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प्रेम  नशा अरु प्रेम मजा सब, प्रेम कथा अरु प्रेम हि भक्ति व,

प्रेम हि भाव व प्रेम सुभाव व,प्रेम हि त्याग व प्रेम हि शक्ति व,

मीत भि प्रेम हि प्रीत भि प्रेम हि,प्रेम हि संग व साथ भि प्रेम हि,

प्रेम हि सत्य समाज भि प्रेम हि,प्रेम हि जीवन जीव भि प्रेम हि/

 

प्रेम प्रकाश व प्रेम विकास व,प्रेम हि दीपक प्रेम हि ज्योति व,

प्रेम हि बीज व प्रेम हि वृक्ष व, प्रेम हि पुष्प व प्रेम हि पर्ण व,

ज्ञान निदान व ध्यान भि प्रेम हि,प्रेम हि लाड दुलार भि प्रेम हि,

प्रेम हि काव्य व प्रेम हि छंद व, प्रेम हि आदि अनंत भि प्रेम हि/

*********

जहं चाह न कोई प्रेम नहीं, नहि प्रभु धाम तहाँ,

जहं प्रीत न कोई रीत नहीं,नहि प्रभु श्याम वहाँ,

ज्ञान नही कोई मान जहाँ, नहि प्रभु राम वहाँ,

जहाँ सत्य सनातन रुप न हो,नहि शिव नाम वहाँ/

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 11, 2012 at 4:57am

आदरणीय अशोक भाई जी, सादर अभिवादन !

प्रेम की बहुत ही सुन्दर व्याख्या पढ़ मन तृप्त हुआ!
Comment by Ashok Kumar Raktale on December 1, 2012 at 8:14pm

आदरणीय प्रदीप जी लड़ीवाला जी संदीप जी और आदरेया शालिनी जी आप सभी का हार्दिक आभार.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 1, 2012 at 4:03pm

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम
सुन्दर छंद रचे हैं आपने प्रेम से भरे हुए बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 1, 2012 at 3:54pm

जहं चाह न कोई प्रेम नहीं, नहि प्रभु धाम तहाँ,

जहं प्रीत न कोई रीत नहीं,नहि प्रभु श्याम वहाँ,

ज्ञान नही कोई मान जहाँ, नहि प्रभु राम वहाँ,

जहाँ सत्य सनातन रुप न हो,नहि शिव नाम वहाँ/

 

अति सुन्दर रक्ताले ये, सत्यम शिवम् सुन्दरम है,

देता बधाई तुमको यूँ,  प्रेम की ज्योति जो जगाई है ।

 

Comment by shalini kaushik on December 1, 2012 at 3:24pm

bahut sundar bhavabhivyakti .badhai

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 1, 2012 at 2:52pm

अति सुन्दर जग  प्रेम है मिल   करियो सब कोय 

संतन के गुण होत हैं क्रोध न करियो कोय 

बधाई सर जी, सादर 

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