आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,
सादर अभिवादन.
ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 38 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
20 जून 2014 दिन शुक्रवार से 21 जून 2014 दिन शनिवार
पीपल हमारे देश में मात्र एक वृक्ष न हो कर संस्कृतिवाहक के तौर पर देखा जाता है. पर्यावरण- संतुलन में इसकी विशेष भूमिका होती है. ग्रीष्मऋतु में इस वृक्ष की महत्ता विशेष रूप से बढ़ जाती है. ग्रामीण जनता इस वृक्ष की छाँव में ज्येष्ठ मास की तपती दुपहरिया की असह्य चुभन तक भुला चैन की साँस लेती दीखती है. कारण कि, थोड़ी हवा चलने पर भी इसके पत्ते अन्य वृक्षों के पत्तों से कहीं चपल-चंचल हो उठते हैं. साथ ही, ग्रामीण भारत का जनमानस इस वृक्ष से धार्मिक रूप से भी जुड़ा हुआ है. इस वृक्ष को अश्वत्थ कहा गया है. श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं को वृक्षों में अश्वत्थ ही बताया है.
तो आइये, इस बार के चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव के आयोजन में पीपल के वृक्ष पर ही छन्दबद्ध रचना करें.
इस बार के आयोजन के लिए जिन दो छन्दों का चयन किया गया है, वे हैं - गीतिका छन्द और उल्लाला छन्द.
एक बार में अधिक-से-अधिक तीन गीतिका छन्द तथा/या पाँच उल्लाला छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है.
ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.
[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है.]
उन सदस्यों के लिए जो गीतिका छन्द और उल्लाला छन्दों के आधारभूत नियमों से परिचित नहीं हैं, उनके लिये इनके संक्षिप्त विधान प्रस्तुत किये जा रहे हैं.
गीतिका छन्द के आधारभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
उल्लाला छन्द के आधारभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
लेकिन, इससे पूर्व मात्रिक छंदों में गेयता को सुनिश्चित करने के लिए ’कलों’ (जैसे, द्विकल, त्रिकल, चौकल आदि) के शुद्ध प्रयोग हेतु उन विन्दुओं को एक बार फिर से ध्यान से देख लें. क्योंकि दोनों छंद मात्रिक हैं.
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 जून 2014 दिन शुक्रवार से 21 मई 2014 दिन शनिवार यानि दो दिनों के लिए
रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा. केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
विशेष :
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अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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धारणा है वृक्ष पीपल धर्म का रस घोलता
चेतना बन सम्मिलन-सहकार के स्वर बोलता...आदरणीय सौरभ जी पीपल के अपने गुणों के कारण धार्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालते तीनो ही छंद बहुत सुन्दर है ...बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
सादर आभार आदरणीया महेश्वरीजी. ..
पर्यावरण द्रष्टि से महत्वपूर्ण पीपल वृक्ष को लेकर सभ्यता, संस्कृति, शुचिता, शुद्धता में धर्म की पुटता लिए
दूरगामी प्रभाव डालती रचना मन मुग्ध कर रही है | बहुत बहुत बधाई आदरणीय
रचना की सार्थकता को अनुमोदित करने के लिए आपका सादर आभार आदरणीय.. .
कमाल है, कितनी सुन्दर रचना है आपकी , चित्र के विषय वस्तु को पूर्णता में चरितार्थ करती हुई. मैं तो सोचता ही रह गया कि क्या लिखूं क्या लिखूं .. बहुत अच्छा लगा आपकी कविता को पढ़कर .. हार्दिक बधाई स्वीकारें..
भाई नीरज नीरजी, आपने इतनी उदारता और सरलता से मेरी रचना को अनुमोदित कर दिया कि मैं स्वयं अवाक हूँ.. :-)))
हार्दिक धन्यवाद भाईजी.
आयोजन के लिए दो छन्दों का ऑप्शन हुआ करता है. किसी एक के आधार पर आपसे एक रचना की अपेक्षा तो है ही .. ताकि पीपल के एक नये आयाम से हम परिचित हों.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ भाई , पवित्र पीपल के लिये आपने जो भाव व्यक्त किये हैं , और जिन शब्दों मे व्यक्त किये हैं , हम सीखने वालों के लिये एक उदारहण स्वरूप है , इस छंद रचना की तारीफ के योग्य भी मै अपने को नही पा रहा हूँ , बस आपको बहुत बहुत बधाइयाँ , इस अनुपम रचना के लिये ।
आदरणीय गिरिराजभाई, आपने तो मुझे मूक कर दिया ! आगे मैं क्या कहूँ ?
अपनी रचनाप्रक्रिया में उत्तरोत्तर सुधार का प्रयास करता रहूँगा, यह अवश्य है.
सादर
परम आदरणीय सौरभ जी सादर
सभ्यता के उच्च पल का वृक्ष यह मानक सदा
तप रहा पीपल तभी तो उर्ध्व तन कर सर्वदा
है स्वयं प्रारम्भ शुभ का, अंत का भी साक्ष्य है
शुद्ध है यह वृक्ष पीपल मृत्यु-जीवन वाच्य है
उपरोक्त पंक्तियाँ मन को भा गयीं अतएव इस उत्कृष्ट प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय
रचना प्रयास रुचिकर लगा, इस हेतु सादर धन्यवाद, आदरणीय सत्यनारायण भाईजी.
रचना को अनुमोदित करने के लिए आपका सादर आभार आदरणीय विजय शंकरजी.
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