आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ ग्यारहवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
18 जुलाई 2020 दिन शनिवार से 19 जुलाई 2020 दिन रविवार तक
इस बार के छंद हैं -
आल्हा छंद और सार छंद
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
आल्हा छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...
सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 18 जुलाई 2020 दिन शनिवार से 19 जुलाई 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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"भारत के जवान"
संभाला है झट से मोर्चा, हुआ शत्रु का ज्योंही भान।
उछल उछल के कूद पड़े हैं, भरी हुई बन्दूकें तान।
नस नस इनकी फड़क उठी है, करने रिपु का शोणित पान।
झपट पड़े हैं क्रुद्ध सिंह से, भारत के ये वीर जवान।।
रिपु मर्दन का भाव भरा है, इनकी आँखों में अति क्रूर।
गर्ज मात्र ही सुनकर जिनकी, अरि का टूटे सकल गरूर।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, दृढ़ निश्चय कर जो तैयार।
दुश्मन के छक्के छुट जायें, सुन कर के उनकी हूँकार।।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय बासुदेव भाईजी
संभाला है झट से मोर्चा, हुआ शत्रु का ज्योंही भान।
उछल उछल के कूद पड़े हैं, भरी हुई बन्दूकें तान।.
....इन दो पँक्तियों मे ही चित्र को पूरी तरह शाब्दिक कर दिया आपने। अच्छी ओजपूर्ण छंद के लिए हृदय से बधाई॥
आद0 बासुदेव अग्रवाल नमन जी सादर अभिवादन। चित्रानुकूल बेहतरीन सृजन पर बधाई स्वीकार कीजिये
आ. भाई बासुदेव जी, चित्रानुकूल उत्तम छन्द हुए हैं। हार्दिक बधाई ।
आदरणीय बासुदेव जी सादर नमन, उत्तम छन्द सृजन के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय बासुदेव शरण अग्रवाल जी,
आपके प्रयास पर मन मुग्ध है. रचनाकर्म तथा अभ्यास बना रहे.
शुभातिशुभ
सादर
आल्हा छन्द
भारत भू की रक्षा की खातिर, सदा रहें मन से तैयार
दुश्मन की छाती पर कर दें, पड़े न खाली इनका वार
हाथों में बंदूकें हों या, साथ न चाहे हो हथियार
थर-थर थर-थर दुश्मन काँपे, भरते हैं ये जब हुंकार।
बार-बार दुश्मन ने घेरा, लेकिन चला न उसका जोर
सिंह हमारे टूट पड़े जब , गया भागता वह उस ओर
मुँह की खानी पड़ी उसे तब, शांत हुआ सब उसका शोर
आँख उठाकर फिर यदि देखा, उसे बनादेंगे हम मोर।
केवल सीमा की ही चिंता, नहीं रहा है अपना काम
घर के अंदर यदि घाती हो, उसको भी देते अंजाम
विपदा यदि जनमानस को हो, सेवा करते सुबहो शाम
बाढ़ घिरे या धरती काँपे, सैनिक ही देता आराम।
हर आफत में आगे बढ़कर, सेवा करती दिल में ठान
सेना पर विश्वास करें हम, तभी बढ़ेगा उसका मान
सैनिक रक्षक हैं सेवक हैं, उनसे रहे देश की शान
उनका आदर सभी करें बस, करें नहीं चाहे गुणगान।
मौलिक एवं अप्रकाशित
आ. भाई सतविन्द्र जी, चित्रानुरूप सुन्दरतम छंद हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय धामी जी, सादर नमन। प्रयास के अनुमोदन एवं उत्साहवर्धनार्थ सादर आभार
आदरणीय सतविन्द्र भाईजी
बहुत सुंदर चित्र को परिभाषित करती इस रचना के लिए हृदय से बधाई
सादर आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी!
आदरणीय सतविन्द्र भाई, एक संतुलित तथा सधी हुई रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद.
आपने सैनिकों के सम्मान में बहुत ही सार्थक पंक्तियाँ लिखी हैं.
अलबत्ता, पहली पंक्ति के प्रथम चरण में दो मात्रा भूलवश बढ़ गयी है. सुधार लीजिएगा.
शुभातिशुभ
सादर
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