For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसा घर बनातें हैं

इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना
जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं

ना ही रोशनी आये ना खुशबु ही बिखर पाये
हालात देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं

दीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों
पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं

मिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब है
टी बी और नेट से ही समय अपना बिताते हैं

ना दिल में ही जगह यारों ना घर में ही जगह यारों
भूले से भी मेहमाँ को ना नहीं घर में टिकाते हैं

अब सन्नाटे के घेरे में जरुरत भर ही आबाजें
घर में दिल की बात दिल में ही यारों अब दबातें हैं

मौलिक और अप्रकाशित

मदन मोहन सक्सेना

Views: 543

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on June 16, 2014 at 1:51pm

आप सभी का.तहे दिल से आपका शुक्रगुजार हूँ, हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 7, 2014 at 2:44pm

कंकरीट के जंगलों में इंसान प्रकृति से कितना दूर हो गया है... एक बनावटी सी ज़िंदगी जिसके चारों और बहुत ऊंची ऊंची दीवारें मन में जीवन में इंसान खुद ही तो बना लेता है..जहां न हवैन आती हैं और आएं भी तो अपने साथ ताजगी नहीं लातीं ...आपसदारी में भी सम्वेदनाएं जैसे मर सी गयी हैं 

जीवन शैली में बस्ती जाती सी इन सभी विसंगतियों को सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है 

टंकण त्रुटियों के प्रति सचेत रहें 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आ० मदनमोहन सक्सेना जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2014 at 9:30am

आज के हालातों को बहुत सुंदर शब्द मिले है आपकी रचना में, बधाई आदरणीय

Comment by savitamishra on June 6, 2014 at 8:29pm

बहुत बढ़िया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:47pm

बहुत खूब आदरणीय मदनमोहन जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by Sushil Sarna on June 6, 2014 at 12:31pm

वर्तमान  हालात की सुंदर अभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई  --क्षमा सहित  रचना में कहीं कहीं शब्द 'व' के स्थान पर 'ब ' टंकित हुआ है जो प्रवाह को बाधित करता है  … जैसे दीबारें,टी बी, आबाजें-कृपया अन्यथा न लेवें 

Comment by Meena Pathak on June 5, 2014 at 10:24pm

अब सन्नाटे के घेरे में जरुरत भर ही आबाजें
घर में दिल की बात दिल में ही यारों अब दबातें हैं...................बहुत सही 

सादर बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2014 at 5:21pm

बहुत सही लिखा है .....बधाई आपको |गाँव से ये पलायनवाद क्यों ? इसका उत्तर और समाधान हमारी सरकार  के पास है ,कुछ आज के युवा खेती करने में शर्म भी महसूस करते हैं शहर में चाहे छोटी सी तनख्वा में गुजारा  करना हो पर खेती नहीं करेंगे ....यदि प्रशासन गाँव में सुख  सुविधा

और रोजगार उपलब्ध कराएँ तो ये समस्या कम हो सकती है.  

Comment by coontee mukerji on June 5, 2014 at 5:05pm

इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना
जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं.....बड़े शहरों में तो एक टुकड़ा आँगन सपना बनकर रह गया है. शहर पाने के लिये हमें कितने बड़े बलिदान से गुज़र रहे हैं.....शुभकामनाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
46 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service