सादर अभिवादन .. नया साल मंगलमय हो !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ आठरहवाँ आयोजन है.
इस बार छंदों की कोई बंदिश नहीं रखी जा रही है.
जिस भी छंद में प्रदत्त चित्र के आलोक/ भावालोक में
रचना-कर्म करें, उसका नाम तथा उसका सूत्र अवश्य अंकित करें.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
20फरवरी 2021 दिन शनिवार से 21फरवरी 2021 दिन रविवार तक
इस बार के आयोजन में छंदों की कोई बंदिश नहीं रखी जा रही है. आप जिस छंद में प्रदत्त चित्र में रचना-कर्म करें, उसका नाम तथा सूत्र अवश्य लिख दें.
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
छंदों के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
चित्र अंतर्जाल से
जैसा कि विदित है, कईएक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 फरवरी 2021 दिन शनिवार से 21 फरवरी 2021 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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चौपाई ..... प्रति चरण सोलह-सोलह मात्राओं का छंद है जिसके कुल चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं.
चरणांत गुरु गुरु , लघु लघु गुरु , या गुरु लघु लघु से होता है।
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अब लगे नहीं मन पढ़ने में। शिक्षा की सीढ़ी चढ़ने में॥ काले अक्षर से लड़ने में। अपने भविष्य को गढ़ने में॥
सूर्य देव शुभ दर्शन तेरा। भाग्य खोल अब देगा मेरा॥ दो आशीष और खुशहाली। मुझे रोज पड़ती है गाली॥
अर्ध्य दे रही तुमको सादर। दूध न जल है बस हैं अक्षर॥
भेज रही हूँ पुस्तक पूरी। रहे न कोई पाठ अधूरी॥
शीघ्र मुझे फिर लौटा देना। सौ नम्बर में सौ है लेना॥ याद मुझे सब कुछ हो जाए। नम्बर इक भी कट ना पाए॥
बदल न जाना दिन के राही। देंगे अंबर मेघ गवाही॥ पिता तुम्हीं मैं बिटिया प्यारी। किस्मत होगी मेरी न्यारी॥
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[मौलिक एवं अप्रकाशित ]
आदरणीय अखिलेश् भाईजी, प्रस्तुति तथा सहभागिता हेत् धन्यवाद.
पुनः आपकी रचना पर आता हूँ
आदरणीय अखिलेश जी
मंच पर आपकी फीता काट प्रस्तुती के लिये बधाई। पढ़ने में मन नहीं लगा पा रही बिटिया पर बहुत प्यारी छंद रचना। कुछ एक जगह पर कुछ शब्द टंकण से छूट गये हैं जो प्रवाह गड़बड़ा रहे हैं
आदरणीया प्रतिभाजी
रचना की प्रशंसा केलिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका ।
त्रुटि मैं स्वयं ढूंढ नहीं पाया कृपया आपही बतला दीजिए।
कुछ दिनों से नेट की समस्या से परेशान हूँ।
आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन । प्रदत्त विषय पर अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।
ग़ज़ल
1222. 1222. 1222. 1222
कि फूटा ज्वार बासंती हिलोरें मन हैं अहा राधा |
वो ज्वाला सुप्त बहती मन रही सावन कहा राधा |
प्रिया उसकी रही है भेज पाती कान्हा, राधा |
असर मुझ पर हुआ बिल्कुल नहीं ऊधौ, रहा राधा |
शिकारी काम का वो देवता जालिम, सितमगर है,
हजारों ख्वाब लिपटे हैं अभी तन-मन लगा राधा |
अभी तो गोपियों की भाव धारा में नहाती हूँ,
सुनो ऊधौ तेरा दर्शन नहीं स्वीकार हुआ, राधा |
तुम्हारा फलसफा ऊधौ हमें बेकार लगता है,
अलौकिक प्रेम अपनी गोपियों का है, जँचा राधा |
चिराग अलादीन साकार द्वारा भेजते पाती,
हमारा कृष्ण उसकी हम ऋचाएं हैं, बता राधा |
मौलिक एवं अप्रकाशित
पहले मतले के ऊला से, कृपया 'हैं निकाल कर पढ़ने की ज़हमत फरमाएँ, आभार !
छंद - चंद्रकांता
(राजभा राजभा मातारा सलगा यमाता = 15 वर्ण)
यति = 7, 8
देखती आसमाँ को जो बादल से घिरा हैं
अब्द हैं श्वेत देखो नीले नभ से मिला हैं
बात क्या हैं कहो ना! बेटी तुम आज बोलो
ये पढ़ाई लिखाई से ही सब राज खोलो
हाथ में तो रखी थी वो एक किताब खोली
राज कोई खुला हो जैसे वह आज बोली
हो गया ये करिश्मा जादू यह बात कैसी
ख़्वाब में खो गई वो छोरी अनजान ऐसी
आश हैं एक छोटी सी, पंख मिले उड़ूँगी
आसमाँ में उड़ूँगी मैं सोनपरी बनूँगी
फूल जैसे महेंकूँ भोले मन से रहूँगी
चांद तारे सभी को छूके दिलमें भरूँगी
दूर हैं आभ तो ना छोड़ो सपने अधूरे
पार होंगे सही में तेरे सपने अधूरे
देख सीधी नहीं हैं ये अंबर राह जानो
तो पढ़ो आज से ही मेरी यह बात मानो
******* (मौलिक एवं अप्रकाशित) *******
गीत ( गीतिका छंद)
जा रहे अक्षर कहाँ ये
छोड़ कर अपना जहाँ
कह रहे अब रोकना मत
ठान ली तो ठान ली
क़ैद में रहकर किताबी
खूब लंबी तान ली
बंदिशों से दूर खुद को
आज थोड़ा जाँच लें
काम कितने आ रहे हम
सत्य थोड़ा बाँच लें
दे रही आवाज पुस्तक
लौट आओ घर यहाँ
ज्ञान वो ही ज्ञान जो कुछ
दे सके उपयोगिता
मंडियों में ज्ञान की पर
ज्ञान बस प्रतियोगिता
है उतरता ज्ञान थोथा
जब जमीनी हाल पर
सुर नहीं वो साध पाता
सत्य की तब ताल पर
जिंदगी के गुर सिखाये
पाठशाला वो कहाँ
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मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीया प्रतिभाजी
गीतिका छंद आधारित गीत की सुंदर प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाई।
गीतिका छंद के सूत्र / नियमों की संक्षिप्त जानकारी देना आप भूल गईंं।
आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन । अच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई।
कविता - अक्षरों से स्वप्न तक
अक्षरों के स्वर से निकली कंठ की आवाज है
इस धरा पर पर तैरने का ये अभी आग़ाज़ है
नित नये सपने सजा हद बंदिशो की तोड़ता है
अक्षरों में कैद कर कर के गगन में छोड़ता है
आसमानों में युगों से तैरते ख्वाबों के सागर
रोज़ कितने नये फसाने भेजते हैं इस धरा पर
हो कोई साँचा मनुष्य जिसमें स्वप्न डालकर
रोज़ उन स्वप्नों के बनते हैं न जाने कितने अक्षर
अक्षरों का ये सफ़र और ज्ञान की अज्ञानता
खेल में नित तुच्छ सी ये मनुष्य की महानता
(मौलिक व अप्रकाशित)
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