For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा वरिष्ठ साहित्यकार रामदरश मिश्र जी की ग़ज़ल से लिया गया है।
तरही मिसरा है:
“वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे धीरे”
बह्र है फ़ऊलुन्x4 अर्थात् 122 122 122 122
रदीफ़ है ‘धीरे धीरे’’ और क़ाफ़िया है ‘’अर’’
क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं असर, गुजर, कर, मर, मुकर, बशर, घर, पर, सफ़र, मगर, सर, भर, आदि
उदाहरण के रूप में, मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।
मूल ग़ज़ल यह है:
“बनाया है मैं ने ये घर धीरे धीरे
खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे धीरे


किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला
कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे धीरे


जहाँ आप पहुँचे छलांगें लगा कर
वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे धीरे


पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी
उठाता गया यूँ ही सर धीरे धीरे


गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया
गया दर्द से घाव भर धीरे धीरे”

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 जून दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

तिलक राज कपूर

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 311

Reply to This

Replies to This Discussion

सजावट से रौनक बढ़ेगी भले ही
बनेगा मकाँ  से  ये  घर धीरे धीरे// अच्छा शेर है!

अच्छे ख़याल बाँधे है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। लगभग सभी शेर अच्छी कहन में हैं। आदरणीय तिलक राज साहब के उपयोगी सुझावों से लाभ लेकर ग़ज़ल को और निखार लें। बहुत बधाई!

आ. भाई गजेन्द्र जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

हुआ आदमी जानवर धीरे-धीरे   
जहाँ हो गया चिड़ियाघर धीरे-धीरे
 
लगा मानने कुछ पटाख़ों के दम पर 
ख़ुदा ख़ुद को ही ये बशर धीरे-धीरे

खिला मोतियों से जड़ा फूल कोई
लगा, जब खुले वो अधर धीरे-धीरे 
 
नहीं ऐसी बातें कही जाती इकदम    
अहद से तू अपने मुकर धीरे-धीरे 
 
सभी को लगा "रील" का ऐसा चस्का 
सड़क बन रही नाचघर धीरे-धीरे
 
अगर सोहबत-ए-आलिमों में रहे तो
निखर जाएंगें कम-हुनर धीरे-धीरे

सफ़र रूह का पास मंज़िल के है
हुआ मुख़्तलिफ़ मुख़्तसर धीरे-धीरे
 
उड़ेंगे भला कैसे बच्चे कि फ़ोन अब
परों को रहा है कतर धीरे-धीरे
 
जो तुमने क़लाम अपने में कहना चाहा 
"वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे-धीरे"       


#मौलिक एवं अप्रकाशित 

निखर जायेंगे कम हुनर धीरे-धीरे

अच्छा कहा अजेय जी         

अच्छे मिसरे बाँधे हैं अजय जी। परन्तु थोड़ा सा और तराशा जाए तो सभी अशआर और ज़ियादा चमकने लगेंगे। आपकी कहन का क्षेत्र बहुत विस्तृत है, लहज़ा भी अच्छा है।बधाई स्वीकारें।

नहीं ऐसी बातें कही जाती इकदम    
अहद से तू अपने मुकर धीरे-धीरे 

जैसा कि प्रथम पंक्ति से ध्वनित हो रहा है, यह शेर परिस्थिति विशेष में अहद् से मुकरने पर समझाईश का है लेकिन दूसरी पंक्ति मुकरने को प्रेरित करती हुई है। यह केवल मार्गदर्शन तक सीमित हो सकता है अगर यूँ कहा जाए कि

अहद् से मुकरना नहीं ठीक फिर भी
अगर है ज़रूरी मुकर धीरे धीरे।


सफ़र रूह का पास मंज़िल के है
हुआ मुख़्तलिफ़ मुख़्तसर धीरे-धीरे। एक बार फिरे से देखें जिससे कहन स्पष्ट हो सके।

अंतिम दो शेर में बात अच्छी है मगर अभी और समय चाहते हैं।

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। सजल का प्रयास अच्छा हुआ है। कुछ अच्छे शेर हुए हैं पर कुछ अभी समय चाहते हैं। हार्दिक बधाई।

उड़ें कैसे बच्चे बँधे फ़ोन से हैं
परों को रहा जो कतर धीरे-धीरे
-कुछ ऐसा करने से प्रभाव बढ़ सकता है। सादर..

ये दुनिया है दरिया उतर धीरे धीरे

चला जा इधर से उधर धीरे धीरे

वो नज़रें झुकाए अगर धीरे धीरे

उतर ही न जाए सहर धीरे धीरे

है ये इश्क़ का रोग भी इतना ज़ालिम

न बीमार हो चारागर धीरे धीरे

नहीं अब कबूतर न ख़त ओ किताबत

फ़ना हो रहे डाकघर धीरे धीरे

लगा वक़्त मुझ को समझने में उनको

हुए हैं सनम पुर हुनर धीरे धीरे

वो कहते थे मुझ को जहाँ तक ना काबिल

"वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे धीरे "

मौलिक एवं अप्रकाशित 

ग़़ज़ल

लिखूँगा कहानी मगर धीरे धीरे
समझ में ये आया हुनर धीरे धीरे

कहानी नहीं मैं हकीकत लिखूंगा
दिलों पर करेगी असर धीरे धीरे

चलो अब नया घर बसायें कहीं पर
खुशी से जिएं हम जिधर धीरे धीरे

बहुत दूर जाना हमें है यहाँ से
कटेगा सुहाना सफर धीरे धीरे

न शिकवा न कोई गिला है किसी से
निडर हो चलें उस डगर धीरे धीरे

गिरह -
जहाँ आप पहुँचे उड़ानों से उड़ कर
वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे धीरे
- दयाराम मेठानी
(मौलिक व अप्रकाशित)

अच्छे शेर हुए। मतले के शेर पर एक बार और ध्यान देने की आवश्यकता है।

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

आ. भाई तिलकराज जी की बात से सहमत हूँ।

मतले को कुछ ऐसा करें तो प्रभाव बढ़ सकता है-

निखर जाएगा जब हुनर धीरे धीरे

लिखूँगा कथा मैं मगर धीरे धीरे...

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। आ. भाई तिलकराज जी की बात से सहमत…"
23 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। सजल का प्रयास अच्छा हुआ है। कुछ अच्छे शेर हुए हैं पर कुछ अभी समय चाहते…"
30 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई गजेन्द्र जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
39 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. भाई तिलकराज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, प्रशंसा, मार्गदर्शन और स्नेह के लिए हार्दिक…"
42 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, गजल का सुंदर प्रयास हुआ है। हार्दिक बधाई।"
54 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी सादर अभिवादन। एक जटिल बह्र में खूबसूरत गजल कही है। हार्दिक बधाई।"
56 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अच्छे शेर हुए। मतले के शेर पर एक बार और ध्यान देने की आवश्यकता है।"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेन्द्र जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका  ग़ज़ल को निखारने का पुनः प्रयास करती…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार  बहुत शुक्रिया आपका, बेहतरी का प्रयास ज़रूर करूँगी  सादर "
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"ग़़ज़ल लिखूँगा कहानी मगर धीरे धीरेसमझ में ये आया हुनर धीरे धीरे—कहानी नहीं मैं हकीकत…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नहीं ऐसी बातें कही जाती इकदम     अहद से तू अपने मुकर धीरे-धीरे  जैसा कि प्रथम…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"मुझसे टाईप करने में ग़लती हो गयी थी, दो बार तुझे आ गया था। तुझे ले न जाये उधर तेज़ धाराजिधर उठ रहे…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service