आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर वन्दे |
ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 26 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | पिछले 25 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 25 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है | जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है |
इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होता है | इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-
विषय - हेमन्त ऋतु
आयोजन की अवधि- 8 दिसंबर दिन शनिवार से 10 दिसंबर दिन सोमवार तक
जैसा कि आप जानते ही हैं कि हेमन्त ऋतु (दिसम्बर-जनवरी) मार्गशीर्ष-पौष में आता है. शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर।
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हक़ीक़त का रूप | बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए | महा-उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है | साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं ।
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)
अति आवश्यक सूचना : OBO लाइव महा उत्सव अंक- 26 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा | यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 दिसंबर दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
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हवा के तीखेपन में
ज्यों बर्फ सी भरी है
बाहर जो निकलो होती
बदन में झुरझुरी है l .........
बस बस.........रात में बाइक चलाते समय यही लगता है....
सादर
धन्यबाद...सुभांशु जी.
सुंदर रचना, खूबसूरत अभिव्यक्ति...
धन्यबाद...निगम जी.
आदरणीया शन्नो जी ,
हेमंत ऋतू की उपस्थिति महसूस कराती इस तुकांत कविता हेतु हार्दिक बधाई
किरणें उतर के नभ से
शाखों से छन रही हैं.......बहुत सुन्दर पंक्ति
प्राची जी, आपका बहुत धन्यबाद कि आपको रचना पसंद आई.
वनजीव भटकते हैं
बेचैन से निर्जन में
पांखें सिकोड़ पंछी
उड़ते फिरें गगन में l
आदरणीया अग्रवाल जी, सादर बधाई
प्रदीप जी, आभारी हूँ आपकी.
आदरणीया शन्नो जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर तुकांत रचना हेतु बधाई आपको
धन्यबाद संदीप जी.
कविता रची है सुंदर
हम साथ साथ गायें
पतझड़ कहाँ है यारों
हेमंत ऋतु मनायें |
आदरेया शन्नो जी, बेहद सुंदर व प्रवाहमयी रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें !
सादर
अम्बरीश जी, मैंने गडबड कर दी ना ? :) हेमंत रितु में पतझड़ मिक्स हो गया :(
फिर भी आपकी सराहना व प्रोत्साहन हिम्मत देने वाले हैं. बहुत धन्यबाद !
मर-मर के जीना, और गिर-गिर के उठना
जीवन है यही लोगों, हो चाहें कोई बितना l
-शन्नो अग्रवाल
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