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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-65 (विषय: "उम्मीद का दामन")

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-65
विषय: "उम्मीद का दामन"
अवधि : 30-08-2020 से 31-08-2020
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

विषम परिस्थितियों में उम्मीद का दामन थामे रखना। बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया दी। 

आदरणीया विभा जी

प्राकृतिक आपदाओं और मनुष्य की सकारात्मक उर्जा के बीच संवाद के माध्यम से प्रदत्त विषय को सुन्दरता से उठाया है । हार्दिक बधाई। अंत में कुछ स्पष्टता की कमी महसूस हुई

अच्छा प्रयास है आ० विभा रानी श्रीवास्तव जी, लेकिन जैसा कि सुधि साथियों ने इशारा किया है कि रचना अभी और मेहनत मांग रही है. सुदूर अमेरिका से इस आयोजन में शमूलियत के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई. 

               हिम्मत     

"नेहा ,यार लगता है हम कछ जल्दी ही आ गए,तू बैठ मैं कॉफी लेकर आती हूँ," ऋचा ने कहा ।

"ठीक है मैं यहीं बैठती हूँ पर तू कॉफ़ी लेकर जल्दी आना! किसी से बातों में मत लग जाना," नेहा ने उसे छेड़ते हुए कहा ।

ऋचा का इंतजार करते करते वो कब अतीत की यादों में खो गई उसे पता ही नहीं चला........

"नेहा को कैंसर है ," डॉक्टर ने रिपोर्ट देखते हुए कहा। 

" क्या ?!! ... माँ ये सुनकर स्तब्ध रह गई और वहाँ कुर्सी पर धम्म से बैठ गईं। 

नेहा को बाहर जब नर्स से पता चला तो उसके पैरों तले तो मानो ज़मीन ही खिसक गई और वह वहीं पर बेहोश हो गई। 

जब उसे होश आया तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ; वो तो बस लगातार रोए जा रही थी।  

"माँ मैं अब नहीं बचूँगी!.... मैं अब बस कुछ दिन की मेहमान हूँ! मैं अपने अंतिम दर्द से भरे दिन कैसे काटूँगी ?...... मैं ये सब तकलीफ़ कैसे झेल पाऊँगी ?" 

"नेहा बेटा!देख ऐसे मत बोल मेरी बच्ची!अगर तू हिम्मत हार जाएगी तो मुझे कौन संभालेगा ? तू तो मेरा स्ट्रांग बच्चा है ना!तू बिलकुल चिंता मत कर सब कुछ ठीक हो जाएगा, डॉक्टर ने कहा है कि "नेहा का कैंसर अभी पहली स्टेज में है इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है,ये पूरी तरह से ठीक हो सकता हो,बस आपको लगकर इलाज कराना पड़ेगा।"   

"पर माँ मेरी पढ़ाई का क्या होगा ? मेरे करियर का क्या होगा ? क्या मैं पहले की तरह म्यूज़िक कॉम्पिटिशन में भाग ले पाऊँगी ? "

" नेहा सब हो जाएगा! तू बस अपना हौंसला मत टूटने देना। हम कल से ही इलाज शुरु करवा देंगे और हाँ कल दस बजे तैयार हो जाना ;डॉक्टर ने ठीक दस बजे बुलाया है।"      

"माँ मैं ये कीमोथेरपी और नहीं करा सकती! बहुत दर्द होता है!पता नहीं कब मुझे इनसब चीज़ो से छुटकारा मिलेगा! 

"नेहा थोड़ा होंसला रख ,सब ठीक हो जाएगा ," माँ ने उसे हिम्मत देते हुए कहा।                                         

"माँ देखो मेरे बालों को क्या हुआ!मैं तो लगभग गंजी होती जा रही हूँ ,मेरा रंग भी काला पड़ गया है, देखो मैं कितनी बद्सूरत हो गई हूँ! ....... नहीं माँ मैं ऐसे नहीं जी सकती! आप बस मुझे बहलाने की कोशिश कर रही हो,मैं मर जाऊँगी ना!.... मुझे पता है मेरा अब कुछ नहीं हो सकता ," नेहा ने रोते हुए कहा।  

"नेहा मेरी बच्ची ऐसे हिम्मत नहीं हारते!बालों का झड़ना  

और रंग काला पड़ना ये सब कीमोथेरपी के कारण हो रहा है । ये सब लक्षण अस्थाई हैं , इलाज पूरा होने के बाद सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। मुझे तुझ पर और भगवान पर पूरा भरोसा है!तू बस हिम्मत करके इलाज पूरा करवा ले ; उम्मीद पर तो पूरी दुनिया कायम है!ये बात हमेशा याद रखना ,चल अब रोना बंद कर!गिटार उठा और मेरा फेवरेट गाना 'ज़िंदगी प्यार का गीत है ' सुना!"    

