आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सैंतालिसवाँ आयोजन है.
इस बार के आयोजन के लिए दो छंद लिये गये हैं - दोहा छंद या / और सार छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22जुलाई 2023 दिन शनिवार से
23 जुलाई 2023 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
दोहा छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 22 जुलाई 2023 दिन शनिवार से 23 जुलाई 2023 दिन रविवार तक ही रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए मंच खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय। प्रतिभाजी
चित्र के अनुरूप अच्छे छंद हुए। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश जी
तार्किक, भावमय और विधानुरूप प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया प्रतिभा जी.
अंतिम छंद की भाव-दशा अत्यंत मार्मिक बन पडी है. अलबत्ता, ’छाता उसका’ को ’उसका छाता’ किया जाना अधिक प्रभावोत्पादक होगा. उचित निर्णय आप कर लें.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी
आदरणीय अशोक जी
रचना पर उपस्तिथि और उत्साहवर्धन करती टिप्पणी के लिये आपका हार्दिक आभार
दूसरी प्रस्तुति - सार छंद
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दादुर भैया ! दादुर भैया ! पावस की ऋतु आई ।
निकल खोह से बाहर आओ, त्यागो अब अलसाई।।
दादुर भैया ! दादुर भैया ! काली बदली छायी।
सीमित बरसे तो सुखदायी, अति बरसे दुखदायी।।
*
दादुर भैया ! दादुर भैया !, लकदक ताल तलैया।
साथ तुम्हारे खुश हो बच्चे, खेलें छप्पक छैया।।
दादुर भैया ! दादुर भैया !, सब की किस्मत जागी।
पावस की बूँदों से डरकर, तपन जगत से भागी।।
*
दादुर भैया ! दादुर भैया !, मन मयूर हो नाचा।
बूँद किरण जो कहती जाती, इन्द्रधनुष ने बाचा।।
दादुर भैया ! दादुर भैया ! बदली झटके चोटी।
भीगें बच्चे, नाव चलाएँ, छोड़- छाड़कर रोटी।।
*
दादुर भैया ! दादुर भैया ! बदली कहती आई।
सूखे खेतों की अब होगी, जमकर गोद भराई।।
दादुर भैया ! दादुर भैया ! जुगनू दीप जलाये।
बदली के स्वागत में तुम से, झिंगुर तान मिलाये।।
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दादुर भैया ! दादुर भैया !, अब चहुँदिश हरियाली।
किस्मत अब के दे जाएगी, हलधर को खुशहाली।।
दादुर भैया ! दादुर भैया !, कड़क रही नित बिजली।
संयोगी साजन से लिपटी, विरहन डरकर मचली।।
*
दादुर भैया ! दादुर भैया !, रूठ गयी है कुक्कू।
मीठा गाकर उसे मनाओ, कह मत रूठो सुक्कू।।
दादुर भैया ! दादुर भैया !, हर चूनर अब धानी।
कर्कस रोको, मीठा गाओ, करो नहीं मनमानी।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
दादुर भैया ! दादुर भैया !, रूठ गयी है कुक्कू।
मीठा गाकर उसे मनाओ, कह मत रूठो सुक्कू।।
दादुर भैया ! दादुर भैया !, हर चूनर अब धानी।
कर्कस रोको, मीठा गाओ, करो नहीं मनमानी।।// अहा! कुक्कू/सुक्कू...क्या सुक्कू भी कुक्कू का ही दूसरा नाम है..बहुत बधाई इस मीठी प्रस्तुती के लिये आदरणीय
*
आ. प्रतिभा बहन, स्नेह व सराहना के लिए आभार।
'सुक्कू' स्नेहिल सम्बोधन के तौर पर लिखा गया है। सादर..
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी दूसरी रचना भी अति सुंदर है। बधाई।
आ. भाई दयाराम जी, हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,
चित्र के अनुरूप अच्छे छंद हुए। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
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