For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं -रामबली गुप्ता

1222 1222 122

सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं
सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं

बताओ नाम तो उन पर्वतों के
हमारे हौसलों से जो बड़े हैं

नहीं हैं नैन ये गर सच कहूँ तो
सुघर चंदा में दो हीरे जड़े हैं

जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें
नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं

ये सच है कर्मशीलों के लिए तो
सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं

ये दिल के घाव अब तक हैं हरे क्यों
यकीनन शूल शब्दों के गड़े हैं

उन्हीं ने आँधियों के रुख हैं मोड़े
'बली' जो सामने इनके अड़े हैं

रचनाकार-रामबली गुप्ता

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1140

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 11, 2020 at 9:13pm

जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें। सादर। 

Comment by रामबली गुप्ता on July 11, 2020 at 12:56pm

धन्यवाद सुरेन्द्र नाथ जी। कर लिया है गौर।

Comment by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:54pm

आद0 रामबली जी सादर अभिवादन। हिंदी उर्दू शब्दो से मिश्रित शब्दों से उम्दा ग़ज़ल कही है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये। आद0 भसीन साहब की टिप्पणियों पर भी गौर कीजिए।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 8, 2020 at 4:02pm

आदरणीय रामबली गुप्ता साहिब, नमस्कार। जनाब, मुझे आपकी पहली टिप्पणी से लगा आप नाराज़ हो गए हैं। लेकिन दूसरी टिप्पणी से लगा कि आप वाक़ई चर्चा करना चाहते हैं, इसलिए दोबारा उपस्थित हुआ हूँ। जी 'मधु' शब्द मुझे इसलिए खटका था क्यूँकि उस मिसरे को बोलने में अटकाव महसूस हुआ ('मधु' बहुत फ़ुर्ती से बोलना पड़ा, एक double-take करना पड़ा) जो कि ग़ज़ल के बाक़ी मिसरों में नहीं है। मेरी जानकारी के अनुसार जिस शब्द के उच्चारण में दो लघु अक्षर अलग-अलग उच्चारित होते हों उसे 11 के वज़्न पर ही लेना चाहिए, 2 के वज़्न पर नहीं। हुज़ूर, 'मधुशाला' पर ग़ज़ल विधा के नियम लागू नहीं होते हैं। और आपका ये शे'र ज़रूर हिंदी और संस्कृतनिष्ठ शब्दों से युक्त है, लेकिन ऐसा तो नहीं है कि ग़ज़ल में कहीं उर्दू का कोई शब्द प्रयोग ही न हुआ हो, उदाहरण के तौर पर हौसला (अरबी), यक़ीनन (अरबी), रुख़ (फ़ारसी)। बाक़ी मैं न तो कोई expert हूँ और न ही purist, इसलिए अगर आप मेरी बातों से असहमत हैं तो कोई बात नहीं।

Comment by रामबली गुप्ता on July 8, 2020 at 1:29am

ऐसी कोई बात नहीं है आदरणीय रवि भसीन जी। आपने कोई दखल नहीं दिया है बल्कि ओ बी ओ की परंपरा का ही निर्वहन किया है और न ही मैंने आपकी टिप्पणी का कोई बुरा नहीं माना है। आप बेबाक टिप्पणी लिखें मैं किंचित विचलित न होऊँगा बल्कि आपकी बातों को गुनूँगा। वास्तव में उस मिसरे में आप 'मधु' से संतुष्ट नहीं हो पा रहे हैं और मैं 'लब' से जबकि पूरा शे'र हिंदी के संस्कृतनिष्ठ शब्द युक्त है। मैं यह भी नहीं समझ पाया कि आपको मधु शब्द में आपको क्या आपत्ति है जबकि पूरी मधुशाला ही मधु से मधुमय है।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 8, 2020 at 12:40am

आदरणीय रामबली गुप्ता जी, मैं दरअस्ल मिस्रा ये तजवीज़ करना चाहता था:

1222 1222 122

नहीं हैं लब शहद के वो घड़े हैं

ग़लती से मूल शेर से लिया हुआ 'मधु' लिखा गया।

ठीक है जनाब, आप अपना शे'र वैसे ही रखिये जैसे आपको अच्छा लगता है। दख़ल देने के लिए माज़रत। सादर

Comment by रामबली गुप्ता on July 7, 2020 at 10:08pm

आदरणीय दयाराम भाई जी हार्दिक आभार

Comment by Dayaram Methani on July 7, 2020 at 8:27pm

सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं
सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं......अति सुुंदर मुखड़ा।

जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें
नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं........लाजवाब।

ये सच है कर्मशीलों के लिए तो
सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं........शाशवत सत्य।

आदरणीय रामबली गुप्ता जी, अति सुंदर गज़ल के लिए बधाई।

Comment by रामबली गुप्ता on July 7, 2020 at 5:58pm

भाई लक्ष्मण धामी जी हार्दिक आभार

Comment by रामबली गुप्ता on July 7, 2020 at 5:55pm

आदरणीय रवि भसीन जी प्रशंसा के लिएसादर धन्यवाद।आपने जो मिसरा सुझाया है वो बह्र में नहीं है। मेरा मिसरा पूरी तरह बह्र में है तथा वाक्य विन्यास सौंदर्य एवं कथ्य के दृष्टिकोण से भी दुरुस्त है। मधु आपको क्यों खटक रहा है? स्पष्ट करें तो आगे चर्चा हो।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service