आदरणीय सुधीजनो,
दिनांक -11 मई’14 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक-43 की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “नेताजी” था.
महोत्सव में 18 रचनाकारों नें चौपई, दोहा, कुंडलिया, घनाक्षरी, कह-मुकरी आल्हा, गीत-नवगीत, ग़ज़ल व अतुकान्त आदि विधाओं में अपनी उत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुति द्वारा महोत्सव को सफल बनाया.
यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह ,गयी हो, वह अवश्य सूचित करें.
सादर
डॉ. प्राची सिंह
मंच संचालिका
ओबीओ लाइव महा-उत्सव
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क्रम संख्या |
रचनाकार का नाम |
रचना |
1 |
आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी |
नेताजी की क्या पहचान। झूठे वादे, गलत बयान॥ स्वप्न दिखाते सदा हसीन। छल प्रपंच में बड़े प्रवीण॥
राजनीति की खुली दुकान। दो नम्बर का सब सामान॥ नेता - अफसर भागीदार। मिलकर करते भ्रष्टाचार॥
भ्रष्ट व्यवस्था, गंदी चाल। अफसर नेता सभी दलाल। जिसकी बन जाती सरकार। करें देश का बंटाढार॥
नेता अफसर “ताल” मिलाय। “भ्रष्ट राग” दिन रात सुनाय॥ चमचे सारे करते “ वाह ”। पीड़ित जनता कहती “ आह ”॥
अफसर नेता हैं बदनाम। पैसे लेकर करते काम॥ एक नहीं सब हैं शैतान। फिर भी अपना देश महान॥
पुछल्ला............. लाख समस्या एक निदान। कलियुग में आओ भगवान॥ चाहे त्रेता के श्री राम । या द्वापर के हों घन-श्याम॥
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2 |
आ० अरुण कुमार निगम जी |
उसने ताजी की है खोज,अपना रूप दिखाता रोज
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3 |
आ० सत्यनारायण सिंह जी |
प्रथम रचना
जनता जिसके साथ हो, उसको नेता मान।
*सच्चा नायक सुन वही,भरे प्रजा में जोश ।
द्वितीय रचना रोज नये वादे वह करता, मन कोरे वादों से हरता, दुनिया सपनों की देता जी , क्यों सखि साजन ? ना नेताजी !
मनमानी से बाज न आए, सब पर अपना रोब जमाए, सबसे टक्कर वह लेता जी, क्यों सखि साजन ? ना नेताजी !
स्वेत वस्त्र धारण वह करता, नयी चाल वह हर दिन चलता, काली करतूतें करता जी, क्यों सखि साजन ? ना नेताजी !
वह दबंग सुन ताकत वाला, सब कहते वह किस्मतवाला, मोटा माल कमा सोता जी, क्यों सखि साजन ? ना नेताजी !
मर मिटने की कसमें खाये, उसपर मन बलिहारी जाये, वह छलिया मन छल लेता जी, क्यों सखि साजन ? ना नेताजी !
