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आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-88 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'मार्गदर्शन'। तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-88
"विषय: 'संतान'
अवधि : 30-07-2022  से 31-07-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार जी।

दरअसल रचना विषयांतर्गत संतान पर केंद्रित विसंगतियों पर आधारित है। मैं उपरोक्त टिप्पणियों से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ। रचना की अंतिम व पंचपंक्ति प्रामाणिकता की विडंबनाओं पर.चिंतन करा रही है;  नकारात्मकता को नहीं बढ़ा रही है। क़ानून को अंधा कहने का कारण भी.यही है कि प्रमाणों के अभाव में क़ानून भी मज़बूर होता पाया/देखा गया है। आशय यह कि यदि पात्र नाम बदल भी दिये जायें, तो भी रचना अपना लक्ष्य साध सकेगी।

जैसा कि स्पष्ट है कि जनाब तेजवीर सिंह जी की रचना केवल संवादात्मक शैली की कथनोपकथन वाली अनावश्यक विवरण रहित बेहतरीन लघुकथा है आदरणीय चेतन प्रकाश जी। अतिशयोक्ति लग सकती है। लेकिन अपने देश में ही नहीं अन्यत्र भी ऐसे मिलते जुलते प्रकरण रहे हैं। लेकिन इस लघुकथा का मुख्य मक़सद केवल प्रदत्त विषयांतर्गत है, जिसे समझा जाना चाहिए।

सादर अभिवादन आदरणीय तेजवीर जी

लघुकथा का शीर्षक अपने आप मे सब कुछ कह रहा है। कबीर जिन्होने राम अली दोनो के बंदों को पाखण्ड के लिये बराबर  फटकारा है अपने दोहो में।आपकी अधिकतर  लघुकथाएँ संवादात्मक ही पढ़ी हैं।ये अवश्य है कि फाँसी को लेकर कुछ तथ्यात्मक बातों का ध्यान आवश्यक था। बहरहाल एक व्यथित  मजबूर पिता का कष्ट उकेरती इस लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई   

आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीया जी। मार्गदर्शन हेतु शुक्रिया।

आदरणीया, " ये अवश्य है कि फाँसी को लेकर कुछ  तथ्यात्मक बातों का ध्यान आवश्यक था " कितने लोगों को स्वतंत्र भारत के इतिहास  में दंगों में शामिल होने के कारण फाँसी हुई है कि आप  कबीर  की मनगढ़ंत  फाँसी को तथ्य  / सत्य  मान रही हैं , कृपया बताइगा,  जरूर  ! सादर  

जी आपकी बात से सहमत हूँ कि हमारे देश मे न्याय व्यवस्था बहुत धीमी है और खासकर फाँसी के मामलों में। धर्म विशेष को न्याय नहीं मिल पाता ये कहना भी अतिश्योक्ति है। पर रचना का शिल्प और शीर्षक सराहनीय है। 

हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी।

शिल्प की दृष्टि से संवाद-शैली में लिखी हुई यह लघुकथा बहुत कसी और सधी हुई है आ० तेजवीर सिंह जी. लेकिन कथ्य की दृष्टि से काफी ढीली है. मैंने अनेक मंचो से यह निवेदन किया है कि लघुकथा में 'लाउड' होना 'अलाउड' नहीं है. आपकी लघुकथा कई जगह 'लाउड' हुई है. फांसी देने वाली बात भी 'लाउड' हो गई है. भारत में जब भी कहीं फांसी दी जाती है तो वह एक राष्ट्रीय स्तर की खबर बन जाती है, ऐसे में राजू को ये बात पता न हो, यह कैसे संभव है? सुधि साथियों ने फांसी से संबंधित तथ्यात्मक बिंदुयों को नज़रंदाज़ करने की जो बात की है, मैं उसे सहमत हूँ. फिर यह निम्नलिखित पंक्ति:

//मुझे उसका नाम कबीर नहीं रखना चाहिये था।वह हिन्दू है।”//

यह सरासर नकारात्मक सन्देश दे रही है कि किसी को सिर्फ मुस्लिम होने के कारण फांसी दी जा रही है. 

आप इस रचना पर दोबारा काम करें, अच्छी रचना उभर कर आएगी. बहरहाल इस सद्प्रयास हेतु मेरी बधाई स्वीकार करें.   

हार्दिक आभार आदरणीय योगराज  प्रभाकर जी।आपके सही मार्ग प्रदर्शन   का सदैव आभारी रहूँगा।

आदरणीय तेजवीर सिंह जी मानवता से ओतप्रोत वहीं सटीक तंज़ कसती हुई बहुत अच्छी लघुकथा ।

हार्दिक बधाई।

हार्दिक आभार आदरणीय रचना जी।

मानवता पर विमर्श व चिंतन कराती लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।

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