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ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 27(Now closed with 788 replies)

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 27  में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

 

प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से साभार लिया गया है.

 

 

 

आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी.. और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि  छंदोत्सव का आयोजन मात्र भारतीय छंदों में लिखी गयी काव्य-रचनाओं पर आधारित होगा.  इस छंदोत्सव में पोस्ट की गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों के साथ कृपया सम्बंधित छंद का नाम व उस छंद की विधा का संक्षिप्त विवरण अवश्य लिखें.  ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.
 

नोट :-
(1) 20 जून 2013 तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, 21 जून 2013 दिन शुक्रवार से 23  जून 2013 दिन रविवार तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो. रचना भारतीय छंदों की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है. यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे और केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद की रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

अति आवश्यक सूचना :  आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन रचनाएँ अर्थात प्रति दिन एक रचना के हिसाब से स्वीकार की जायेंगीं. ध्यान रहे प्रति दिन एक रचना  न कि एक ही दिन में तीन रचनाएँ.  नियम विरुद्ध या निम्न स्तरीय प्रस्तुतियाँ बिना कोई कारण बताये या बिना कोई पूर्व सूचना के प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दी जायेंगी, जिसके सम्बन्ध में किसी किस्म की सुनवाई नहीं होगी, न ही रचनाकारों से कोई प्रश्नोत्तर होगा.

 

मंच संचालक

 

सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

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Replies to This Discussion


शब्दों की कमी कहाँ है  आदरणीय रक्ताले जी
लो इस बार तेरह हैं

 हा हा हा...........जवाब नहीं आपका..... 

छन्न पकैया छन्न पकैया, दूर शिकायत सारी |

उड़नखटोला उड़ता अब तो, ले तेरह कि सवारी ||

सुन्दर लय ताल में ललित छंद (छन्न पकैया ), वह भी चित्र के अनुरूप | बहुत बहुत बधाई स्वीकारे श्री अशोक रक्ताले जी -

छन्न पकैया छन्न पकैया, विकिट न गिरने देना,

देख इशारा करते वे भी,  बदनाम न हो जाना  |

छन्न पकैया छन्न पकैया, आंच न आने देना,

मैडल आ जावे भारत में, इतना तो अब करना |

सादर

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर आभार, आपकी सुन्दर छंदात्मक प्रतिक्रया के लिए, बहुत बहुत आभार. छंद के तुक पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है. 

छन्न पकैया छन्न पकैया, आंच न आने देना,

मैडल आ जावे भारत में, और नहीं कुछ लेना  |

आदरणीय अशोक भाईसाहब, आपकी संवेदनशीलता रचना की पंक्तियों से छलक-छलक कर आती दीख रही है.

सही कहा है आपने, खेल को अब खेल रहने ही कहाँ दिया है भाइयों ने ?!

छन्न पकैया छन्न पकैया, पूरा खेल दिखाओ |

आधे डंडे गिल्ली का क्या, राज हमें समझाओ ||.. . . हा हा हा हा.. ग़ज़ब !

//प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु होना अनिवार्य है//

ललित छंद या सार छंद के प्रत्येक चरण का अंत गुरु से हो तो उत्तम. दो गुरुओं से हो तो अति उत्तम. किन्तु दो गुरुओं से अंत का होना अनिवार्य नहीं है. चरणांत एक गुरु से भी मान्य है.

सादर

आदरणीय सौरभ जी सादर, मैंने अपनी सुविधा के लिए चरणान्त में दो गुरु लिख लिए होंगे उसी कारण यह दोष पूर्ण जानकारी लिख गया हूँ आपसे एवं सभी सदस्यों से क्षमा प्रार्थी हूँ. 

आपने सही जानकारी दी है इसे मैंने अपनी पुस्तिका में भी लिख कर सुधार कर लिया है.सादर आभार.

जी.. सच है खेल में जो खेल हो रहा है वह सचमुच खेल प्रमियों को निराश करता है.आधा खेल मैंदान में और आधा खेल मैदान के बाहर, इस अनुचित प्रवृत्ति पर रोक लगनी ही चाहिए. आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रया के लिए सादर आभार.

//सच है खेल में जो खेल हो रहा है वह सचमुच खेल प्रमियों को निराश करता है.आधा खेल मैंदान में और आधा खेल मैदान के बाहर//

सही कहा आपने, आदरणीय

सादर

जी...सादर.

छन्न पकैया छन्न पकैया, अब है किसकी बारी |

काल कोठरी उसे बुलाती, करले वह तैयारी ||...fix kar diya aapane to Ashok bhai..

आदरणीय अविनाश जी सादर, आपसे बहुत दिनों बाद किसी छंद पर प्रतिक्रया पाकर मन की ख़ुशी बाउंड्री पार हो रही है. सादर आभार, यूँ ही स्नेह बनाए रखें.सादर.

बहुत खूब रक्ताले साहब। दाद कुबूल कीजिए

आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, आपकी सराहना से लेखन श्रम सार्थक हुआ. सादर आभार.

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