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4 |
आ० अशोक कुमार रक्ताले जी |
ढूँढ़ रहा था देश, दिखे अब नेता जी | आया जहां चुनाव, दिखे तब नेताजी |
इस धरती के लाल, तुम्ही हो नेता जी | लूटा जिसने माल, तुम्ही वो नेता जी |
केवल हमसे वोट, चाहते नेताजी | तुमही सबके ख्वाब, ढाहते नेताजी |
इतनी है दरकार, कहें अब नेता जी | मँहगाई की मार, सहें अब नेता जी |
निर्धन पर भी बोझ, बढ़ा है नेता जी | तुमने ही यह तन्त्र, गढ़ा है नेता जी |
नारी है भयभीत, आज हर नेता जी | तुमको है ना आज, लाज डर नेताजी |
वादे झूठे याद, करो अब नेता जी | किया देश बर्बाद, डरो अब नेता जी |
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5 |
आ० कल्पना रामानी जी |
हर दिन दूने रात चौगुने, भूख-प्यास के दाम हुए। नेताजी! कुछ कहो तुम्हारे, नारे क्यों नाकाम हुए।
नाम तुम्हारा जाप रहे हैं, घूस और घोटाले सब, तिजोरियों में छाँव छिपाकर, धन की खातिर घाम हुए।
तिल-तिल दर्द बढ़ाकर जन का, जन से मरहम माँग रहे, तने हुए थे कल खजूर बन, कैसे नमते आम हुए।
रंग बदलते देख तुम्हें अब, होते हैं हम दंग नहीं, चल पैदल गलियों में आए, क्यों भिक्षुक हे राम! हुए।
कल उसकी थी, अब इसकी है, बार-बार टोपी बदली, लेकिन नमक हलाली के दिन, किस टोपी के नाम हुए।
वोट माँगने नोट बने हो, बन जाओगे चोट मगर, कसमें सारी भूल-भुलाकर, अगर ढ़ोल के चाम हुए।
आश्वासन की फेंट मलाई, वादों का घृत बाँटा खूब, मगर हमारे नेताजी अब, हम भी सजग तमाम हुए।
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6 |
आ० अखंड गहमरी जी |
जीवन जैसे ठहर गया लो फिर चुनाव आ गया वादे की पोटली खुली विकास रोजगार शिक्षा निकली वादे पर वादे लेकर देखो नेता जी लो फिर चुनाव आ गया जीवन जैसे ठहर गया पाँच साल तक नजर न आते अपनी अरज गरज किसे सुनाते डूब रहे थे जल में हम आग लगी थी बस्ती में बहू बेटिया लुट रही थी नेता जी थे मस्ती में आज हमारे बीच वो आये अपने को मेरा बतलाये मेरे दुख में रोये ऐसे घडियाल शर्माये जैसे विकास पुरूष हम कहलाये नेता जी हमें बतलाये कैसे करे भरोसा हम अब तो निकले मेरा दम बहुत कर चुके वादो का वादा अब तो रहने दो नेता जी हम जैसे थे रहेगें वैसे अपना पेट देखो नेता जी कितना सहेगें अत्याचार तुम्हारा सहते सहते दिल भर गया नेता जी जीवन जैसे ठहर गया लो फिर चुनाव आ गया खूब चला दौर आरोप प्रत्यारोप बकी गाँलीया एक दूजे को फिर बैठोगें तुम साथ उनके हम हो जायेगें पराये जी बहुत सीखा है बहुत सीखना अब है तुमसे नेता जी जीवन जैसे ठहर गया लो फिर चुनाव आ गया तीस बसंत से देखा अखंड ने फिर आगे भी तुमको देखे गा ना हम सुधरेगें ना तम सुधरोगें जाति धर्म पर हम बट जायेगें मतदान कक्ष में जाति के नाम पर बटन हम दबायेगें नेता जी अपना करना काम तुम मत रखना याद हमेंं तुम चैन से सोना नेता जी फिर आया है फिर आयेगा चुनाव देश मेंं नेता जी चुनाव देश में नेता जी
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7 |
आ० सुशील सरना जी |
इक चहरे में कितने चेहरे
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8 |
आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी |
प्रथम रचना
