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सामयिक विषय पर आधारित लघुकथा हेतु आपको बधाई आ.उस्मानी जी। हां, यत्र तत्र अल्पविराम वगैरह का प्रयोग छूट जाना किंचित संयोगजनित है,और हालात स्वयं ही बहुवचन है(एक वचन है हाल)।
रचना पर समय देकर पहली टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। मेरे अनुसार तो विराम चिह्न संबंधित चूक नहीं है यहां। पहले संवाद में सवाल व उत्तर विकल्पों के कारण संवाद में स्पेसिंग दी है पाठकों की सुविधा हेतु। उस संवाद के आरंभिक व समापन इंवर्टिड कौमाज़ लगे हुए हैं। स्पेसिंग के कारण अल्पविराम चूक लग रही होगी।
/हालात/ - सही कहा इस संदर्भ में आपने। लेकिन /हालातों/का प्रयोग मैंने 'विविध हाल' नहीं 'विविध हालात' हेतु किया है बोलचाल रूप में। 【सकारात्मक हालात + नकारात्मक हालात + भ्रम पैदा करते हालात + आस्था/विश्वास भटकाते हालात = 'हालातों'... अनौपचारिक बोलचाल में!】बताइएगा कि फ़िर भी यदि यह ग़लत है, तो टंकण बादमें सुधार दूँगा। सादर।
सटीक जवाब। बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय शेख सरजी।
आदाब। हमेशा की तरह गोष्ठी व मेरी रचना पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई करने हेतु शुक्रिया आदरणीया बबीता गुप्ता जी।
आ. भाई शेख शहजाद जी, सुन्दर और यथार्थपरक कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
दूसरी कथा को सामान्य पोस्ट में डालिएगा। उसका भी आनंद मिले। सादर..
जी। पहले उसे सुधारने की कोशिश करना है।
आ. उस्मानी जी, जैसा मुझे प्रतीत होता है,
प्रथम वाक्य में .......,प्रश्नोत्तरी के रूप में ' हो तथा फिर बाद वाले वाक्य में .....,सही विकल्प चुनकर ' हो तो अच्छा रहेगा।
और जहां तक हालात की बात है,तो यह शब्द बहुवचन के रूप में प्रयुक्त होता है और जैसा कि आपने कहा है कि विभिन्न प्रकार के माहौल आदि को इंगित करने के लिए आपको हालातों शब्द उपयुक्त लगा,तो वैसी स्थिति में भिन्न भिन्न या विभिन्न हालात लिखा जा सकता है।
हो सकता है,यह मेरा व्यक्तिगत विचार हो जिसे मानना या न मानना लेखक पर निर्भर होगा, सादर।
जी। बेहतरीन मार्गदर्शन हमें प्रदान करने हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब। बोलचाल के संवाद की वज़ह से कम शब्दों में लिख गया था।
*आदर्श चोर*
"इसमें कोरोना के इंजेक्शन हैं,हम भूलवश ये बक्से चुरा कर ले गये थे,सॉरी"
पुलीस चौकी के बाहर पड़े कुछ बॉक्स पर यह पर्ची चिपकी देखकर इंस्पेक्टर सत्यार्थ और एक सहकर्मी होठों पर अचंभित मुस्कान लिए सामान का निरीक्षण करने लगे।
"वो चाहते तो इनको फेंक भी सकते थे सर"
"हाँ, लेकिन चोरों में भी इंसानियत तो हो ही सकती है। कोरोना कहर से तो सभी वाकिफ है।।
एक बार पहले भी मेरे साथ वाकया हुआ था जब ट्रेन में मेरी सूटकेस चुरा ली गई थी। काफी परेशान हुआ मैं, लेकिन कुछ दिनों बाद जरूरी कागजात मेरे पते पर पहुँच गए थे। तब भी मैंने यही सोचा था कि उसूलों वाला चोर है। सोचो उन दस्तावेजों के बिना कितनी तकलीफ उठानी पड़ती मुझे।"
"सही बात है सर,वैसे ही आज की विकट परिस्थिति में ये सीसियां लोगों को जीवन दान दे रही हैं।"
"हाँ, कुछ लोग मजबूरी में चोरी तो करते हैं लेकिन विवेकशील भी होते हैं। हर व्यवसाय में कोई न कोई आदर्श व्यक्ति तो होता ही है वैसे ही ये महाशय आदर्श चोर है। मरीजों की दुआ लगेगी इन्हें भी"
दोनों ठहाका लगाकर सामान जीप में रखने लगे।
मौलिक एवं अप्रकाशित
बहुत सुन्दर रचना। काम बनाने वाला चोर ।बहुत-बहुत बधाई, आदरणीया सुचि जी।
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