For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-40

परम आत्मीय स्वजन,

"ओबीओ लाइव तरही मुशायरा" के 40 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | 

मुशायरे के नियमों में कई परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें | 

इस बार का तरही मिसरा, हिन्दुस्तान के मशहूर शायर जनाब इकबाल अशर की एक ग़ज़ल से लिया गया है, पेश है मिसरा-ए-तरह...

"इक आफताब के बे बक्त डूब जाने से"

इ/1/का/2/फ/1/ता/2/ब/1/के/1/बे/2/वक्/2/त/1/डू/2/ब/1/जा/2/ने/2/से/2

1212 1122 1212 22 

मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फेलुन 

(बह्र: मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर )

रदीफ़ :- से 
काफिया :-  आने  (जाने, खाने, ज़माने आदि)
अंतिम रुक्न 22 को 112 भी किया जा सकता है

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है. मुशायरे की शुरुआत दिनांक 30 अक्टूबर, दिन बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 31 अक्टूबर, दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें :

  • ओबीओ लाइव तरही मुशायरा में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी.
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए.
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें. बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा.
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है.
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, बल्कि सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें. अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक  अथवा किसी प्रकार का सिम्बल आदि भी न लगाएँ. ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं हैं, अपनी रचना वरिष्ठ साथियों की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी.
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें. किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.

विशेष अनुरोध :

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें.  ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियाँ अवश्य दूर कर लें. मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें. ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है. सदस्यगण ध्यान रखें कि संशोधन उनके लिए एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार.

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 अक्तूबर दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो  www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार  sign up  कर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 17515

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

सवाल पूछ रहे हो जो इस ज़माने से
समझ सके तो कहोगे कि हैं पुराने से।

 

सदा बने हैं मेरे काम मुस्कराने से
बना न काम कभी त्यौरियॉं चढ़ाने से।

 

दिलों पे राज किया चन्द‍ घर बसाने से
मिला न कुछ भी कभी बस्तियॉं मिटाने से।

 

असर हुआ तो, मगर देर तक नहीं ठहरा
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से।

 

हवायें तेज बहुत हैं जरा संभल के चलो
यहॉं गिरे हैं कई चाल डगमगाने से।

 

जिसे यकीं था वही पार हो सका लेकिन
कहॉं वो पार हुआ जो डरा दहाने से।

 

उठा न सूर्य मगर रौशनी दिखी सबको
करिश्मा ये भी हुआ दीप आजमाने से।

 

क्षितिज की धार चमकने लगी तो वो बोला
हुआ है वक्त निकलते हैं फिर ठिकाने से।

 

नदी के घाट पे ठहरी हैं कश्तियॉं सुन कर
नगर के लोग सभी हो गये सयाने से।

 

नया है वक्त नयी है विकास की भाषा
मिला है मॉल कई झुग्गियॉं मिटाने से।

 

नदी कभी थी मगर सूखकर बनी नाला
नगर के दिल पे घनी बस्तियॉं बसाने से।

 

मौलिक व अप्रकाशित

वाह वाह !!!! आदरणीय तिलक राज सर , मुशायरे की शुरुवात आपकी बेहतरीन गज़ल से हुई , बहुत खूब सर जी !!! आपको ढेरों बधाई !!!

दिलों पे राज किया चन्द‍ घर बसाने से
मिला न कुछ भी कभी बस्तियॉं मिटाने से।

नदी कभी थी मगर सूखकर बनी नाला

नगर के दिल पे घनी बस्तियॉं बसाने से।  - ये दोनो शेर दिल के बहुत क़रीब लगे !!!! दिली दाद कुबूल करें !!!!

धन्‍यवाद गिरिरा जजी। 

//दिलों पे राज किया चन्द‍ घर बसाने से
मिला न कुछ भी कभी बस्तियॉं मिटाने से// वाह आदरणीय तिलकराज सर बहुत खूब

//असर हुआ तो, मगर देर तक नहीं ठहरा
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से।//खूबसूरती से गिरह लगाई है सर 

इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें

धन्‍यवाद शिज्‍जू जी।

आदरणीय तिलकराजजी, ग़ज़ल केलिए बधाई.  शेर दर शेर बढ़ना अच्छा लगा.

क्षितिज की धार चमकने लगी तो वो बोला
हुआ है वक्त निकलते हैं फिर ठिकाने से।

नदी के घाट पे ठहरी हैं कश्तियॉं जबसे
नगर के लोग सभी हो गये सयाने से।... .  . .विशेष बधाई.

आयोजन के शुभारम्भ के लिए विशेष बधाई.

सादर

धन्‍यवाद सौरभ जी। आपकी ग़ज़ल का इन्‍तज़ार है। 


सदा बने हैं मेरे काम मुस्कराने से
बना न काम कभी त्यौरियॉं चढ़ाने से।

***

उठा न सूर्य मगर रौशनी दिखी सबको
करिश्मा ये भी हुआ दीप आजमाने से।

***

नदी कभी थी मगर सूखकर बनी नाला
नगर के दिल पे घनी बस्तियॉं बसाने से।

***

नया है वक्त नयी है विकास की भाषा
मिला है मॉल कई झुग्गियॉं मिटाने से।

वाह आदरणीय कपूर सर बहुत बेहतरीन ग़ज़ल 

शुक्रिया वन्‍दना जी।

वाह वाह ... आदरणीय, बहुत ख़ूब आग़ाज़ किया है आप ने. बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है ... बधाई    

धन्‍यवाद नीलेश जी।

आदरणीय तिलक जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के साथ मुशायरे का आगाज़ करने के लिए कोटि कोटि बधाइयां| ग़ज़ल बहुत ही ख़ूबसूरत हुई है, सारे शेर पसंद आये| 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service