For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता -नव युग की कामना

 ***********************************       
      नव युग की कामना 
**********************************

बीते कल का फ़साना                                          

नहीं दोहराना है जनाब 
नये युग का तराना 
अब गुनगुनाना है जनाब  //१//


सो रही जो चेतना है 
बंद हो कर के घरों में 
दिल से करके कोशिशें
उसको जगाना है जनाब //२//
*

 
वक़्त ठहरता है नहीं 
 क्षण भर किसी के वास्ते 
मार से इसकी हमें अब 
खुद को बचाना है जनाब //३//

 
हममें वो शक्ति निहित है 
जो पलट दें रुख हवा का 
सोच अपनी हमें बदलकर 
कदम मिलाना है जनाब  //४//
 
रुक ना जाये कारवां यूँ
थम न जाये अपना सफ़र 
जाकर गगन पे तिरंगा 
अब फहराना है जनाब  //५//
 
लहराए आगे ये परचम 
निज देश का जहाँ में 
कुछ ऐसा अब धरा पे 
कर दिखाना है जनाब  //६//
 
मिलकर कसम लें साथ में 
आज हम सब यूँ एक होकर 
नव युग की कामना अब 
मन में सजाना है जनाब //७//
 
***************************************
          अतेन्द्र कुमार सिंह 'रवि'
***************************************

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 15, 2012 at 11:41pm
हममें वो शक्ति निहित है 
जो पलट दें रुख हवा का 
सोच अपनी हमें बदलकर 
कदम मिलाना है जनाब  //४/
 रवि जी  बहुत खूब ...चेतना जगाती होश दिलाती रचना ..काश   हम  हमारे युवा जाग जाएँ  ...बधाई ...आइये साहित्य सृजन में बढे चलें  ...जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 

Comment by Brij bhushan choubey on January 25, 2012 at 2:16pm
वक़्त ठहरता है नहीं 
 क्षण भर किसी के वास्ते 
मार से इसकी हमें अब 
खुद को बचाना है जनाब //३//vah bahut hi khubsurat rachna ...badhai  atendra kumar ravi ji .
Comment by आशीष यादव on January 11, 2012 at 7:09am
Bahut khub Atendra bhai. Achchhi rachna hetu badhai.
Comment by AVINASH S BAGDE on January 7, 2012 at 7:16pm
सो रही जो चेतना है  
बंद हो कर के घरों में 
दिल से करके कोशिशें 
उसको जगाना है जनाब //२//...chaitany jagata ek sunder prayas 'बहुत खूब अतेन्द्र जी.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2012 at 2:40pm
//हममें वो शक्ति निहित है 
जो पलट दें रुख हवा का 
सोच अपनी हमें बदलकर 

कदम मिलाना है जनाब//


बहुत ही सुन्दर भावों से सजी उस रचना के लिए बधाई स्वीकार करें अतेन्द्र भाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 7, 2012 at 11:19am
मिलकर कसम लें साथ में 
आज हम सब यूँ एक होकर 
नव युग की कामना अब 

मन में सजाना है जनाब

बहुत खूब अतेन्द्र जी, अच्छी रचना की प्रस्तुति है, बधाई स्वीकार करें , आगे भी आपकी रचनाएँ और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों का स्वागत रहेगा |

Comment by satish mapatpuri on January 4, 2012 at 9:24pm
रुक ना जाये कारवां यूँ
        थम न जाये अपना सफ़र
जाकर गगन पे तिरंगा
        अब फहराना है जनाब  //५//
इस ज़ज्बे को सलाम करता हूँ रवि जी ................ बेहतरीन रचना ........ बहुत -बहुत बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2012 at 4:33pm

रचना में अंतर्निहित प्रवाह और भाव के साथ समृद्ध शब्द संयोजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें, भाई अतेन्द्र रवि जी. 

 

Comment by Abhinav Arun on January 4, 2012 at 4:20pm
अच्छी और सकारात्मक सोच की रचना हेतु हार्दिक बधाई रवि जी !!
Comment by mohinichordia on January 4, 2012 at 3:29pm

बहुत खूब" रवि' जी |नव युग का नया गान आपने गाया \

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service