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मेरे अजीज़ दोस्त भास्कर जी ! आपकी ग़ज़ल पढी, पढ़कर अच्छा लगा ! जैसा कि नवीन भाई जी ने कहा कि विद्यार्थी काल में हम सब कि शुरुयात तकरीबन ऐसी ही रही थी ! आपकी ग़ज़ल के एक शेअर पर मैं अपनी ईमानदाराना राय देना मैं अपना फ़र्ज़ समझता हूँ ! हो सकता है कि कुछ बातें आपको अच्छी न भी लगें, लेकिन अपनी सच्ची राय से आपको परिचित न करवाना मेरे नज़दीक किसी बे-इमानी से कम नहीं होगा !
योगराज जी ग़ज़ल के हर शेर पे अलग से अपनी राय जो आपने दी...उसके लिए में आपका बहुत आभारी हूँ
आज कर रही नयी तैयारी मुहब्बत
होगी फिर से कुंवारी मुहब्बत |1|
ये शेर लिखते वक्त मेरा भाव ये था
हर इंसान मुहब्बत को अपनी धारणा की चुंदरी पहनाके अपनी सुहागन बना लेता है
इधर मेरा प्रयास मुहब्बत को फिर से कुंवारी (धारणा रहित) बयां करने का था
आपने कहा
लगी जिसे आदत मांगने की
उसको है बेकारी मुहब्बत |6|
//वो शेअर जो सिर्फ गिनती पूरी करने के लिए ग़ज़ल में डाला गया हो, या वो शेअर जिसके बिना भी काम चल सकता हो उसको "भर्ती" का शेअर कहा जाता है ! आपका यह शेअर भी उसी श्रेणी का है !//
मुझे भी ऐसा ही लगता है इन्फेक्ट मुझे तो इससे पहले का खुद्दारी वाला शेर भ उसी श्रेणी का लगता है..मगर तीर कमान से निकल चुका था सो में कुछ न कर सका
मैंने सहज भाव से ये ग़ज़ल लिखी थी...खेद है के इसे निभा न सका ...आगे कोशिश करता रहूँगा..धन्यवाद
आप बहुत आगे जायोगे भास्कर भाई !
प्रिय भास्कर !
अच्छा प्रयास. ईमानदाराना कोशिश... कमी को मंजूर कर सुधारने का माद्दा आपके शायर को बुलंदी तक ले जायेगा. प्रभाकर जी जैसे जानकर से मैं भी कुछ न कुछ सीखता हूँ. आप जैसे नयी पीढ़ी के लोग हमें बताते हैं की हम कहाँ ज़माने से पीछे हैं. अप जिअसे तरुणों की राय भी जरूरी है.
बहुत खूब भास्कर साहब , क्या खूब कही है आपने , जिन्दगी का दाव, मुहब्बत को जुवारी और कुवारी बताना , वाह साहब बढ़िया लगा | बधाई , दाद कुबूल कीजिये |
नयी पौध को देख कर लहलहाते
किया याद हमने हमारी मुहब्बत
मुहब्बत का सही निरीक्षण..सुंदर!
बहुत खूब एक से बढ़कर एक शे’र कहे हैं आपने। बधाई
दिलों में जगा दे मुहब्बत सभी क़े
हमें चाहिए ऐसी प्यारी मुहब्बत |22|
वन्दे मातरम शेष धर तिवारी जी,
सुंदर ख्यालात से परीपूर्ण बेहतरीन गजल
दिखाया था मुझको कई बार सपना /उसी एक सपने पे वारी मोहब्बत |17|
//बहुत खूब शेषधर भाई जी !//
महीनो किया था मुहब्बत का पीछा /तभी तो हुई थी हमारी मुहब्बत |18|
//क्या बात है, क्या बात है भाई जी ! बड़े भाग्यशाली हैं आप कि महीनों में ही बात बन गई, वर्ना दुनिया तो उम्र भर लगी रहती है और पल्ले पड़ता कुछ नहीं ! ये रोमानी अंदाज़ भी सुन्दर है आपका //
लिया था जो पहचान कोयल को खोथे/तो कौए को लागी दोधारी मुहब्बत |19|
/ये कमाल का शेअर है भाई जी, ग़ालिबन "खोथे" शब्द का इस्तेमाल पहली दफा देखा है मैंने ग़ज़ल में ! /
नहीं पालता माफ़ करता न खुद को /हुई पाल क़े भी बेगारी मोहब्बत |20|
//बहुत खूब !//
नयी पौध को देख कर लहलहाते/किया याद हमने हमारी मुहब्बत |21|
//भाई जान, शेअर का भाव यकीनन दिल को छूने वाला है, लेकिन "किया याद हम ने हमारी मोहब्बत" में शब्दों के क्रम की वजह से "किया" और "हमारी" में "पुल्लिंग" व "स्त्रीलिंग" का बेवजह कनफ्लिक्ट हो गया है - थोडा ध्यान दें !
दिलों में जगा दे मुहब्बत सभी क़े/हमें चाहिए ऐसी प्यारी मुहब्बत |22|
//वाह वाह वाह - बहुत ही सुन्दर ख्याल !//
नयी दुल्हनो क़े खयालों जगी जो/दुलारी है कितनी पियारी मुहब्बत |23|
//बहुत ही डेलिकेट ख्याल है यह शेषधर भाई जी, ऐसी पकड़ के लिए बहुत पैनी नज़र चाहिए होती है !//
छुपे घोंसलों में रहें डर क़े बच्चे /लिए चोंच चारा पधारी मुहब्बत |24|
//वाह वाह वाह, क्या दृश्य चित्रण किया है शेषधर भाई जी ! पूरे का पूरा मन्ज़र नज़रों के सामने घूम गया ! इसको कहते हैं असली शेअर !//
/
भरी दोपहर में थका सा दिखूं तो जबीं पोंछ आँचल निहारी मुहब्बत |25|
//भाई जी "ज़बीं पोंछ आँचल" में बात कुछ "किल्यर" न हुई ! यहाँ "ज़बीं" ने "आँचल" को पोंछा या कि "आँचल" ने "ज़बीं" को - समझना थोडा मुश्किल हो रहा है ! //
दिखाया था मुझको कई बार सपना
उसी एक सपने पे वारी मोहब्बत ..
भाई शेष धार जी .... ये प्रेम की इंतेहा है ... इश्क़ के समुंदर में डूब कर ऐसे शेर मिलते हैं ... बहुत लाजवाब ...
महीनो किया था मुहब्बत का पीछा
तभी तो हुई थी हमारी मुहब्बत ||
Wah ! Wah!
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