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ग़ज़ल
*****
तेरे दिल को मैं निगाहों में बसा लेता हूँ।
तेरा ख़त जब मैं कलेजे से लगा लेता हूँ

तेरी यादों में छलकती हैं उनींदी आंखें
तेरी यादों में ही मैं गंगा नहा लेता हूँ

दिल में जन्नत का यकीं मेरे उतर आता है
जब तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में हवा लेता हूँ

तुझसे वाबस्ता हैं हाथों की लकीरें मेरी
इन लकीरों से ही अब तेरा पता लेता हूँ

ऐ क़मर ग़म के अंधेरों का मुझे खौफ़ नहीं
चाँद मेरा है उसे छत पे बुला लेता हूँ

-- क़मर जौनपुरी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 19, 2018 at 1:19pm

आ. कमर जौनपुरी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by क़मर जौनपुरी on November 15, 2018 at 8:58am
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब डॉ छोटेलाल सिंह साहब।
खुशी हुई आपसे मिलकर।
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 15, 2018 at 8:39am

आदरणीय क़मर जौनपुरी साहब उम्दा गजल लिखने के लिए दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिए, मेरी भी कर्मभूमि कर्रा कालेज जौनपुर है, आपको पढ़कर बड़ी खुशी मिली

Comment by राज़ नवादवी on November 14, 2018 at 2:49pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर 

Comment by क़मर जौनपुरी on November 14, 2018 at 2:31pm
शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on November 14, 2018 at 12:31pm

प्रयासरत रहें ।

इस मंच पर हर विधा का स्वागत है ।

Comment by क़मर जौनपुरी on November 14, 2018 at 12:26pm
आदाब मोहतरम।हौसला आफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । आपकी इस्लाह मिलती रहेगी और कुछ ग़ज़ल कह पाऊँगा ऐसी उम्मीद है।
इस फोरम में कविताएं भी पोस्ट कर सकता हूँ क्या?
Comment by Samar kabeer on November 14, 2018 at 12:12pm

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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