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मै पागल मेरा मनवा पागल

मै पागल मेरा मनवा पागल

मै पागल  मेरा मनवा  पागल, ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

आज फरिश्ता भी गर कोई

इस  धरती पर  आ  जाए

इंसाँ  को  इंसाँ   से  लड़ते-

देख  देख  वह  शरमाए ।

बेटी  को  बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली

मै  पागल  मेरा मनवा पागल,  ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

दूध दही की नदियां थी तब-

उनमें  गंदा  पानी   बहता

द्वारे – द्वारे, नगरी – नगरी,

विषधर यहाँ  पला  करता ।

कान्हा आकर इन्हें सम्हालो , झुलस  रही है कली – कली

मै पागल  मेरा मनवा  पागल,  ढूँढे  इंसाँ   गली – गली ।

विष का प्याला भरा हुआ है

जहर  भरा  है  कानों   मे

ना बलिदानी जज्बा है अब –

धरती  के  दीवानों   मे ।

जाने कब सुख शांति होगी , जाएगी कब दु:ख की बदली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल,  ढूँढे  इंसाँ   गली – गली ।

राम कृष्ण  निकलो मंदिर से

नानक  तुम  गुरुद्वारे   से

ईसा  निकलो  गिरजाघर से

अल्ला ! मस्जिद के द्वारे से ।

कहाँ  छुपी  मीरा दीवानी ,  कहाँ  छुपी  शबरी  पगली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल, ढूँढे  इंसाँ  गली – गली ।

मंदिर द्वारे सुबह गुजारी

मस्जिद द्वारे शाम ढली                    

मिला न इंसाँ  मुझको कोई

जाने  कैसी  हवा  चली ?

आएगी  ऐसी  बेला  जब,  होगी  जग  से  चला – चली

मै  पागल  मेरा  मनवा  पागल  ढूँढे इंसाँ  गली – गली ।

----------- मौलिक एवम अप्रकाशित --------- 

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Comment

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Comment by S. C. Brahmachari on March 4, 2014 at 4:53pm
गीत मे अभिव्यक्ति की प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार बहन डॉ प्राची जी !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 4, 2014 at 1:50pm

सामाजिक विषमताओं और मानवीय नैतिक मूल्यों में हुए पतन को संवेदनशीलता के साथ आपका गीत अभिव्यक्त करता है 

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ० ब्रह्मचारी जी 

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:52pm

श्री भ्रमर जी,

रचना की प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ ।

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:45pm

श्रद्धेय योगराज प्रभाकर जी,

आपके द्वारा की गयी रचना की प्रशंसा से मन मेरा अभिभूत हुआ , हार्दिक आभार स्वीकार करें ।  

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:37pm
भाई गिरिराज भण्डारी जी,
देश मे सुख शांति की वर्षा अब इन्सानो के बस की बात नहीं लगती । इसलिए मीरा और शबरी को आकर राम और कृष्ण का आवाहन करना ही पड़ेगा । वैसे भी गीता मे कृष्ण ने कहा ही है - यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत ---
रचना आपको पसंद आई , आभार व्यक्त करता हूँ !
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 24, 2014 at 9:26pm

मै पागल  मेरा मनवा  पागल, ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

आज फरिश्ता भी गर कोई

इस  धरती पर  आ  जाए

इंसाँ  को  इंसाँ   से  लड़ते-

देख  देख  वह  शरमाए ।

बेटी  को  बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली

मै  पागल  मेरा मनवा पागल,  ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

आदरणीय बह्मचारी जी....यथार्थ परक..आज के कड़वे सच को समाहित करते.. चेताते हुए सुन्दर रचना  ...बधाई
भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्र.

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:17pm
भाई नादिर खान जी,
आपके द्वारा की गयी रचना की प्रशंसा मन को छू गयी , शुक्रिया अदा करता हूँ
Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:11pm
भाई श्याम नारायण वर्मा जी,
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार !

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2014 at 5:24am

बहुत खूब आदरणीय बह्मचारी जी, गीत सुन्दर हुआ है, हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 22, 2014 at 9:02pm

आदरणीय बह्मचारी जी , लाजवाब गीत की रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

राम कृष्ण  निकलो मंदिर से

नानक  तुम  गुरुद्वारे   से

ईसा  निकलो  गिरजाघर से

अल्ला ! मस्जिद के द्वारे से ।

कहाँ  छुपी  मीरा दीवानी ,  कहाँ  छुपी  शबरी  पगली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल, ढूँढे  इंसाँ  गली – गली । ------ ये बंद खूब पसंद आया , आपको बधाई ॥

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