हद में रहकर भी बेहद हो गया .....

     मौलिक,अप्रकाशित

      रोहित डोबरियाल

            "मल्हार"

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Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on September 27, 2017 at 8:47pm
सादर धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी# रामबली गुप्ता जी# एवं #hariom जी आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2017 at 11:46am

आदरणीय रोहित भाई , भाव पूर्ण द्विपदियों के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ..   कोशिश कीजिये कि आप किसी विधा मे रचना कर सकें ।

Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 12:03am
निरन्तर सीखने का प्रयास करते रहें रोहित जी
बढियाँ है। बधाई स्वीकारें।सादर
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on September 26, 2017 at 8:51pm

सभी  सुधी जनों का हार्दिक आभार.....आप सभी की अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए किन्तु छान्दसिक विधाओं का ज्ञान न होने के कारण  मै अपनी  किसी भी रचना की विधा बताने में असमर्थ हूँ

Comment by Afroz 'sahr' on September 26, 2017 at 6:24pm
भाई रोहित जी आपके तख़य्युलात अच्छे हैं। बधाईआपको लेकिन आपको ग़ज़ल विधा सीखने की त्वरित आवश्यकता है । आदरणीय समर साहब के मशवरे पर तुरंत अमल करें
Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 5:37pm
जनाब रोहित जी आदाब,अगर ये ग़ज़ल है, तो आपको अभी बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है,ओबीओ पर 'ग़ज़ल की कक्षा'का लाभ लें,इस प्रस्तुति पर बधाई आपको ।
Comment by Mohammed Arif on September 26, 2017 at 10:47am
प्रिय रोहित जी आदाब, अच्छी रचना । यह रचना आपने किस छांदसिक विधान में लिखी है, बताने का कष्ट करें? बाक़ी बधाई स्वीकार करें ।

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