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जय जय श्री हनुमान, शरण हम तेरी आये |
हे अंजनि के लाल, कुसुम श्रद्धा के लाये ||
जग में सारे दीन, एक तुम ही हो दाता |
तेरा सच्चा भक्त, सदा सुख को ही पाता || (१)

हे रघुवर के दूत, जगत है तेरी माया |
कण-कण में हे नाथ, रूप है तेरा पाया ||
शंकर के अवतार, देव तुम हो बजरंगी |
दुष्टों के हो काल, दीन-हीनों के संगी || (२)

किसका ऐसा तेज, फूँक दे क्षण में लंका |
कर दानव संहार, बजाये जग में डंका ||
हे हनुमत, श्रीराम, सदा हैं उर में तेरे |
तेरा मुख बस राम, नाम की माला फेरे || (३)

हे मेरे बजरंग, जपा जब नाम तिहारा |
कलि का भारी ताप, लगा है शीतल धारा ||
मैं बालक मतिमूढ़, न जानूँ पूजा तेरी |
इतनी विनती नाथ, क्षमा हों भूलें मेरी || (४)

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Replies to This Discussion

इस चर्चा ने मुझे काफी लाभान्वित किया । मेहनत जारी रहेगी ताकि जो मार्गदर्शन यहां मिला उसका उपयोग कर सकूं, सादर

आदरणीया मेरी प्राची दीदी जी सादर नमन!
आपने क्या लाख टके की युक्ति साझा किया है।बस वाह वाह निकल रहा है हृदय से।
हिन्दी छंद रचना के इस गूढ़ तथ्य से मैं पूर्णतया अनभिज्ञ था।बलिहारी जाऊं आप पर हजार बार।

प्रिय अनुज विन्ध्येश्वरी जी,

यह युक्ति व विशिष्ट सूत्र मेरे अल्प ज्ञानकोष में आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी द्वारा प्रदत्त है, जिसे उन्होंने ही कई रचनाओं में टिप्पणियों स्वरुप हम सबके साथ इस मंच पर सांझा किया है, अतः आपके इस भाव सम्प्रेषण व सम्मान का प्रवाह गुरुचरणों तक पहुँच सके मैं आपके भावों को ससम्मान यथोचित ज्ञानस्त्रोत तक प्रवाहित करती हूँ. 

हम सभी यूं ही सीखते रहे, एक दुसरे के ज्ञान से लाभान्वित होते रहें, इसी शुभेच्छा के साथ,

सस्नेह.

गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञान को सहेजना भी सत् शिष्य का ही कार्य है।और आपने उस ज्ञान को न केवल सहेजा है वरन् व्यावहारिक रूप में परिवर्तित भी किया है,जिसका श्रेय आदरणीय गुरुदेव श्री सौरभ जी के साथ आप की कृपापात्र शिष्या मेरी दीदी आदरणीया डॉ.प्राची सिंह को भी है।मैं आप दोनों के ही श्री चरणों में श्रद्धापूरित प्रणाम निवेदन करता हूं।

अह्होह ! भाई, हम सभी परस्पर सीखते हैं, सीख रहे हैं. और उसीके आदान-प्रदान का मंच है, अपना ओबीओ. इस मंच ने सभी को बहुत कुछ दिया है.

यह अवश्य है कि रचनाओं पर या मंच के आयोजनों में आयी टिप्पणियाँ मात्र ’वाह-वाही’ या ’वाही-तबाही’ साझा करने का साधन नहीं हैं.

हार्दिक शुभेच्छाएँ

पूज्य गुरुदेव श्री सौरभ जी सादर चरण स्पर्श!

कर्ता होने के बाद भी अकर्ता (यहां आपके संदर्भ में मानने) का भान होना ही गुरुत्व है गुरुदेव!
और सचमुच में वही है।

रोला छंद में हनुमान जी की वंदना बहुत अच्छा प्रयास लगा 

इस सद्प्रयास के लिए हार्दिक बधाई भाई कुमार गौरव अजितेंदु जी 

बहुत सुन्दर भजन रोला छंद में बहुत अच्छा लगा पढ़ कर बहुत बहुत बधाई कुमार अजीतेंदु जी आदरणीय सौरभ जी और प्राची जी की प्रतिक्रियां भी पढ़ी जो छंद सीखने वालों के लिए बहुत लाभप्रद हैं उनको भी बधाई 

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश जी 

सुन्दर छंद में स्तुति, बधाई स्वीकारे भाई अजितेंदु जी

हे मेरे बजरंग, जपा जब नाम तिहारा |
कलि का भारी ताप, लगा है शीतल धारा ||
मैं बालक मतिमूढ़, न जानूँ पूजा तेरी |
इतनी विनती नाथ, क्षमा हों भूलें मेरी

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण सर

हे मेरे बजरंग, जपा जब नाम तिहारा |
कलि का भारी ताप, लगा है शीतल धारा ||
मैं बालक मतिमूढ़, न जानूँ पूजा तेरी |
इतनी विनती नाथ, क्षमा हों भूलें मेरी || (४)

जय हो जय हो जय हो 

बधाई 

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