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"ओ बी ओ लाइव महा-उत्सव" अंक - 30 (Now Closed with 1721 replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर वन्दे.

 

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 30 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले 29 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 29  विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.

इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 30

विषय "शिशु/ बाल-रचना"

आयोजन की अवधि-  शनिवार 06 अप्रैल 2013 से सोमवार 08 अप्रैल 2013 तक

बाल-साहित्य है क्या ? कोई सजग समाज अपने शिशुओं और बच्चों से निर्लिप्त या अन्यमनस्क हो कर नहीं रह सकता. आज के शिशु और बच्चे ही कल को बड़े होने हैं. इन्हीं को कल की दुनिया को जीना और सँवारना है. बाल-साहित्य उनकी मानसिकता को आकार देने का सर्वोत्तम साधन है. दूसरे शब्दों में बाल-साहित्य कल के वयस्कों से सीधा संवाद बनाने की तरह है. इस लिहाज से बाल-साहित्य किसी दृष्टि से कम महत्वपूर्ण नहीं है. भारतीय परिवेश में गद्य का क्षेत्र तो प्राचीन काल में ही अति उच्च श्रेणी की बाल-कथाओं से समृद्ध हो गया था. शिशुओं के लिए आचार्य विष्णु शर्मा रचित संस्कृत भाषा में ’पंचतंत्र’ के जोड़ की कहानियाँ अवश्य ही किसी प्राचीन भाषा में नहीं हैं. इसी से यह समझा जा सकता है कि हमारा तब का समाज आने वाली पीढ़ी के लिए कितना सचेत था. पद्य के क्षेत्र में सूरदास तो बाल-साहित्य के आदि गुरु सदृश हैं. हिन्दी भाषा में भी मौलिक कहानियाँ भारतेंदु के समय से ही उपलब्ध होनी शुरू हो गई थीं. यानि, बाल-साहित्य का मूल आशय ही शिशुओं या बच्चों के लिए रचित सृजनात्मक साहित्य से है. बाल-रचनाओं का अर्थ कभी उपदेशात्मक रचनाएँ मात्र नहीं होता.  

दूसरे, हम कितने भी बड़े हो जाएँ, परन्तु बचपन की यादें कभी नहीं भूलतीं. सही ही कहा गया है, हर वयस्क में एक बच्चा जीता है. किसी में चुपचाप हाशिये पर पड़ा हुआ तो किसी में अति मुखर, अति प्रखर ढंग से जीता हुआ. उस बच्चे को संतुष्ट करना हर वयस्क का नैतिक कर्तव्य है. आज हिन्दी-साहित्य में बाल-साहित्य के रचनाकारों की संख्या भले ही कम प्रतीत होती हो, लेकिन बड़ों के लिए लिखने वाले कई-कई रचनाकारों ने अति उच्च स्तर की बाल-रचनाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है. आधुनिककाल के पद्य रचनाकारों में सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह ’दिनकर’, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, शिवमंगल सिंह ’सुमन’, हरिवंश राय ’बच्चन’, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, भवानीप्रसाद मिश्र, प्रभाकर माचवे, जयप्रकाश भारती, कन्हैयालाल नन्दन आदि ने भरपूर योगदान किया है.
 
तो आइये, हम इस बार का लाइव काव्य महोत्सव शिशु/ बाल-रचना पर केंद्रित करें. शिशुओं से सम्बन्धित उनकी मनोदशा को संतुष्ट करती, बच्चों की मनोदशा और सोच को मान देती रचनाओं से इसबार के त्रि-दिवसीय आयोजन को आबाद करें.
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं.  साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.


उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना : ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 30 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जस सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 06 अप्रैल दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय (Saurabh Pandey)
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय शुभ्रांशु जी,

इस कविता को लिखने के पीछे का उद्देश्य भी यही था .....कि रचना इस योग्य बन सके कि बच्चों की पाठ्य पुस्तकों में स्थान पा सके.

