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हिमालय की मौन आँखों में
शान्त माहौल के परिवेश में
कुछ प्रश्नों को देखा है मैंने ।

खड़ा तो है अडिग पर
उसके माथे की सलवटों पर
थकावट के अंशों को देखा है मैंने ।

प्रताड़ित होता है वो तो क्यों ?
नहीं समझते हो तुम
क्रोधित हो वो कैसे हिला दे
धरती को ये देखा है मैंने ।

जब बहती हुयी पवन कुछ
कहकर पैगाम सुनाती है तो
पैगाम -ए - दर्द को छलकते
धरती पर बहते देखा है मैंने ।

कभी ज्वाला सा जल जाता है
और कभी नदियाँ बन बह जाता है
उसे पिघलते रोते देखा है मैंने ।

भयानक क्रोध में तपते
बादल की तरह फटकर
तबाही फैलाते हुए देखा है मैंने ।

अभिमान करो ना प्रतिकार करो
दर्द से बिलखते पिघलते उस
अटूट ह्रदय को टूटते देखा है मैंने ।

- दीप्ति शर्मा

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Comment

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Comment by deepti sharma on September 2, 2012 at 12:04pm

आदरणीय राजेश कुमार झा  जी ... आदरणीय अविनाश  जी 

बहुत बहुत आभार ....यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें शुक्रिया

Comment by AVINASH S BAGDE on August 21, 2012 at 11:19pm

अभिमान करो ना प्रतिकार करो 
दर्द से बिलखते पिघलते उस 
अटूट ह्रदय को टूटते देखा है मैंने । 

बहुत सुंदर..कविता पसंद आयी..वाह दीप्ति जी ,बधाई 

Comment by राजेश 'मृदु' on August 19, 2012 at 1:10am

बहुत सुंदर एवं शोभन रचना

Comment by deepti sharma on August 18, 2012 at 12:24am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद  जी ,, आपको कविता पसंद आयी ,, शुक्रिया ,, आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत आभारी हूँ ।

Comment by deepti sharma on August 18, 2012 at 12:23am

आदरणीया रेखा जोशी  जी ,, आपको कविता पसंद आयी ,, शुक्रिया ,, आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत आभारी हूँ ।

Comment by deepti sharma on August 18, 2012 at 12:22am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,, आपको कविता पसंद आयी ,, शुक्रिया ,, आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत आभारी हूँ ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 17, 2012 at 6:36pm
हार्दिक बधाई दीप्ति शर्मा जी आपकी नजरो ने हिमालय की मौन आँखों में वह भी शान्त माहौल के परिवेश में
इतना कुछ पढ़ लिया और काव्यमय सीख मिल गयी कि अभिमान करो ना प्रतिकार करो | बहुत खूब 
Comment by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 5:07pm

अभिमान करो ना प्रतिकार करो 
दर्द से बिलखते पिघलते उस 
अटूट ह्रदय को टूटते देखा है मैंने । ,वाह दीप्ति जी बहुत बढ़िया भाव ,बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 17, 2012 at 4:30pm

जब दर्द हद से गुजर जाता है तो हिमालय भी सिहर जाता है ----बहुत सुन्दर भाव बहुत सुन्दर कविता लिखी है प्रिय दीप्ती जी 

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