For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: जब तुम बिना रहा

पत्थर बना रहा सदा पत्थर बना रहा
ग़ज़लों में रोये ज़ार हम वो अनसुना रहा

दुनिया है हुक्मरान की क़ानून हैं बड़े
लाखों किये जतन मगर ये बचपना रहा

रातो में नीद भी नही दिन में नही सुकूं
सब कुछ रहा अजीब सा जब तुम बिना रहा

मंजिल से दूर रोकने क्या क्या नही हुआ
रस्ते भुलाने के लिए कुहरा घना रहा

सोचा बुला दूँ जो तुझे जाएगी मेरी जान
जीता रहा जरूर मै पर तडपना रहा

अनुराग सिंह “ऋषी”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 22, 2014 at 9:25am

ग़ज़ल पर सुन्दर प्रयास हुआ है 

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी नें बहुत सम्यक सुझाव दिए हैं.. 

शुभकामनाएं 

Comment by वेदिका on April 20, 2014 at 12:15am
बढ़िया गजल पर हार्दिक बधाई आदरणीय अनुराग ऋषि जी!
Comment by बृजेश नीरज on April 16, 2014 at 11:30pm

आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2014 at 2:20pm

आ. अनुराग भाई , ऊपर के दो मिसरे तो सही हो गये हैं , पर आपने तड़पना को ग़लत बान्धा है -- तड़पना , 122 लेनी चाहिये आपने 212 लिया है , एक बात और, आप स्वयं संशोधन कर सकते हैं , ऊपर एडिट ब्लोग मे जाकर आप स्वयं सुधार कर फिर से पोस्त कर दीजिये ।

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 16, 2014 at 1:49pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर जैसा की आपने तक्तीअ की थी उसे ध्यान में रखते हुए और भाव को यथावत बनाये रखने का प्रयास करते हुए परिवर्तित मिसरे इस प्रकार से हैं आप देख ले यदि उचित हो तो इन्हें ब्लॉग में लगा दिया जाए
सादर

मिसरे -->

दुनिया है हुक्मरान की क़ानून हैं बड़े

रातो में नीद भी नही दिन में नही सुकूं

जीता रहा जरूर मै पर तडपना रहा

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 16, 2014 at 10:41am

आप सभी गुणी जनों का बहुत बहुत आभार की मेरे जैसे साहित्यिक नवांकुर को इतना प्रेम दे रहे है और इस दुधमुही ग़ज़ल पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया दे रहे हैं
सादर

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 15, 2014 at 5:40pm

आदरणीय अनुराग जी
ग़ज़ल के भाव सुंदर है..मुबारकबाद.. प्रयास जारी रखिए

Comment by शकील समर on April 15, 2014 at 3:49pm

भाव अच्छे हैं। गजल कहने की आपकी कोशिश भली लगी। बाकी आदरणीय गिरिराज सर की बातों पर गौर फरमाइयेगा।

Comment by Sachin Dev on April 15, 2014 at 3:19pm

भाई अनुराग सिंह जी, अच्छे भाव लिखे आपने हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2014 at 10:48am

बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीय अनुराग जी, यह शेर खूब पसंद आया

रातों में नही नींद थी दिन में नही था चैन
सब कुछ रहा अजीब सा जब तुम बिना रहा............विशेष बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
19 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
50 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
55 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
56 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मनुष्य से आवेग जनित व्यवहार तो युद्धभा में भी वर्जित है और यहां यदा-कदा यही आवेग ही निरर्थक…"
57 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर ख़ुशी हुई। मेरे प्रयास को मान देने के लिए…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपके…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"2122 - 1122 - 1122 - 112 / 22 हमने सीखा है ये धड़कन की ज़बानी लिखना दिल पे आता है हमें दिल की…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बे-म'आनी को कुशलता से म'आनी लिखना तुमको आता है कहानी से कहानी लिखना यह शेर किसी के हुनर…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय तिलकराज सर, बहुत समय बाद आयोजन के लिए ग़ज़ल कही है। आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर ख़ुशी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय तिलकराज भाईजी, मुझे उचित प्रतीत नहीं होता कि मैं उपर्युक्त संवाद-प्रक्रिया पर कुछ…"
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service