नेताजी का आगमन, जीता नेह प्रमाण ताने सब वह सह रहे, बन करके पाषाण बनकरके पाषाण, मौन रह सबकी सुनते बीच बीच में बोल, वचन दे मन को हरते सुनकर सबकी बात, करे सबको ही राजी होने सत्तासीन, प्रयत्न करे नेताजी |*
थोड़ा दे नेता करे, जनता की पहचान पैर जमा सकता वही, पाए जन का मान पाए जन का मान, तभी मन्जिल पा पाए जन का जान मिजाज, सही फिर नाच नचाए संसद में आ जाय, चले फिर खूब हथोडा नेता करते लूट, मिले जब अवसर थोडा |
द्वितीय रचना
जनता में हो जिसका मान, उसे देश का नेता मान सुभाष बोस का आता ध्यान,हर बच्चे को जिसका ज्ञान नेहरु जी ने किया कमाल, वाजपेयी सा किसका भाल नेतृत्व गुण का हो विकास, उस नेता में रखते आस |
उसका ही नेतृत्व महान, जिसका श्रमिको में विश्वास, सेना का कप्तान महान, देश सुरक्षित तब ही मान | राष्ट्र सृजन में जिसका योग, वह नेता कहलाने योग्य | जिस नेता का योग्य शासन,उसको ही देना सिंहासन ||
जन हित में जो करता काम, नेता होता वही महान, खाने में अटकी हो जान, उस नेता को हो अपमान | सही नेतृत्व जब ही जान, जो जीते सब का विश्वास उस नेता के हाथ कमान, तभी देश का हो उत्थान ||
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9 |
आ० नादिर खान जी |
प्रथम रचना
तुमको हमारा साथ गवारा भी नहीं है हमने कभी तुम्हें तो पुकारा भी नहीं है
क्यों सौप दें तुम्हारे ही हाथों में बागडोर दामन तो पाक-साफ़ तुम्हारा भी नहीं है
पैसे के दम पे तुमने बिगाड़े हैं बहुत खेल ये पैसा आखिरत का सहारा भी नहीं है
जनता की जिंदगी का फ़साना है महज़ ये मझदार में है नाव किनारा भी नहीं है
मायूस है ये और परेशान भी है कुछ बाज़ी मगर ये दिल अभी हारा भी नहीं है
हमको मिले हैं जख्म जो हँस हँस के सहेगें किरदार बुझदिलों सा हमारा भी नहीं है
तुमने हमें तो बाँट दिया स्वार्थ के चलते ईमान तो नेता जी, तुम्हारा भी नही है
अल्लाह बस है फिक्र हमें तेरी रज़ा की तेरे सिवाये कोई, हमारा भी नहीं है
द्वितीय रचना
ये खेल है चुनावी एक तरफ नेता जी तो दूसरी तरफ आम आदमी लगा है दांव पर मान-सम्मान, सपने और जज़्बात किया जा रहा है प्रहार हर रोज़ बार बार खूब दागे जा रहे हैं शब्दों के बाण आहत है, शर्मशर है, आम आदमी नुकसान तय है आम आदमी का वह गिराया जाएगा खींचा और रगड़ा जाएगा हो सकता है जलाया भी जाए ....
हाँ विकास भी होगा मगर सिर्फ नेता जी का कुछ छुटभय्ये नेता भी मौके का फायेदा उठाएँगे विकास का डंका बजवाएंगे लड़ेगा, मरेगा, पिटेगा, लुटेगा आम आदमी घर जलेगा सो वो भी आम आदमी का चलता रहेगा सबकुछ भगवान भरोसे टूटेंगे ख्वाब, बिखर जाएगी आस गहरायेगी माथे की लकीरें रह जायेंगे अधूरे, अनसुलझे सवाल हमें तलाशते फिर आयेंगे अगली बार नेता जी क्या अपना जवाब माँगने तैयार है, आम आदमी
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10 |
आ० सौरभ पाण्डेय जी |
नेताजी सम्बोधन सुनकर
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11 |
डॉ० प्राची सिंह जी |
वक्त की पुकार ( एक गीत ) जन विकास राग को, शक्ति से दहाड़ती एक सिंह गर्जना, वक्त की पुकार है...
बाह्य-आतंरिक जटिल, सामने चुनौतियां किन्तु ले प्रमाद में, राजनीति झपकियाँ अस्मिता स्वदेश की, आज तार-तार है एक सिंह गर्जना, वक्त की पुकार है...
रात यह अमावसी, आस भी बुझी-बुझी भ्रष्ट राजतंत्र में, ज़िन्दगी रुकी-रुकी भोर मुस्कुरा उठे, आज इंतज़ार है एक सिंह गर्जना, वक्त की पुकार है...
