For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 170 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | 

इस बार का मिसरा जनाब 'मुज़फ़्फ़र वारसी' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'इज़्ज़त को दुकानों से ख़रीदा नहीं जाता'

मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन

221 1221 1221 122

हज़ज मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़


रदीफ़ --नहीं जाता

क़ाफ़िया:-अलिफ़ का(आ स्वर ) देखा,
रोका, सोचा, झाँका, नापा आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 अगस्त दिन बुधवार को हो जाएगी और दिनांक 29 अगस्त दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 अगस्त दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 1804

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, तरही मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।

आदरणीय अमीरुद्दीन जी, ग़ज़ल पर हौसला-अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिय:

सादर 

आदरणीय Zaif जी नमस्कार 

बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए

गिरह भी खूब हुई 

सादर

आदरणीया ऋचा जी, ग़ज़ल पर हौसला-अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिय:

सादर 

जनाब ज़ैफ जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

कुछ मिसरे मात्रा पतन के कारण लय में नहीं लगते, मात्रा पतन से जितना बचा जाए बचना चाहिए ।

'मैंने कहा ग़म से मेरे दिल से चले जा तू'

इस मिसरे को यूँ कहें:-

'जब मैंने कहा ग़म से चला जा मेरे दिल से'

आदरणीय समर कबीर सर जी, ग़ज़ल पर इस्लाह और हौसला-अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिय: 

सादर 

221 1221 1221 122

आज़ाद कोई शख़्स तो रोका नहीं जाता
हक़ तो किसी उस्ताद का मारा नहीं जाता

है खेल का उस्ताद वो जीता नहीं जाता
मेहनत से है सरदार तो ज़ाया नहीं जाता

जन्नत में मिलेगी उसे हूरों की क़ुर्बत
विश्वास उसे है मगर जाया नहीं जाता

हालात की ज़ुल्मत से बता कौन बचा है
है कौन कलंदर जिसे मारा नहीं जाता

कह दो उसे ख्वाबों में न आया करे अब तो
हस्ती है बड़ी उसकी वो भुलाया नहीं जाता

हुज्जत से बना कोई तो हकदार नहीं है
इज़्ज़त को दुकानों से ख़रीदा नहीं जाता ( गिरह )

औक़ात नहीं चेतन मिटा मुझको सकेंगे
जन्मा हूँ यहीं मैं कि हटाया नहीं जाता

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब।

ग़ज़ल अभी और वक़्त और मश्क़ चाहती है।

221 1221 1221 122

आज़ाद किसी शख़्स को रोका नहीं जाता

हक़ तो किसी उस्ताद का मारा नहीं जाता

( कृपया रब्त समझाएँ? )

है खेल का उस्ताद वो जीता नहीं जाता

मिहनत से है सरदार तो ज़ाया❌ नहीं जाता

सहीह शब्द है ज़ाइ'अ इसे अलिफ़ 

क़ाफ़िया नहीं माना जा सकता ।

जन्नत में/ मिलेगी उ/ से हूरों की/❌क़ुर्बत

विश्वास /उसे है म/ गर ❌जाया न/हीं जाता

-कृपया उला और सानी की बह्र जाँच लें-

कह दो उसे ख़्वाबों में न आया करे अब वो

हस्ती है/ बड़ी उसकी / वो❌ भुलाया नहीं जाता

--------कृपया सानी की बह्र जाँच लें-----

हस्ती हो बड़ी जिसकी भुलाया नहीं जाता 

( बा-बह्र मिसरा )

नींदों को  किसी की यूँ उड़ाया नहीं जाता 

( रब्त के साथ )

औक़ात /नहीं चे तन❌ /मिटा मुझको/ सकेंगे

जन्मा हूँ यहीं मैं कि हटाया नहीं जाता

औक़ात नहीं इनकी मिटा दें मुझे 'चेतन'

            // शुभकामनाएँ //

आदरणीय भाई अमित Euphonic Amit जी, नमस्कार! आप का बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ जो आपने परिस्थितिगत जल्द बाजी में लिखी गयी मेरी प्रस्तुति कोको अपना अमूल्य समय दिया। आ. आपकी समीक्षा के संदर्भ में कृपया मेरे जवाब पर एक बार फिर प्रतिक्रिया दें।

// आज़ाद किसी शख़्स को  रोका नहीं जाता

हक़ तो किसी उस्ताद का मारा नहीं जाता //

उपर्युक्त शे'र को लिख ते समय अनायास मुझे महाभारत काल के धनुर्धर एकलव्य आ स्मरण हो आया जिसने स्थूल रूप से अपने मन पसंद गुरुवर द्रोणाचार्य के उपलब्ध न होने की दशा में बिना किसी गुरु से दीक्षा मिले,  गुरुवर द्रोणाचार्य का 

