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माथा सूरज सा दमके, आँखें लगती मधुशाला ||

इन नैनों की खिड़की से, देखा इक योवन आला |
पग पग चल कर आई है , जैसे कोई सुरबाला ||
पुष्पलता सम तन तेरा, मुख चंदा सा उजियाला |
माथा सूरज सा दमके, आँखें लगती मधुशाला ||

निर्झर चाहत का जल हो, तुम हो अमृत सी हाला |
पीकर मन नहिं भरता है, फिर भर लेता हूँ प्याला ||
झूमूं गलियों गलियों में, जपता हूँ तेरी माला |
कोई पागल कहता है , कोई कहता मतवाला ||

सपनों की तुम रानी हो, मन है तेरा सुविशाला |
निसदिन ही तुम आती हो, हाथों में ले वरमाला ||
धीरे धीरे आकर तुम , शरमाती हो जब आला |
तुझको देखूं मैं व्याकुल, पाने तेरी करमाला ||


संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by Rekha Joshi on June 5, 2012 at 5:30pm

संदीप जी ,अति सुंदर प्रस्तुति,बधाई |

Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 9:41am

वाह वाह संदीप पटेल दीप जी..........आपने तो सुबह सुबह रोमेंटिक  कर दिया .
सपनों की तुम रानी हो, मन है तेरा सुविशाला |
निसदिन ही तुम आती हो, हाथों में ले वरमाला ||
धीरे धीरे आकर तुम , शरमाती हो जब आला |
तुझको देखूं मैं व्याकुल, पाने तेरी करमाला ||

वाह..........आनन्द आगया .........आपका अरमान पूरा हो..जय हो !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2012 at 5:27pm

संदीप जी आपकी इस रचना ने मन मोह लिया प्रभु आपके स्वप्न को जरूर पूरा करे (if your status is single yet)बड़े सुन्दर शब्दों ,भावों से सजी प्यारी पोस्ट .

Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 4:53pm
संदीप मित्रवर ,
में अभी अकेला हूँ , तो मित्र हमे तो आपकी पंक्तियाँ बहुत खूब लगी
बहुत ही बेहतरीन विचारों से भरी पंक्तियाँ
सपनों की तुम रानी हो, मन है तेरा सुविशाला |
निसदिन ही तुम आती हो, हाथों में ले वरमाला ||
धीरे धीरे आकर तुम , शरमाती हो जब आला |
तुझको देखूं मन व्याकुल हो, पाने तेरी करमाला ||

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2012 at 4:37pm

बहुत खूब

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 4, 2012 at 3:53pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आदरणीय संदीप जी 

वाह मधुशाला , बधाई 

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