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जन सेवा

देख गरीबी भारत की,
फफक फफक मैं रो पड़ा,
क्यों अभिमान करूँ अपने पर,
अपने से ही , पूंछ पड़ा ।

शर्म नहीं आती क्यों उसको,
बड़ा आदमी कहता जो खुद को,
कोई बड़ा नहीं इस जग में,
परहित नहीं हैं,यदि कर्म में ।

लग जाओ, देश सेवा में,

उठो अभी,मत करो देरी,
खिल जाएगा जीवन नभ पर,
पूज्यनीय बन जाओगे ।

कष्टों को अंगीकार करो,
अपने को तुम मजबूत करो,
केवल एक प्रभू की सत्ता,
ऐसा समझ,तुम काम करो ।

जन सेवा ही प्रभु सेवा है,
रहे ध्यान इसका सदा,
जुट जाओ,डट जाओ इसमें,
अमरत्व की प्राप्ति करो ।

अपने सपने को भी तुम,
मेहनत कर साकार करो,
कुछ कर लेने के बाद ही,
जनसेवा पर काम करो ।

कोई नहीं पूंछता उसको,
है पद ज्ञान से हीन जो,
पहले बनो खुद मजबूत,
फिर सबकी सेवा करो ।

रखो नियंत्रण लालच पर,
जरूरत का ही ध्यान करो,
करके मन और तन प्रसन्न,
जग का तुम कल्याण करो ।

हैं अमर पूर्वज तुम्हारे,
रहे ध्यान इस बात का,
जन सेवा के द्वारा तुम भी,
अमरत्व को प्राप्ति करो ।

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Comment

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Comment by akhilesh mishra on April 4, 2013 at 4:44pm

आशीर्वचन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सौरभ पांडेय साहब ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2013 at 10:41pm

आपके प्रयास के लिए बधाई, भाई अखिलेशजी

Comment by akhilesh mishra on April 3, 2013 at 12:29pm

बहुत-बहुत धन्यवाद केवल प्रसाद जी,हौशला बढ़ाने के लिए !

Comment by akhilesh mishra on April 3, 2013 at 12:28pm

धन्यवाद मुकेरजी मैडम । 

Comment by akhilesh mishra on April 3, 2013 at 12:27pm

धन्यवाद मैडम ! आपका उत्साहवर्धन हम जैसे नौसिखियों के लिए बहुत भाग्य की बात होती है ।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 3, 2013 at 9:06am

अखिलेश मिश्र जी बहुत उच्च भाव से परिपूर्ण कविता हेतु बहुत- बहुत बधाई काश सभी इन बातो को समझे 

Comment by coontee mukerji on April 2, 2013 at 7:11pm

मिश्रा जी अच्छे भाव है ,सबका का मन ऐसा ही हो..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 6:00pm

आदरणीय, अखिलेश मिश्रा जी, आपकी रचना में सुंदर भाव हैं- ‘अपने सपने को भी तुम,
मेहनत कर साकार करो,
कुछ कर लेने के बाद ही,
जनसेवा पर काम करो ।‘

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