अश्वमेध यज्ञ के, अश्व सा प्रबल बढ़े राष्ट्र प्रगति मार्ग पर, कीर्तिमान नव गढ़े आचरण कुशासकी, माँगता सुधार है एक सिंह गर्जना, वक्त की पुकार है...
दम्भहीन दूरदृष्ट, देशभक्त सत्यनिष्ठ प्रतिनिधित्व चाहिए, कर्मरत सधा बलिष्ठ सर्व-जन-हितार्थ जो, पूर्णतः निसार है एक सिंह गर्जना, वक्त की पुकार है...
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12 |
आ० रमेश कुमार चौहान जी |
नेताजी की महिमा गाथा, लोग भजन जैसे गाय ।
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13 |
आ० कृष्णा सिंह पेला जी |
गलियाें में हैं पैदल चलते नेताजी जैसे पछतावे में जलते नेताजी पल पल लाै माफिक मचलते नेताजी क्याें हैं माेम समान पिघलते नेताजी ! अाया वक्त खराब चुनावी गर्मी है तब निकले हैं पंखा झलते नेताजी पहले अाग लगाई फिर बाँटे कम्बल मंचाें पर ताे अाग उगलते नेताजी फिर से रंग डाली है वादाें की चादर गिरगिट जैसे रंग बदलते नेताजी जनता के हाथी हैं लेकिन जनता काे चींटी की मानिंद मसलते नेताजी जितना नीचे गिरने की गुंजाइश है उस हद तक गिरकर संभलते नेताजी देश मरुस्थल हाे जाये ताे हाेने दाे देखाे कितने फूलते फलते नेताजी बस्ती के दरवाजाें ने मूँह फेरा जब थककर घर लाैटे हाथ मलते नेताजी
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14 |
आ० शिज्जू शकूर जी |
सद्वाणी सब भूल के, योगी छोड़े योग। रंग बदलता खेल का, जब दल बदलें लोग।।
देखो जनता गाँव की, नेताजी के पास। गई देखने कार को, नेता में क्या खास।।
नेताजी की राह में, बरसें फूल व हार। जूते लेकर हाथ में, किया किसी ने वार।।
नेताजी के राज में, चेले करते मौज। लेकर पत्थर दौड़ती, गुण्डों की वो फौज।।
मैल पुराने धुल गये, मिले हाथ से हाथ। नाग बढ़ा फुँफकारता, चला नेवला साथ।।
जगह-जगह चर्चा छिड़ी, लिखे गये हैं लेख। सच्चा कितना कौन है, खुले नैन से देख।।
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15 |
आ० लक्ष्मण धामी जी |
भूखे प्यासे बिना निवाले, लोग पड़े हैं नेता जी
गाते हो साहस की कविता तुम जनता के बीच बहुत
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16 |
आ० अरुण शर्मा अनंत जी |
जनता की सेवा में अर्पण नेता जी, ईश्वर जैसा रखते लक्षण नेता जी,
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17 |
आ० सरिता भाटिया जी |
जन जन का उद्धार करेंगे बोलें हैं वो मीठी भाषा घर घर जाकर माँगे वोट मनभावन धारें आखेट देंगे रोटी वो भरपेट सफ़ेद वस्त्र हैं काले धन्धे नेता जी की नहीं जुबान घर अपने का हुआ उद्धार ले लिया वोट देकर नोट पाँच बरस तक कर इंतज़ार किया कोई ना वादा पूरा
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18 |
आ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी |
एक घनाक्षरी छंद :- कोई नहीं ओर छोर व्यर्थ का प्रलाप नित्य , वोट वोट वोट की ही राजनीति ठानी है । भूखा असहाय सा बुढ़ापा ताकता तुम्हें ही, रोजगार से विहीन देश की जवानी है । एक बार मे करोड़ों जाते हो डकार तुम, तुमने स्वदेश पूर्ण लूटने की ठानी है । पीर जनता की तुम्हे पड़ती दिखाई नहीं, सूख गया नेता जी की आँख का भी पानी है ।
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आदरणीया प्राची दीदी समस्त रचनाओं का संकलन करके एक साथ इतनी शीघ्रता से प्रस्तुत करने हेतु आपका हार्दिक आभार, इस श्रम साध्य कार्य हेतु आपको हार्दिक शुभकामनाएं कुछ रचनाएँ समयाभाव के कारण पढ़ नहीं सका था यहाँ पढ़ सकूँगा. सादर
काव्य आयोजन में अपनी प्रतिभागिता के प्रति प्रतिबद्ध रचनाकारों को मेरा नमन.
