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अच्छा प्रयास. सम-सामयिक विषयों को लेकर लिखना एक चुनौती होता है जिसे आपने संतुलित तरीके से निभाया है.
आदरणीय सलिल जी! आप को प्रणाम. आप जैसे अनुभवी एवं गुणी कलमकार से मिला प्रोत्साहन काफ़ी उर्जा दायी है.
आपको धन्यवाद|
सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई।
धन्यवाद धर्मेन्द्र जी !!!!!!
shekhar ji..bahut hi badhiya...badhai aapko..
धन्यवाद Veerendra जी !!!!!!
अमन चैन ख़ुशियां सदा हो यहां पर,
मेरे मुल्क को दाता रखना सलामत।
बेहतरीन शे'र , ख़ूबसुरत अशआर बधाई।
Dhanyavad Dani ji !
प्रिय शेखर भाई, नवीन भाई जी का आदेश था की मैं आपकी ग़ज़ल पर अपनी नाचीज़ राय अवश्य दूँ ! तो उनकी आज्ञा शिरोधार्य करते हुए आपकी रचना के बारे में अपने विचारों से आपको अवगत करवा रहा हूँ !
दिलों में सदा इसकी चलती हुक़ूमत |
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत||
//दोनों ही मिसरे अपने आप में मुकम्मिल हैं ! लेकिन एक दूसरे के साथ इनका सामंजस्य नहीं है, यानि की तरही मिसरे के साथ आपके मिसरे की गिरह ढीली रह गई ! दरअसल शेअर के दोनों मिसरे एक दूसरे को कुशन देने वाले हों तभी शेअर में असली जान पड़ती है ! अब इस शेअर के हवाले से देखें, "खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत" को पहला मिसरा अपने आप में मुकम्मिल होने के बावजूद भी वो कुशन नहीं दे पाया जो यह हाईलाईट करता की मोहब्बत को खुदा की दस्तकारी क्यों कहा गया है ! //
मैं कूचा ए जानां से जब भी हूँ गुज़रा |
बदन में अज़ब सी हुई है हरारत ||
//वाह वाह - बहुत कोमल भाव !//
नही हुक्मरानों को क्यूँ शर्म आती|
सरेआम लुटती है बहनों की अस्मत||
//बात बिलकुल सत्य है, लेकिन यह सपाटबयानी की श्रेणी में आती है ! यह शेअर मात्र भर्ती का लगता है, इस शेअर के बिना भी काम चल सकता था !//
दबे पांव लूटा जिन्होने वतन को|
सरेआम खुल के रही उन की कुलफत||
// बहुत खूब, "कुलफत" जैसे आंचलिक शब्द ने आपके शेअर को पुरनूर कर दिया है - इसके लिए आपको बधाई !!//
क्यूँ टकराते हो जात मज़हब पे भाई |
बिना बात की पाल ली है अदावत ||
//दूसरे मिसरे में "पाल ली" में "पाल" का अंतिम कोंसोनेंट "ल" और "ली" का "ल" क्योंकि सवर्गीय हैं इस लिए "पाल ली" का उच्चारण "पाल्ली" की तरह हो रहा है - जो की एक ऐब माना गया है इल्म-ए-गजल में ! कृपया भविष्य में इस ओर भी ध्यान दीजियेगा ! //
सितारों को देखो हैं लाखों करोड़ों |
कभी ना झगड़ते लो इनसे नसीहत ||
/क्या कमाल की उदहारण दी है - वाह वाह वाह !//
हैं चेहरे तो उजले मगर दिल हैं काले|
अमीरों की यारो, यही है हक़ीकत||
//बहुत खूब !//
ये आज़ादी जो है शहीदों ने बक्शी |
दिलोजाँ से इसकी करो तुम हिफ़ाज़त||
//बहुत खूब !//
करो यार तौबा हरिक उस खुशी से|
कि ईमान इन्साँ का हो जिसकी कीमत||
//क्या बात है
करो शुक्र दिल से पिता मातु का तुम|
तुम्हारी है हस्ती उन्ही की बदौलत ||
बुजुर्गों की इज़्ज़त पे जो वार कर दे|
करो ना कभी कोई ऐसी हिमाकत||
//ऐसे पवित्र विचार और भाव ही हिंदी ग़ज़ल को समृद्ध करेंगे, वाह वाह !//
अमन चैन खुशियाँ सदा हो यहाँ पर|
मेरे मुल्क को दाता रखना सलामत||
//आमीन - सुम-आमीन !!//
बहुत खूब शेखर जी , आपको सुनना वाकई रुचिकर है | बधाई ..
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