आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आदरणीय तेजवीर साहब, आप सभी जानते हैं कि टिप्पणियों में कठोर शब्दों के चयन की परिपाटी ओ बी ओ पर नहीं रही है, आप सभी कृपया ध्यान रखें कि कोई आहत करने वाले शब्द न लिखी जाय.
यहाँ यह भी कहना सामयिक है कि यदि कोई रचना हूबहू पाठक तक नहीं पहुँच रही है तो रचनाकार को अपनी रचना की समीक्षा स्वतः करनी चाहिए।
बेटी की शादी पर पूरे गाँव के ही घराती बन जाने के व्यवहार पर अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई आदरणीय
गाँवों में पहले यह परंपरा रही थी कि किसी का दामाद पुरे गाँव का दामाद होता था, गाँव में बरात पहुँचती थी तो पूरा गाँव स्वागत में खड़ा रहता था भले ही आपस में कोई मनमुटाव हो. समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है अब तो ........
अच्छी लघुकथा पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय चेतन प्रकाश जी।
हार्दिक धन्यवाद दिव्या जी
सादर नमस्कार। यथार्थ और कड़वे अनुभवों को सुनकर या महसूस कर ही इतनी मार्मिक लघुकथा कही जा सकती है। संवादात्मक शैली की, कम शब्दों की यथार्थपूर्ण, कटाक्षपूर्ण विचारोत्तेजक रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी। तिनके का सही समय पर सहारा बहुतों के जीवन या करिअर को सही दिशा दे देता है। शीर्षक कोई नवीन और बेहतर भी दिया जा सकता है मेरे विचार से।
हार्दिक बधाई विभा जी।बेहतरीन रचना।
आ. विभा जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।
आदरणीया विभा जी
साहित्य में अवसरवादिता पर बहुत अच्छी लघुकथा लिखी है आपने। हार्दिक बधाई।
इस कोरोना काल में अनजान व्यक्तियों को भी धन और तन से मदद करते देखा है, शायद पता ही नहीं चला होगा कि उन्हें मदद की जरुरत है. अभी भी दुनिया उतनी बुरी नहीं है. राजनीति, षड्यंत्र इस तरह साहित्य में हावी है की क्या कही जाय. खैर ......
क्षमा कीजियेगा रचना में सपाट बयानी और भाउकता हावी है। आयोजन में सहभागिता हेतु बहुत बहुत आभार और "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" हीरक जयंती अंक-75 की बहुत बहुत बधाई।
दीमक - लघुकथा -
"नेताजी, एक बात पूछना है।”
"बोलो जल्दी से। हमारे पास समय नहीं है।”
"वही तो समस्या है। इस देश में किसी के पास भी समय नहीं है। न नेता के पास सुनने के लिये, न मरीज के पास ठीक होने के लिये, न डाक्टर के पास इलाज़ के लिये। हर कोई बस मरने और मारने की जल्दी में है।"
"हाँ बोलो जल्दी से, तुम क्या पूछ रहे थे?”
"हम ये जानना चाह रहे थे कि जब इस महामारी का कोई इलाज़ है ही नहीं तो ये अस्पताल वाले मरीजों को भर्ती किसलिये कर लेते हैं?”
"अपनी तरफ से प्रयास तो करते ही हैं।”
"और उस असफ़ल प्रयास के बाद लाश पकड़ा देते हैं। साथ में लाखों का बिल। भाई जब आप असफ़ल हो गये तो लाखों का बिल क्यों और किस बात का?”
"अपनी मेहनत का पैसा तो लेंगे ही ना।”
"क्या आप एक भी धंधा ऐसा बता सकते हैं जो बिना काम पूरा हुए पैसा लेता हो?”
"देखो भाई इसका ठीक ठीक उत्तर तो कोई डाक्टर ही दे सकता है।”
"तो फिर आप नेता लोग किस मर्ज़ की दवा हो?”
"अरे बाबू, ये नेता लोग तो ख़ुद ही हमारे देश के सारे मर्ज़ों की जड़ हैं।” पीछे से कोई किसान चिल्लाया।
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