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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-164

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 164 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा जनाब सीमाब अकबरआबादी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'दो आरज़ू में कट गए दो इन्तिज़ार में'

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ --में

क़ाफ़िया:-(आर की तुक) बे-क़रार, सोगवार,दाग़दार, बहार, यार आदि ।

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 23 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय Chetan Prakash जी

थी चार दिन की ज़िन्दगी और हसरतें बड़ी

"दो आरज़ू में कट गए दो इन्तिज़ार में"

इसमें तवज्जुह ज़िंदगी शब्द पर आ रही है तो सानी से रब्त नहीं बनेगा 

जो मैंने सुझाव दिया उसमें तवज्जुह चार दिन पर है जो सानी को सार्थक कर देगा

"थे चार दिन हयात में/के और हसरतें बड़ी" 

बाक़ी संशोधन जो आपने किए ठीक हैं सादर

आदरणीय,  अमित जी, आदाब! आपका कोटिश: साधुवाद  कि आने मार्ग दर्शन कर  कृतार्थ किया ! सादर 

आदरणीय चेतन प्रकाश जी ग़ज़ल के प्रयास के लिए बधाई। आपकी सक्रियता और निरंतरता अनुकरणीय है।

आ. भाई अजय गुप्ता 'अजेय आभार आपका  ग़ज़ल तक पहुँचे ! 

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन! तरही मिसरे पर ग़ज़ल कहने का अच्छा प्रयास किया है आपने, बस थोड़ा और वक्त लगाने पर ग़ज़ल और अच्छी हो सकती थी आदरणीय। मुझे कुछ अशआर में रब्त की कमी लग रही है, कुछ शेर अस्पष्ट हैं तथा कुछ में भी बह्र का पालन नहीं हो पाया है। इसके अलावा आदरणीय Amit जी ने भी कुछ अच्छे सुझाव दिए हैं, उनपर ग़ौर कीजिएगा।

आयोजन में सहभागिता हेतु बहुत बहुत बधाई आपको। सादर।

आ. भाई जनित कुमार मेहता,  आभार,  आप ग़ज़ल तक पहुँचे । 

"मुझे कुछ अशआर में रब्त की कमी लग रही है "

बेहतर  होता ऐसे अशआर आप उद्धृत करते ।

कुछ शे'र अस्पष्ट हैं, आ. यह पहलू शे'र पढ़ने वाले की समझ पर निर्भर करता है

" कुछ में बह्र का  पालन नहीं हो पाया है"

आप ने शायद  आ. अमित जी को सम्बोधित  मेर जवाब  नहीं पढ़ा ! 

सादर !

आदरणीय चेतन जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। सुझावों पर ग़ौर करें तो ग़ज़ल और बेहतर हो सकती है। 

आ. धन्यवाद,  लेकिन  आ.अमित जी को  सम्बोधित  मेरा उत्तर पढ़ लें ! आपकी जिज्ञासा शांत हो जाएगी। 

आ. Chetan जी,  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। गुणीजन की इस्लाह महत्वपूर्ण रहेगी। सादर।

आदरणीय चेतन जी नमस्कार

ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार कीजिये,सबकी टिप्पणियाँ ज्ञानवर्धक हैं 

सादर

आ. Richa Yadav ji, आप  ग़ज़ल तक  पहुँची,  आभार  व्यक्त करता हूँ ! गुणीजन वृन्द के सुझावों का मैं पहले ही  संज्ञान ले चुका हूँ ! सादर 

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, ग़ज़ल का बढ़िया प्रयास है। आदरणीय अमित जी के सुझाव महत्त्वपूर्ण हैं जिनका आपने संज्ञान भी लिया है। शुभकामनाएँ। सादर।

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