ओबीओ लखनऊ चैप्टर का पादप कुछ अधिक पुष्पित पल्लवित हो इस आशा के साथ कानपुर की सर जमीं पर इसका आयोजन किया गया । मेरी और कानपुर की ही ओबीओ की सदस्या आ0 मीना जी की हार्दिक अभिलाषा थी कि एक काव्य गोष्ठी का आयोजन हमारे शहर कानपुर मे भी किया जाय जिसे लखनऊ चैप्टर के संयोजक आ0 डॉ शर्देंदु मुखर्जी जी एवं कार्यकारी सदस्य आ0 बृजेश नीरज जी ने सहर्ष स्वीकार किया और हमारे आग्रह को मान दिया । फलस्वरूप गोष्ठी का आयोजन 19 जनवरी रविवार को कानपुर के कनिष्का होटल मे सम्पन्न हुआ ।कार्यक्रम का शुभारंभ माँ शारदा की प्रतिमा को माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ । आ0 अनीता मौर्य जी ने मधुर स्वर मे सरस्वती वंदना गाकर सबको सम्मोहित किया ।
कार्यक्रम का संचालन आ0 बृजेश ' नीरज ' जी ने किया । कार्यक्रम की अध्यक्षता कानपुर से वरिष्ठ गीतकार एवं भूतपूर्व वायु सैनिक आ0 राम कृष्ण चौहान जी ने की । मुख्य आतिथ्य स्वीकार किया लखनऊ से आए आ0 नरेंद्र भूषण जी ने ।
विशिष्ट अतिथियों मे लखनऊ के गण मान्य डॉ अनिल मिश्र जी , डॉ कैलाश निगम जी , आ0 मधुकर अस्थाना जी , कानपुर से आ0 शैलेंद्र शर्मा जी ने कार्यक्रम की शोभा बढाई ।
जिसमे ओबीओ परिवार के लखनऊ क्षेत्र के सभी सदस्य आ0 डॉ शर्देंदु मुखर्जी जी , आ0 कुंती दीदी , आ0 प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी , आ0 बृजेश ' नीरज ' जी , आ0 केवल प्रसाद 'सत्यम ' जी ,आ0 राहुल देव , आ0 एस सी ब्रम्ह्चारी जी , आ0 संध्या सिंह जी ने अपनी उपस्थिति से हमे अनुगृहीत किया । लखनऊ से ही आ0 आदित्य चतुर्वेदी जी , राजर्षि त्रिपाठी जी , प्रदीप शुक्ल जी , अनिल ' अनाड़ी ' जी , प्रदीप शुक्ल ' गोबर गणेश ' जी , पी के गंगवार जी , एवं विश्व विधायक साप्ताहिक समाचार पत्र से श्री मृत्युंजय गुप्त जी का आगमन अनुगृहीत कर गया ।
कानपुर से आए साहित्य कारों मे आदरणीय देवेंद्र ' सफल ' जी , आ0 गिरिजा शंकर त्रिपाठी जी , आ0 राजेन्द्र अवस्थी जी ,आ0 नवीन मणि त्रिपाठी जी , करुणावती साहित्य धारा के संपादक आ0 आनंद विक्रम त्रिपाठी जी , काव्यंजलि के संस्थापक आ0 गोविंद नारायण शांडिल्य जी ,आ0 ब्रिज नाथ श्रीवास्तव जी , अनीता मौर्य , चाँदनी पांडे ,हेमंत पांडे , राहुल शुक्ल , मनीष'मीत ' , हर्ष वर्धन त्रिवेदी , आ0 सुरेन्द्र 'शशि ' , बी डी सिंह ' सत्य प्रिय ' कुमार सूरज , राजकुमार सचान , वैभव कठियार , सुरेश साहनी , गीतकार श्री मोहन लाल गौतम जी , आ0 अल्का मिश्रा , कल्पना बाजपेई , श्री मोहन सिंह कुशवाहा , सर्वेश पाठक एवं अन्यान्य साहित्य प्रेमी उपस्थित हुए ।
अध्यक्ष श्री राम कृष्ण चौहान ने एक गीत सुनाया
कुछ भी कहने मे बेबस है
अंदर ही अंदर दहता है
घुटन बेबसी लाचारी मे
जाने वह क्या क्या सहता है
ऐसे मे यदि प्यार भरे दो
बोल कहीं कोई क़हता है
मानव की क्या बात , देवता
भी उसी का होकर रहता है ।
गीतकार मोहन लाल गौतम जी के मोहक गीत की पंक्तियाँ :-
सज धज कर साजन आए द्वारे
मैंने खोले हृदय किवारे
