आदरणीय साथियो,
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विषय बहुत ही चुनकर देते हैं आप आदरणीय योगराज सर। पुराने दिन याद आते हैं इस आयोजन के...
शहज़ाद भाई, हिन्दू-मुस्लिम न लिखकर कोई प्रतीक का प्रयोग किया जा सकता है?
मार्मिक लघुकथा हुई है। बधाई स्वीकारें।
आदाब। रचना पटल पर उपस्थिति और प्रोत्साहन हेतु तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया कल्पना भट्ट जी। चूंकि सर्वविदित और समसामयिक भी है, इसलिए वैसा ही लिखा, वरना उन्हें सांकेतिक रूप से भी बताया जा सकता है।
आ. भाई शेख शहजाद जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
सादर नमस्कार। नियमित सहभागी साथियों की रचना पटल पर उपस्थिति और प्रतिक्रिया से दिल ख़ुश हो जाता है। हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब।
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी, आपकी इस लघुकथा ने मर्म को छू लिया है। इस प्रस्तुति के लिए बधाई
"देखो नानी राक्षस! बड़े-बड़े सींगो वाला, दाँतों वाला,खा जाता है!"
आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर और संदर्भगत लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
कश्मीर के लोगों की पीड़ा नहीं है यह अपितु इस स्थिति से गुज़र रहे हर वो देश है जहाँ लगतार युध्द की स्थिति रहती है। बहुत सुंदर लघुकथा कही है आदरणीया प्रतिभा जी। बधाई स्वीकारें।
आदरणीय प्रतिभा जी, सर्वप्रथम आयोजन मे ंसहभागिता के लिए आपको बधाई।
यह राक्षस तो हम सभी को तकलीफ़ दे रहे हैं। मुझे लग रहा है कि अंत कुछ और बेहतर हो सकता है, अभी कुछ अधूरा सा लग रहा है।
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