परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 42 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | बहुत पहले एक ग़ज़ल रेडिओ पर बजती थी, "मुस्कुराए हुए एक ज़माना हुआ" , उस समय ग़ज़ल की समझ नहीं थी तो हम उसे गाने की तरह सुनते थे | धुन इतनी प्यारी कि पहली बार ही ज़बान पर चढ़ जाए, शेर इतने ख़ूबसूरत कि आज भी याद हैं..पर शायर का नाम नहीं याद | अगर किसी को इस ग़ज़ल के शायर का नाम याद हो तो ज़रूर बता दे मैं यहाँ अपडेट कर दूंगा | इस ग़ज़ल के शायर से माफ़ी के साथ मिसरा-ए-तरह इसी ग़ज़ल से लिया जा रहा है|
"जब से गैरों के घर आना जाना हुआ"
जब/२/से/१/गै/२ रों/२/के/१/घर/२ आ/२/ना/१/जा/२ ना/२/हु/१/आ/२
२१२ २१२ २१२ २१२
फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
(बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 दिसंबर दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 दिसंबर दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय जितेन्द्र जी ग़ज़ल पढने और पसंद करने के लिए शुक्रिया|
छटपटाता रहा आँख में रात भर
ख़्वाब देखे कोई अब ज़माना हुआ
लोग तरसा किये जिस लिए उम्र भर
मेरे जाने पे वो मुस्कुराना हुआ
अदरणीय राणा प्रताप जी उम्दा गज़ल हुई है...
ये दो अशआर खास तौर पे पसंद आए
आपको ढेरों बधाईयाँ.....
मोहतरम नादिर खान साहब नवाजिश है आपकी
छटपटाता रहा आँख में रात भर
ख़्वाब देखे कोई अब ज़माना हुआ |
वाह, क्या बात है ! बढ़िया ग़ज़ल हुई है भाई जी |
दाद क़ुबूल कीजिये
आशीष भाई जी ग़ज़ल को समय देने के लिए शुक्रिया
दिली दाद कुबूलें इस शानदार गजल के लिए
छटपटाता रहा आँख में रात भर
ख़्वाब देखे कोई अब ज़माना हुआ
ये शेअर खासतौर से पसंद आया।
शकील भाई ग़ज़ल पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
वाह वाह आ० राणाप्रताप जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है..
उसका लहजा बदलने लगा जाने क्यों
जब से गैरों के घर आना जाना हुआ....................गिरह लाजवाब तरह से लगाई गयी है ..बहुत सुन्दर
छटपटाता रहा आँख में रात भर
ख़्वाब देखे कोई अब ज़माना हुआ......................बहुत गहरी बात..सुन्दर
आशियाने की हम फ़िक्र करते नहीं
हमने चाहा जहां आबो दाना हुआ......................इस शेर की तासीर बहुत पसंद आयी
बहुत बहुत बधाई
आदरणीया डा ० प्राची जी शेरो को पसंद करने हेतु आभार|
आदरणीय राणा सर ..आशियाने की हम फ़िक्र करते नहीं
हमने चाहा जहां आबो दाना हुआ....आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर पर बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें ..सादर
आदरणीय डा ० साहब ग़ज़ल को मान देने के लिए शुक्रिया|
तेरा अंदाज़ क्यों फलसफाना हुआ
तू भी क्या शायरी का दीवाना हुआ
छटपटाता रहा आँख में रात भर
ख़्वाब देखे कोई अब ज़माना हुआ.... वाह !! बहुत खूब आदरणीय राणा प्रताप जी बहुत -२ बधाई प्रेषित है ..
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