चित्र रखकर धनुर्विद्या हेतु प्रेरणा प्राप्त की और अपने समय का अद्वितीय धनुर्धर हुआ।  लेकिन जब गुरुवर द्रोणाचार्य को

यह पता चला कि उनके प्रिय शिष्य अप्रतिम धनुर्धर अर्जुन को भी एकलव्य ने परास्त कर दिया है तो उन्होंने एकलव्य से इसका रहस्य पूछा। सर्वविदित है, गुरुवर द्रोणाचार्य के माँगने पर उन्हें अपना सीधे हाथ का अंगूठा काट कर गुरु- दक्षिणा

 ( उनका अधिकार )स्वरूप दे दिया था । यही रब्त है, इस शे'र के दोनों मिसरों में, आदरणीय!

// है  खेल का उस्ताद वो जीता नहीं जाता

मेहनत से सरदार तो ज़ाया नहीं जाता //

//सही शब्द ज़ाइ'अ है इसे अलिफ़ नहीं किया जा सकता //

आदरणीय, मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ऐसा संभव है, महर्षि पाणिनि कहते हैं, यहाँ यह संधि हुई जिसके अनुसार 

// इ+अ = यह // और, यहाँ, // इ+आ= या // हो जाएगा ।

" जन्नत में  मिलेगी उसे हूरों की ही क़ुर्बत

विश्वास उसे है मगर लो जाया नहीं जाता//

आ. निर्देशानुसार संशोधित है।

// कह दो उसे ख़्वाबों में न आया करे अब वो

हस्ती हो बड़ी जिसकी भुलाया नहीं जाता//

उक्त शे'र भी आपके सलाह से संशोधित है, आदरणीय !

// औक़ात नहीं इनकी मिटा दें मुझे 'चेतन'

// जन्मा हूँ यहीं मैं कि हटाया नहीं जाता //

पुनश्च उपर्युक्त शे'र भी  आपके निर्देश में परिवर्तित है ।

साभार, सादर !

.

आदरणीय Chetan Prakash जी

सब सीख के उस को गुरु माना नहीं जाता 

हक़ यूँ  किसी उस्ताद का मारा नहीं जाता 

//आदरणीय, मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ऐसा संभव है,

महर्षि पाणिनि कहते हैं, यहाँ यह संधि हुई जिसके अनुसार 

/ इ+अ = यह // और, यहाँ, // इ+आ= या // हो जाएगा ।//

जी उर्दू व्याकरण के हिसाब से ज़ाइ'अ को ज़ाया नहीं पढ़ा जा सकता ।

विश्वास 221

उसे है म 1221

गर लो जाया 2221❌

नहीं जाता// 1222❌

जन्नत में मिलेगी  हमें  हूरों की ही  क़ुर्बत

हमको है यक़ीं पर वहाँ जाया नहीं जाता

आ. भाई Euphonic Amit जी, आपने पुनश्च कृपा की आपका अतिशय आभारी हूँ ! सादर !

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। हम भटकते रहे हैं…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"ग़ज़ल वो दगा दे गए महब्बत मेंलुट गए आज हम शराफत में इश्क की वो बहार बन आयेथा रिझाया हमें नफासत…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया ऋचा जी तरही मिसरे पर आपने ख़ूब ग़ज़ल कहीं। हार्दिक बधाई। अमित जी की टिप्पणी के अनुसार बदलाव…"
5 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय अमीर जी, मेरा आशय है कि लिख रहा हूँ एक भाषा में और नियम लागू हों दूसरी भाषा के, तो कुछ…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"... और अमित जी ने जो बिंदु उठाया है वह अलिफ़ वस्ल के ग़लत इस्तेमाल का है, इसमें…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
".हम भटकते रहे हैं वहशत में और अपने ही दिल की वुसअत में. . याद फिर उस को छू के लौटी है वो जो शामिल…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. संजय जी,/शाम को पुन: उपस्थित होऊंगा.. फिलहाल ख़त इस ग़ज़ल का काफ़िया नहीं बनेगा ... ते और तोय का…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"//चूँकि देवनागरी में लिखता हूँ, इसलिए नस्तालीक़ के नियमों की पाबंदी नहीं हो पाती है। उर्दू भाषा और…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गिरह भी अच्छी लगी है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-174
"आदरणीया ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।  6 सुझाव.... "तू मुझे दोस्त कहता है…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service