For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल महफ़िल की नज़र

ज़िन्दगी का पलसफा है।
मौत हर ग़म की दवा है।

एक ही खामी है उसमे।
सच हमेशा बोलता है।

दूर मूझसे हो गयी जो।
ज़िन्दगी वो बेवफा है।

राहे सब आसां हुई है।
साथ जब से हौसला है।

काम भर ही बोलिए बस।
बे सबब क्या बोलना है।

हर मुसीबत से लड़ो यूँ।
साथ में समझो खुदा है।

लाज रखना मेरे मौला।
आज खुद से सामना है।

अप्रकाशित और मौखिक

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2014 at 2:42am

ग़ज़ल सधी हुई है. यों, आपने प्राप्त टिप्पणियों का जवाब तक नहीं दिया है.

शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 23, 2014 at 9:36pm

बहुर सुन्दर ग़ज़ल हुई है केतन जी 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:42pm

भाई केतन जी खूबसूरत ग़ज़ल है बधाई स्वीकार करें

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 22, 2014 at 11:22am

केतन भाई बहुत ही सुन्दर अशआर बेहतरीन ग़ज़ल दिली दाद कुबूल फरमाएं. अन्य मित्रजनों के कहे पर ध्यान दें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 21, 2014 at 7:22am

आदरणीय साहिल भाई , सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 10:02pm

आदरणीय साहिल भाई , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , बहुत बधाई ॥ टंकण की गलतियाँ ज़रूर सुधार लें ॥

Comment by coontee mukerji on January 20, 2014 at 3:18pm

लाज रखना मेरे मौला।
आज खुद से सामना है।.....बहुत सुंदर

Comment by vandana on January 20, 2014 at 6:33am

काम भर ही बोलिए बस।
बे सबब क्या बोलना है।

हर मुसीबत से लड़ो यूँ।
साथ में समझो खुदा है।

लाज रखना मेरे मौला।
आज खुद से सामना है।

बहुत बढ़िया भाव हैं ग़ज़ल के आदरणीय 

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 2:47am

सुन्दर ग़ज़ल है परन्तु टंकण त्रुटियों ने मज़ा किरकिरा कर दिया ....

Comment by ajay sharma on January 19, 2014 at 10:42pm

ज़िन्दगी का पलसफा है।
मौत हर ग़म की दवा है।

एक ही खामी है उसमे।
सच हमेशा बोलता है।

दूर मूझसे हो गयी जो।
ज़िन्दगी वो बेवफा है।

राहे सब आसां हुई है।
साथ जब से हौसला है।

काम भर ही बोलिए बस।
बे सबब क्या बोलना है।

हर मुसीबत से लड़ो यूँ।
साथ में समझो खुदा है।

लाज रखना मेरे मौला।
आज खुद से सामना है।  

kya gazal huyi hai ......bahut bahut hi umda .....kuch typing ki mistakes hain sudhar bhi ho  jayega .......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service