खुल गई आँख सेज है सूनी
नैना बस दो बूंद है धारे ।
आदरणीय देवेंद्र ‘सफल’ जी की सम्मोहित करती पंक्तियाँ :
किस माटी की बनी हुई हो ,
तुम कैसे सहती हो पीर
कैसे ये दुर्दिन निभाती
अम्मा तुम कितनी गंभीर
कवि गिरिजा शंकर त्रिपाठी जी की पंक्तियाँ :-
बांध दई बाज संग जीवन की नईया
दहेज बलि चढ़ि गई गाँव की गौरईया
एक तुकबंद :-
तुलना की विषम तराजू पर
भावों के मांस पिंड रख कर
तौलता कसाई जब मेरे
उर के भावों को खंडित कर
विश्वासों की बेहोशी मे जब
मुझको काट दिया जाता
हेमंत पांडे जी की व्यंग्यात्मक पंक्तियाँ :-
जो देख के दर्द भी नारों मे खड़े है
मै जानता हूँ किसके इशारों मे खड़े है
नेताओं के पुतले जो दिन रात फूंकते है
वो भी अब टिकट कतारों मे खड़े है
आ0 मीना धर जी की इस कविता ने खूब तालियाँ बटोरी :-
नहीं आता मुझे तुकांत अतुकांत
नहीं आता मुझे छंद अलंकार
लिखती हूँ मै भागते दौड़ते
बच्चों को स्कूल भेजते
आफिस जाते पति को टिफिन पकडाते
आटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते
ब्लाउज की आस्तीन से पसीना पोंछते
अपनी भावनाओं को दिल मे छिपाते
मुसकुराते , सारा दिन की थकान लिए
रात मे बिस्तर तक आते आते
लिख कर पूरी कर ही लेती हूँ
अपनी कविता ... गृहणी हूँ न ... गृहणी हूँ न
बस ऐसे ही लिखती हूँ अपनी कविता ।
अनीता मौर्य जी की पंक्तियाँ : -
लड़खड़ाए कदम मुझे हाथ दे
अपने सुख दुःख के पल हम चलो बाँट ले
यूं ही कट जाएगा जिंदगी का सफर
मै तेरा साथ दूँ तू मेरा साथ दे
मनीष ‘मीत’ जी ने गज़ल सुनाई :-
कोरे मन के कागज पर
जब सबने कुछ पैगाम लिखा
राधा ने घनश्याम लिखा
मैंने तेरा नाम लिखा
चाँदनी पांडे जी ने गजल से मोहक समां बांधा :-
खुशी ने ख़ुदकुशी कर ली एक तेरे दूर जाने से
गमो को जब्त कर तबस्सुम ही बहाना है
बड़ा संगीन किस्सा है बहुत लंबा फसाना है
कभी वापस जो आओगे तुम्हें रोकर सुनाना है ।
राहुल शुक्ल जी की गजल लुभावनी रही :-
तुझसे टूटा तो मै बिखर जाऊंगा
तू ही ये सोच कि किधर जाऊंगा
तेरे दिल तक तो है मंजिल मेरी
उस तक न पहुंचा तो मै बहक जाऊंगा
अन्नपूर्णा बाजपेई का घनाक्षरी छंद :-
छलक छलक जाती हैं अँखियाँ प्रभुश्याम
आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ
ब्रज के कन्हाई का भरोसा मिल गया
खुशी न समानी मन मानी हुई जाती हूँ ।
आ0 बृजेश ‘नीरज’ जी की रचना ने श्रोताओं को दुबारा सुनने पर विवश किया :-
गाँव नगर मे हुई मुनादी
हाकिम आज निवाले देंगे
आ0 नवीन मणि त्रिपाठी जी रचना की कुछ पंक्तियाँ :-
हाँ यही सच है
आज पंडित महा दलित हो गया है
आ0 केवल प्रसाद ‘सत्यम’ जी की कुण्डलिया ने बहुत लुभाया :-
सरसइया के घाट पर करके गंगा स्नान
दान पुण्य परमार्थ से अर्जित करते मान
अर्जित करते मान शान संस्कृति का रखते
दीन हीन के साथ समृद्धि का योग रखते
देश करे अभिमान कानपुर मंझला भैया
उद्योगों का नगर तीर गंगा सरसइया ।
आ0 अनिल मिश्र ‘अनाड़ी’ जी की चुटीली रचना ने खूब हँसाया :-
जिंदगी होई गए झंडू बाम भैया