"नेहा!कहाँ खोई हुई है ? तेरा नाम कब से एनाउंस हो रहा है!तू स्टेज पर क्यों नहीं गई?!!.. मुझे तो मेरी एक स्कूल की दोस्त मिल गई थी सो मैं उसके साथ बातों में लग गई," ऋचा ने नेहा को लगभग झकझोरते हुए कहा।

ऋचा की बात सुनकर नेहा अतीत से वर्तमान में लौटी ही थी कि तभी उसका नाम फिर से पुकारा गया "द बेस्ट सिंगर अवार्ड गोज़ तो नेहा शर्मा"और जब वो स्टेज पर गई तो पूरा ऑडिटोरियम तालियों की आवाज़ से गुंजायमान हो उठा। 

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मौलिक व अप्रकाशित

काफी लेकर आती हूँ...............फिर कैंसर    डॉक्टर      अस्पताल .................फिर तुरत  स्टेज पर बुलावा ..... घटनाओं में तारतम्य का अभाव लगा मुझे। खैर, अन्य सुधी जन अपने विचार रखेंगे इसपर। फिलवक्त सहभागिता हेतु बधाई आ॰ महक जी। 

हार्दिक बधाई आदरणीय मधु पासी महक जी। अच्छी लघुकथा ।थोड़ी कसावट की आवश्यकता है।

आदरणीय तेज वीर सिंह जी सादर नमस्कार! मार्गदर्शन के लिए आपका बहुत बहुत आभार। आपको मेरी लघुकथा अच्छी लगी इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। 

बहुत सुंदर भाव हैं रचना के लेकिन विस्तार ज्यादा पा गयी है. थोड़ा कसावट देने पर और बेहतर हो जायेगी आपकी रचना. बहरहाल बधाई इस बढ़िया प्रयास के लिए आ मधु पासी महक जी

आदरणीय विनय कुमार जी लघुकथा को समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आपकी बताई गई बातों पर  अवश्य।ध्यान दूंँगी। 

जीने की उम्मीद भरी दिलासा आखिर अपना रंग दिखाती हैं। बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया दी।

आदाब। कैंसर पीड़ितों और कीमोथैरेपी की पीड़ाओं को समेटती ,गीत-संगीत आदि को औषधि के रूप में सुझाती बहुत ही सकारात्मक रचना में एक लम्बे फ़्लैशबैक को वर्तमान की उपलब्धि से जोड़ा गया है। इसलिए कुछ पाठकों को अंत में दृश्य समझने में परेशानी हो सकती है। हालाँकि //.. नेहा अतीत से वर्तमान में लौटी ही थी कि..// से सब कुछ स्पष्ट है।  इस बढ़िया रचना हेेतु  बधाई  आदरणीया मधु 'महक' जी। रचना यहाँ से शुुुरू की जा सकती है ..//

"माँ मैं अब नहीं बचूँगी!.... मैं अब बस कुछ दिन की मेहमान हूँ! मैं अपने अंतिम दर्द से भरे दिन कैसे काटूँगी ?...... मैं ये सब तकलीफ़ कैसे झेल पाऊँगी ?" 

"नेहा बेटा!देख ऐसे मत बोल मेरी बच्ची!अगर तू हिम्मत हार जाएगी तो मुझे कौन संभालेगा ? तू तो मेरा स्ट्रांग बच्चा है ना!तू बिलकुल चिंता मत कर सब कुछ ठीक हो जाएगा, डॉक्टर ने कहा है कि "नेहा का ...//

प्रदत्त विषय को सार्थक करती शानदार लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीया   मधु जी।

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