आदरणीय साथियो,
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लघुकथा - फ़र्ज़ (सैन्य जीवन)
सूबेदार अमर सिंह अपने पाँच साल के बच्चे मोनू का जन्म दिन मनाने में व्यस्त हैं l कोरोना गाइड लाइन की पालना करते हुए आने वाले बच्चे घर में मास्क लगा कर दूर दूर रखी कुर्सियों पर बैठ कर केक खाकर डी जे पर बजने वाले गानों का आनंद ले रहे हैं l इसी बीच घर में लगी घंटी बजने लगी l
अमर सिंह ने पत्नि से कहा, "देखना बाहर कौन है?"
कुछ ही देर में पत्नि वापस आकर एक टेलीग्राम अमर सिंह को दे देती है, जिसे पढ़कर वो ख़ामोश हो जाते हैं l
पत्नि पूछती है, "क्या हुआ?"
जवाब में अमर सिंह कहते हैं, " चीनी सरहद पर ख़तरा बढ़ गया है, मुझे ड्यूटी पर बुलाया है"
पत्नि फिर कहती हैं," आप एक महीने की छुट्टी पर दो साल बाद आए हैं, अभी तो एक हफ्ता ही हुआ है"
अमर सिंह पत्नि का हाथ अपने हाथ में लेकर कहते हैं, " हमारी नौकरी ही एसी है, बच्चे अभी बहुत खुश हैं, इनकी खुशी में शामिल होकर अपनी बहादुरी का परिचय दो, देश है तो हम हैं"
यह कहते हुए अमर सिंह जाने की तैयारी करने के लिए बेड रूम की तरफ चले जाते हैं l
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। अच्छी लधुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
सैनिक जीवन के एक ओर पहलू को दर्शाती रचना के लिए हार्दिक बधाई
//देश है तो हम हैं// बिल्कुल सही, हार्दिक बधाई इस बेहतरीन लघुकथा के लिये आदरणीय तस्दीक जी
दाल काली ना हो, इसी पहलू को दर्शाती बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई
बहुत अच्छा विषय चुना है आपने। अनुशासन और एकता ही हमारी फौज की ताकत है। हार्दिक बधाई आदरणीया इस बेहतरीन सृजन के लिये।
फ़ौजी का सब्र - लघुकथा -
"माफ़ कर दो दद्दू। गल्ती हो गई।”
"अब का फ़ायदा? अब तो घोड़ा दब गयो। तोकूं साल भर हो गई समझाते समझाते।"
गोली की आवाज सुनते ही कोर्ट में हड़कंप मच गई।
आनन फानन में पुलिस आ गई। फ़ौजी सूबेदार हुकम सिंह को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। उनकी पिस्टल कब्जे में ले ली।पुलिस ने फ़ौजी के बयान लिये।
उसके अनुसार उनके पड़ोसी रोशन का लड़का पिछले एक साल से फ़ौजी की लड़की को छेड़ता था। घर के बाहर उसने एक साइकिल मरम्मत की दुकान खोल रखी थी। फ़ौजी की लड़की जब भी घर से निकलती वह लड़का फ़ब्तियां कसता था। घर में माँ बेटी दो ही प्राणी थे। एक बार वह लड़का जबरन लडकी को उठा ले गया। मजबूरन फ़ौजी को नौकरी से व्ही आर लेना पड़ा।पुलिस केस हो गया था। लड़का गिरफ़्तार हो गया था। लेकिन कुछ दिन बाद जमानत पर छूट गया।
अब वह और भी उदंड हो गया था। फ़ौजी को धमकी देता था कि लड़की से मेरी शादी कर दो नहीं तो उसे फिर उठा ले जाउंगा। वैसे भी उससे अब कोई शादी नहीं करेगा।वह केवल मेरी है।
फ़ौजी ने उसके माँ बाप को भी समझाया। अच्छे पड़ोसी होने का फ़र्ज़ अदा किया लेकिन वह लड़का अपने परिवार की भी नहीं सुनता था।।फ़ौजी भाई कानून हाथ में नहीं लेना चाहते थे। सारा मुहल्ला उनकी शराफ़त का कायल था।
लेकिन आज वे मजबूर हो गये थे।पानी उनके सिर से ऊपर निकल चुका था। आज मुकद्दमे की तारीख थी। फ़ौजी परिवार के तीनों सदस्य मौजूद थे। माँ ,बेटी और खुद फ़ौजी।
लड़के की धमकियों से त्रस्त फ़ौजी ने अपनी लाइसेंस शुदा पिस्टल भी जेब में रख ली।
जैसा कि उनको अंदेशा था। उनको देखते ही वह लड़का गाली गलोज पर उतर आया। फ़ौजी ने वहाँ भी सब्र से काम लिया। लेकिन वह लड़का सारी सीमायें लाँघ गया। फ़ौजी की बेटी को भी गरियाने लगा। सबके सामने उसे चेलेंज कर दिया कि होली के दिन तेरे घर में घुस कर तेरा रेप करूंगा। देखें कौन रोकेगा।
अब तक फ़ौजी भाई का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। उन्होंने अपनी पिस्टल निकाली और तीन गोली दाग दीँ।
मौलिक एवं अप्रसारित
आदाब। विषयांतर्गत फ़्लैशबैक सहित बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह जी। सब्र, इम्तेहान और इंतेहा।
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