For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भिखारन की निष्ठा

भिखारन की निष्ठा
मेरे घर के करीब भिखारियों का एक परिवार रहता था. चार बच्चे और पति – पत्नी. सुबह तड़के ही सभी घर से निकल जाते और गोधूली बेला तक सभी वापस आ जाते.
एक दिन क्या हुआ कि पति और बच्चे तो आ गये लेकिन भिखारन को आने में देर हो गयी . उसके आते आते रात के आठ बज गये. सभी भूखे थे. अतः भिखारन ने जल्दी से चावल की हांडी चूल्हे पर रख दी. चावल जब पक गया तो उसने अपने पति और बच्चों को पहले खिला दिया. बाद में जब वह खाने बैठी तो देखा हांडी में चावल के साथ एक छिपकली भी पक गयी है. भिखारन के होश उड़ गए.
‘’ हे भगवान! दया करो! मैंने अपने परिवार को मौत का भात खिला दिया. अब क्या होगा? ‘’
उसने कातर नज़रों से अपने बच्चों की ओर देखा जो खाना खाते ही सो गये थे .पास में पति भी खर्राटे भर रहा था. भिखारन ने मन ही मन कुछ फ़ैसला किया और छिपकली को एक तरफ कर बचे-खुचे भात को नमक मिर्च मिलाकर खा लिया यह सोच कर कि अगर मरना है तो सभी साथ मरेंगे. वह रात भर जागकर सभी की ओर ताकती रही .
सुबह के पाँच बजे उसकी आँख लग गयी. एक तो दिन भर की थकान, उसपर रात भर का जागरण. वह गहरी नींद में चली गयी. बच्चों ने जब उसे झकझोर कर जगाया तो वह हड़बड़ाकर उठ बैठी. पहले तो उसे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जब होश आया तो वह जोर जोर से रोने लगी. अपने परिवार को जिंदा देख कर खुशी से उसकी रुलाई थम नहीं रही थी. आस-पास के लोग वहाँ इकट्ठे हो गये. जब लोगों को किस्से का पता चला तो सभी भिखारन की निष्ठा देख कर दंग रह गये.
( लखनऊ की एक सच्ची घटना - मेरी सहायिका मीनू ने सुनायी थी. मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 583

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on May 14, 2013 at 11:44am

भाई नीरज जी , आपका विश्लेषण मेरे लिये बहुत मायने रखती है . आप  मेरी मार्गदर्शन करते रहें ऐसी मेरी आशा है . सादर / कुंती .

Comment by बृजेश नीरज on May 11, 2013 at 12:53pm

आदरणीय कुन्ती जी बहुत सुन्दर और मार्मिक कथा। इसे साझा करने के लिए आपका आभार!
भारतीय संस्कारों में पली बढ़ी कोई भी स्त्री ऐसा ही करेगी। वह भिखारिन तो बाद में थी पहले वह मां और पत्नी थी और हर भारतीय स्त्री अपने परिवार से अपार स्नेह रखती है और कष्ट सहकर उसे सींचती है। ऐसे में उसे नष्ट होता कैसे देख सकती है। भारतीय स्त्री को नमन! इस कथा का शीर्षक 'भिखारिन की निष्ठा' कुछ ऐसा इंगित कर रहा है कि भिखारिन होने के नाते उससे निष्ठा की अपेक्षा नहीं थी।

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:27pm

मार्मिक किन्तु पारिवारिक मूल्यों को स्थापित करती कथा .......जिनकी आज हमारे समाज को बहुत ज़रुरत है।सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई कुंती जी।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 6:15pm

मार्मिक कथा 

सादर बधाई 

Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 7:57pm

पढ़ कर पारवारिक मूल्यों के प्रति आस्था से संस्कारित इस मिटटी के प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी ...यहाँ बात एक भिखारिन की निष्ठा की नहीं बल्कि एक पारिवारिक प्रेम की है ...हार्दिक धन्यवाद घटना को साझा करने के लिए 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 9, 2013 at 8:21am

जाको राखे सांइया मार सके नहि कोय ! बहुत ही ह्रदय विदारक घटना.सुन्दर प्रस्तुति. 

Comment by manoj shukla on May 8, 2013 at 10:37pm
सुन्दर प्रस्तुति आदर्णीया....और बडे ही खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है....हार्दिक बधाई स्वीकार करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 8, 2013 at 10:15pm

सच में पढ़ते पढ़ते तो एक बार मेरे भी होश उड़ गए थे पर बाद में अटकी सांस वापस आई शुक्र है सभी ठीक ठाक रहे किन्तु इस घटना ने एक माँ के ह्रदय  को खोल कर रख दिया जब परिवार ही नहीं रहेगा तो वो जीकर क्या करेगी ऐसी होती है माँ ,प्रिय कुंती जी हार्दिक बधाई ये घटना साझा करने के लिए। 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 8:33pm

आ0 कुन्ती जी, अतिसुन्दर, जाको राखे साइयां मार सके न कोय। बधाई स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
11 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
13 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service