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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-136 

विषय - "प्रेम / प्यार / मुहब्बत"

आयोजन अवधि- 12 फरवरी 2022, दिन शनिवार से 13 फरवरी 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 13 फरवरी 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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सादर अभिवादन।

स्वागत है, आदरणीय.

दोहे - (विषय प्रेम)

प्रीति प्रणय वात्सल्य रति, करुणा श्रद्धा भक्ति।
विविध रूप हैं  प्रेम  के, स्नेह, स्वार्थ, आसक्ति।१।
*
नगर प्रेम का सत्य है, अद्भुत अजब अनूप।
मन में जो रचता  नहीं, बिना सुने गुण रूप।२।
*
प्रथम प्रेम की बाबड़ी, जिस मन रखी सहेज।
नल-नल भटका वो नहीं, लिए पिपासा तेज।३।
*
पत्थर रहा कुरूप सा, शाखा सूखी फाँस।
कहलाती जीवन नहीं, बिना प्रेम के साँस।४।
*
अनुभव देत मिठास का, प्रेम हुआ जो प्राप्त।
नीम करेला वह लगे, असमय अगर समाप्त।५।
*
सार  तत्व  संसार  का,  कहे  सनातन  नेह।
कण-कण में बस जो करे, सारी वसुधा गेह।६।
*
प्रेम सून्य सा मान  दे, रखो इकाई अंक।
स्थान दहाई वासना, जीवन बने कलंक।७।
*
न हो लालसा देह की, रहे समर्पण भाव।
यही प्रेम का  मर्म  है, जैसे शीत अलाव।८।
*
रमता मन  ही. बूझता, प्रेम  शब्द  अति गूढ़।
कितनी ही व्याख्या करो, ना समझे मनमूढ़।९।
*
धागा केवल प्रेम का, जन्म मरण के बीच।।
जैसे  पंकज  सूखता, बाहर  पंक  उलीच।१०।
*
प्रेम प्रेरणा स्रोत  बन, करे  रंक को भूप।
बढ़े भाव जो वासना, बने पाप का कूप।११।
*
त्याग समर्पण भाव सह, निष्ठा औ' विश्वास।
ममता रूपक  प्रेम का, रखता  वृहद परास।१२।
**
मौलिक व अप्रकाशित

अतीव सौंदर्य से  परिपूर्ण  प्रेम विषयक  दोहा-श्रृंखला, बधाई,  भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  आपको  !

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

विषय को सार्थक करती आपकी दोहावली मुग्ध कर रही है। हर एक दोहा प्रेम के रूपों को परिभाषित कर रहा है। हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

आ. प्रतिभा सहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

अर्थ सकल जो प्रेम के, जानें इनको जान

दोहे जितने कह दिए, सम्माहित है ज्ञान।

बहुत-बहुत ही खूब दोहे कहे है आपने 
अनुभव देत मिठास का, प्रेम हुआ जो प्राप्त।
नीम करेला वह लगे, असमय अगर समाप्त।---वाह वाह

जीवन के जंजाल तो, रहते हर पल साथ।

थकन मिटे जब थाम ले, प्रीतम पल भर हाथ।।
___
उठा प्रेम की तूलिका, भर जीवन में रंग
जमा घटा के फेर में, जीवन बनता जंग।।
___
मैं पतझड़ की शुष्कता, तुम बासंती प्यार।
मैं थकता सप्ताह तुम, चैन भरा इतवार।।
____
वेलेंटाइन डे कहो, या फिर दिवस गुलाब।
हर मन को शीतल करे, प्यार वही महताब।।
____
कभी प्यार नमकीन है, कभी मधुर सी प्यास।
रहे साथ तो आम है, दूर रहे तो खास।।
____
कड़क भपाती चाय ही, अब तो अपना प्यार।
बिन इसके जीवन लगे, बिल्कुल ही निस्सार।।
____
मौसम नटखट ने कही, क्या धीमे से बात।
सुर्ख़ और भी हो गई, फिर गुलाब की गात।।
_________
मौलिक व अप्रकाशित
                                 

आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय को सार्थक करती सुन्दर दोहावली हुई है । हार्दिक बधाई। 

दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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