असल में कुछ दिन पूर्व अपने बेटे की कक्षा ३ की नयी पुस्तकों में जिल्द चढ़ाने से पहले, उसकी हिन्दी की किताब की सारी कवितायें पढ़ी थीं,..............यकीन मानिए मुझे बहुत दुःख हुआ था कवितायेँ पढ़ कर. चार में से सिर्फ एक कविता ही अपनी गेयता और कथ्य से मुझे संतुष्ट कर पायी थी... बाकी सब में न तो निर्बाध गेयता थी, और कथ्य भी जबरदस्ती समझौता करता सा लगता था.

बस उसी वेदना जनित मोटिवेशन से इस रचना का जन्म हो सका..

आपने उदेश्य की सार्थकता को मान दिया इस हेतु ह्रदय से आभारी हूँ. सादर.

आ. प्राची जी ,

आपने सही  कहा है. एक तो आज हिन्दी की किताबों में ना वो रचनाकार मिलते हैं  और ना ही वैसी रचनायें होती हैं...

गेयता के आधार पर ही आज भी क्लास 3 में याद की गयी कई कविता याद है...एक चार पन्नों की कविता थी..... हवा हूँ हवा मैं बसन्ती हवा हूँ...मजा आता था याद करने में...

बडे़ गौरव की बात होगी कि आपकी ये रचना मैं किसी पाठ्यपुस्तक में देखुँ..

चाँद, सितारे, धरती, अम्बर

जीव -जंतु वन उपवन सागर

ऋतु वर्णन ये सुमन तितलियाँ

खेल दिखाता हुआ प्रभाकर

बच्चों की खातिर यह कविता,उपयोगी मनोहारी है

परियों की दुनिया से न्यारी सुन्दर धरा हमारी है ...

आदरेया प्राची जी, सुंदर बाल-गीत हेतु शुभकामनायें ||

आपकी टिप्पणी करने के अंदाज पर आप हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय अरुण जी.....

मेरी रचना के सार को उसी गेयता में प्रस्तुत कर सार्थकता को अनुमोदित करने के लिए आपकी आभारी हूँ. सादर.

आदरणीया, डा0 प्राची सिंहजी सादर, बच्चों के लिए आपकी यह सुन्दर रचना विविध प्राकृतिक सौन्दर्य को समेटे है. अतएव बहुत- बहुत बधाई स्वीकारें।

आदरणीय सत्यनारायण जी 

रचना पर आपके आशीर्वचनों के लिए हार्दिक आभार. सादर.

आदरणीया प्राची जी, 

सादर

मार्ग प्रशश्त हुआ मेरा 

लिखने को मिली नयी दिशा  

सुन्दर गीत प्यारा प्यारा 

गायेगा अब पोता हमारा 

बधाई . 

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी,

रचना को , लेखनी को आपने जो मान दिया है, उसके लिए मैं हृदय तल से आभारी हूँ..

सादर.

जीवन का आधार धरा है, माँ सी हमें दुलारी है ...

परियों की दुनिया से न्यारी सुन्दर धरा हमारी है ..

 

अति सुंदर चित्रण ....बधाई Dr.प्राची .

रचना की सराहना और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया विजयाश्री जी 

अति सुन्दर और मनमोहक।

 

सादर,

विजय निकोर

ओबीओ लाइव महा उत्सव, अंक-30 में मेरी प्रथम प्रस्तुति :-

 

अहा ! बालपन, बहुत निराला |

सीधा – सादा, भोला - भाला ||

 

प्यास लगे तो मम-मम बोले

भूख लगे चिल्लावे , रो ले

मातु यशोदा के सीने लग

चुप हो सो जाता नंदलाला |

 

तुतली बोली , समझे मैया

रात-दिवस की ता ता थैया

जिद तो देखो अरे बाप रे !

मांग रहा चंदा का हाला ||

 

इसको खींचे, उसको पटके

बड़े नाज-नखरे नटखट के

तुलमुल-तुलमुल करता रहता

कैसे जाए इसे सम्हाला ||

 

पलभर में ही मी हो जाता

पलभर में ही खी हो जाता

उसका अपना शब्दकोश है

और व्याकरण मस्तीवाला ||

 

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
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"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
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