आ0 ‘गोबर गणेश’ जी की रचना दहेज लोभियों पर करारा व्यंग्य करती दिखी :-
जो कुछु देहो तुम
अपने बिटिया दामाद का देहो
हमका का देहो
आ0 प्रदीप शुक्ल जी ने जीवन संगिनी पर बहुत ही सटीक रचना सुनाई
समयाभाव के कारण हम कई कवि मित्रों एवं वरिष्ठ जनों को नहीं सुन पाये । समारोह को सफल बनाने मे सहयोगी रहा हमारा ओबीओ परिवार, जिसके सभी सदस्य लखनऊ से कानपुर की सर जमी पर पहुंचे थे एवं कानपुर सभी मित्र जिनके बिना सब असंभव था । इस तरह का आयोजन हमेशा होता रहे इस आशा के साथ सभी एक दूसरे से विदा हुए ।
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सादर आभार आ० सविता जी
वाह !! वाह !! आ0 सविता जी बहुत खूब । आपको बधाई इस रचना के लिए , सच इस ओर तो ध्यान गया ही नहीं ।
आभार आपका ....आप वहा उपस्थित थे इस लिए ....हम तो चित्र देख कयास लगा रहे थे कैसा गया
आ० अन्नपूर्णा जी, आयोजन की वृहद रिपोर्ट पढ़ कर बहुत प्रसन्नता हुई. वहाँ पेश की गई रचनायों के अंश पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा, मैं इन अंशों के माध्यम से आयोजन की ऊर्जा को बहुत अच्छे से महसूस भी कर पा रहा हूँ. इस सफल आयोजन के लिए आपको और बाक़ी सभी सुधि साथियों को हार्दिक बधाई।
आदरणीय योगराज जी आपका हार्दिक आभार ,अगले आयोजन मे आप सभी का मै इंतजार करूंगी और स्वागत करना चाहूंगी । सादर ।
सोचना अलग बात है और उस पर अमल करना अलग बात | मै लखनऊ की गोष्ठी मे नही जा पाती थी तो सोचती थी कि काश ये गोष्ठी कानपुर मे होती ..मेरी इस सोच को अमली जामा पहनाया आ० अन्नपूर्णा जी ने ..उनकी लगन और मेहनत का नतीजा था कि ओबीओ लखनऊ चैप्टर की गोष्ठी कानपुर मे हुई और सफल रही इसके लिए बहुत बहुत बधाई आ० अन्नपूर्णा जी को | आ० बृजेश जी से मै भी सहमत हूँ ..आ० सौरभ सर आ० बागी जी और आ० वीनस जी की कमी खली ..अपने वरिष्ठों को ना सुन पाना भी बहुत खला | मैंने अपनी रचना बहुत डरते डरते पढ़ी थी उम्मीद नही थी कि सराहना मिलेगी पर उम्मीद से बहुत ज्यादा मिली ..मै वहाँ उपस्थित सभी सुधीजनों की हृदयतल आभारी हूँ आप सभी की तालियों और वाहवाहियों से मै वहाँ भी भावुक हो गई थी और यहाँ रिपोर्ट पर आप सब का जो स्नेह मुझ पर बरस रहा है वो पढ़ कर भी भावुक हो रही हूँ | आप सभी का स्नेह यूँ ही मिलता रहेगा यही उम्मीद करती हूँ | अन्नपूर्णा जी का पुन: आभार और ढेरों शुभकामनाएँ
आ0 मीना दी आपका सहयोग भी कम नहीं है । आपकी बातें मुझे नई ऊर्जा से भर देती थी । आपका स्नेह एवं आशीर्वाद यूं ही मिलता रहेगा ।
मेरी मूछ कविता का उल्लेख भले इस रिपोर्ट में न हो पर आदरणीया द्वारा सफल आयोजन इस बात का प्रमाण है की जैसी आशंका थी की धरती पर ये आयोजन लगातार हो नहीं पायेंगे. निर्मूल साबित हुई है. और मेरी मूछ का मान रखा . बधाई कानपुर .
आदरणीय कुशवाहा जी आपकी कविता की पंक्तियाँ मै भूल गई हूँ , आपका आभार होगा आप अपनी कविता की पंक्तियाँ रिप्लाई बॉक्स मे डाल दीजिये ।
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