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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ एकहत्तरवाँ योजन है।

 .   

 

छंद का नाम  -  मुकरिया/ कहमुकरिया छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20 सितंबर’ 25 दिन शनिवार से

21 सितंबर 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

मुकरिया/ कहमुकरिया छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

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आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 20 सितंबर’ 25 दिन शनिवार से 21 सितंबर 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव सर, प्रदत्त चित्र को सार्थक करती बहुत बढ़िया कह मुकरियां हुईं है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। बाकी अशोक रक्ताले सर की बातों पर गौर कीजियेगा। सादर

आदरणीय मिथिलेश भाईजी, 

हार्दिक धन्यवाद आभार आपका,।

मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर

आदरणीय अखिलेश जी

प्रदत्त चित्रानुसार बहुत सुन्दर मुकरियों का सृजन हुआ है, हार्दिक बधाई स्वीकारें

कह मुकरियाँ ....

जीवन तो है अजब पहेली
सपनों से ये हरदम खेली
इसको कोई समझ न पाया
ऐ सखि साजन? ना सखि छाया
*
मन की उलझन समझ न आती
सुलझाऊँ तो सुलझ न पाती
रात झरोखे से वो आया
ऐ सखि साजन? ना सखि छाया
*
कभी सवालों सा वो आए
कभी जवाबों सा वो छाए
सपन  अजब ये समझ न  आया
ऐ सखि साजन? ना सखि छाया
*
सांझ ढले हौले से आता ।
भोर काल में वो खो जाता ।
अन्धकार में लगता प्यारा ।
ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा ।
*
तारे गिन- गिन बीती रैना
हर आहट पर चौंके नैना
उसे देख कर धड़के छाती
ऐ सखि साजन ? ना सखि पाति

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय सुशील भाईजी,

इन पाँच  सुंदर  मुकरियाँ के लिए हार्दिक बधाई।

अंतिम की अंतिम पंक्ति में मात्रा और तुकबंदी देख लीजिए। पाति का अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया।

आदरणीय  अखिलेश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।आदरणीय पाति अर्थात पत्र जिसे देखकर नायिका का दाल धड़का ।सादर 

   आदरणीय सुशील सरना जी सादर,  प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी मुकरियाँ रचीं हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी द्वितीय मुकरी में " रात झरोखे से वो आया" ... यह पंक्ति इसके पूर्व की पंक्तियों से किसी तरह मेल नहीं बैठा रही है. अंतिम मुकरी में छाती/ पाति की तुकांतता देख लें. सादर 

आदरणीय  अशोक जी सृजन के प्रयास की सराहना के लिए हार्दिक आभार । भविष्य के लिए  अवगत हुआ सर ।छाती  और पाति में मैंने स्वर को आधार लिया था।

आदरणीय सुशील सरना सर, प्रदत्त चित्र को सार्थक करती बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। इस पद ने चित्र को क्या खूब शाब्दिक किया है

कभी सवालों सा वो आए
कभी जवाबों सा वो छाए
सपन  अजब ये समझ न  आया
ऐ सखि साजन? ना सखि छाया

वाह ।

आदरणीय सुशील सरना जी

प्रदत्त चित्र पर बहुत सुन्दर मुकरियाँ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी

कभी इधर है कभी उधर है

भाती कभी न एक डगर है

इसने कब किसकी है मानी

क्या सखि साजन? नहीं जवानी

__

खींच- खाँच कर इसे सँभाला

फिर भी बढ़ता भ्रम का जाला

कच्ची ही रहती है सींवन

क्या सखि साजन?ना सखि जीवन

__

मुझे दूर से पास बुलाता

छूना चाहूँ फुर हो जाता

कभी पराया कभी है अपना

क्या सखि साजन?ना सखि सपना

__

रातों की नींदें उड़वाती

खड़ी दूर ही है मुस्काती

बिन इसके न मिले छोकरी

क्या सखि साजन?नहीं नौकरी

____

मौलिक व अप्रकाशित 

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