परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 46 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का तरही मिसरा आज के दौर के सबसे बड़े शायर जनाब मुज़फ्फर हनफ़ी साहब की एक ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह
"अपना भी कोई ख़ास निशाना तो है नहीं "
221 2121 1221 212
मफ़ऊलु फाइलातु मुफ़ाईलु फाइलुन
( बह्रे मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 अप्रैल दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 27 अप्रैल दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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कह वेवफा तुने हमको छोड़ जो दिया
हमको भुलाने का ये बहाना तो है नहीं....क्या बात है
आदरणीय अखंड जी हार्दिक बधाई
आप के उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी है धन्यवाद आपकेा आदरणीय रवी जी
अंदाज आपका ये पुराना तो है नहीं
क्या था कसूर मेरा बताना ताे है नहीं----सुन्दर मतला हुआ है
मेरी बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए
आप के उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी है धन्यवाद आपकेा आदरणीया राजेश कुमारी जी
ग़ज़ल कहने का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकारें। कहन, वज़न, भाषा और व्याकरण में अभी और परिपक्वता दरकार है.
आप के उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी है नकल किया है अकल लगाई मगर ठीक से लग नहीं पायी आपके आर्शीवाद एवं अपनी मेहनत से हम आपके भरोसे पर खरा उतने की पूरी कोशिश करेगें प्रणाम आपको आदरणीय योगराज प्रभाकर जी
बहुत सुंदर गजल हुई आदरणीय अखंड जी, दिली बधाई स्वीकारें
अंदाज आपका ये पुराना तो है नहीं
क्या था कसूर मेरा बताना ताे है नहीं.........खुबसूरत मतला
आप के उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी है धन्यवाद आपकेा आदरणीय जितेन्द्र गीत जी
पिछले मुशायरे में आप अधिक संयत थे,भाई अखण्डजी. इस बार गुड्डी अधिक ढील पा गयी लगी.. थोड़ा टान दीजिये,
शुभ-शुभ
आदरणीय अखंड जी, हार्दिक बधाई आपको इस गजल पर !
आप के उत्साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी है धन्यवाद आपकेा आदरणीय सचिन देव जी
आदरणीय अखण्ड भाई , सुन्दर ग़ज़ल के लिये बधाई !!
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