इस मंच का निर्माण रचनाकारों और पाठकों में साहित्य की सकारात्मक सार्थक समझ को विकसित करने के उद्येश्य से हुआ है. यह निर्विवाद है. ऐसे में जिन रचनाकरों और पाठकों ने अपनी समस्त व्यस्तता के बावज़ूद अपनी भागीदारी निभायी, या आयोजनों में भागीदारी निभाते हैं, उसीका परिणाम है कि यह आयोजन भी सफल रहा.
कई निरंतर अभ्यासकर्ताओं और रचनाकारों की रचनाओं में दीखता काव्य-गठन और स्पष्ट दीखती शाब्दिक तथा विधाजन्य कसावट मेेरे कहे को अनुमोदित करती है. या, अनुमोदन करती प्रतीत होगी.
आपके संकलनकर्म तथा अपने दायित्व निर्वहन के प्रति आपकी जागरुकता के लिए हार्दिक आभार आदरणीया.
सादर
संकलन शीघ्र उपलब्ध कराने के लिये आपको ढेरों हार्दिक बधाइयाँ और आपकी इस काव्य निष्ठा को मैं नमन करता हूँ तथा मेरी प्रथम प्रस्तुति संशोधित स्वरुप में प्रकाशित करने हेतु आपका सादर आभार आदरणीया डॉ. प्राची जी
आदरणीया प्राची जी सर्व प्रथम आपको इस आयोजन की समस्त रचनाओं को संकलित कर प्रस्तुत करने के लिए आपका हार्दिक आभार । मै समया भाव एवं कुछ व्यस्तताओं के कारण इस आयोजन मे विलंब से प्रतिभाग कर सकी । इस कारण सभी रचनाओं को नहीं पढ़ सकी । इस संकलन के माध्यम से बहुत आसानी हुई । त्वरित गति से अपने कार्य को अंजाम देने के लिए आप निश्चित रूप से बधाई की पात्र है , आपको मेरा हार्दिक नमन ।
आदरणीय प्राची दीदी समस्त रचनाओं का संकलन करके एक साथ इतनी शीघ्रता से प्रस्तुत करने हेतु आपका हार्दिक बधाई और आभार.
मंच संचालिका के सफल दायित्व निर्वहन के बाद शीघ्रता से सभी रचनाओं का सकलन कर एक साथ पढने का अवसर उपलब्ध कराने
के आपका हार्दिक आभार एवं शुभ कामनाए आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी |
आदरणीया प्राची जी , महोत्सव मे बुखार के कारण हिस्सा नही ले पाया , क्षमाप्रार्थी हूँ ।
संकलित रचनाएँ पढ़ के बहुत अच्छा लगा । संकलित रचनाओं को इतनी जल्दी प्रस्तुत करने के लिये आपका आभार ! सभी प्रतिभागियों को मेरी ढेरों बधाइयाँ ।
आदरणीया प्राची जी
रचनाओं के संकलन का यह तरीका पसंद आया। मेरी हार्दिक शुभकामना , आभार स्वीकार करें ।
टंकण की त्रुटियाँ यथावत रह गईं। रचनाकार टंकण की त्रुटियाँ महोत्सव की समय सीमा में स्वयं ही सुधार लें तो अच्छा है ।
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