For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छोट जात -- लघु कथा

बरामदे की सीढ़ियाँ देख , कजरी नीचे खड़ी हो गई , संकोच वश उसके कदम ऊपर बढ़ ही नहीं रहे थे ॥ लाली ने उसको पुकारा -'आओ  ना , वहाँ क्यों  खड़ी हो ? कजरी सकुचाते हुये बोली -' का है कि हम छोट  जात है न , और हंम लोगन का  बड़े लोगन के घर की चौखट के भीतर नहीं जाना होत है अइसा हमारी माई कहे रही !!'  लाली ने उसका हाथ पकड़ा और ऊपर खींच लिया , ' चलो भी !! '  अंदर पहुँच कर बड़ी सी हवेली देख कजरी की अंखे चौंधिया गई । ' लागे है बहुत बड़े लोग हैं ' मन मे सोचा उसने । धीरे धीरे अंदर बढ़ती गई एक कमरे का किवाड़ थोड़ा खुला था और मालिक  का बेटा किसी नौकरानी को बार बार पकड़ कर घसीट रहा था । वह बेचारी बार बार हाथ छुड़ा कर भागती और अपना काम करने लगती । कजरी के कदम ठिठक गए । वह लाली से बोली - ' उ कउन है जो भीतर बैठे है । और उ हमरी सहेली है रामकली !!  ' लाली ने भीतर झाँका रामकली सफाई कर रही थी और छोटे मालिक उसको अपनी गंदी नियत से ताकने मे लगे थे । मन ही मन बुदबुदाई लाली - ' ले आज इसकी बारी ,  कहने को मुआ ऊंच जात  है , ससुरा जात  के नाम का कलंक !!!  ' और आगे बढ़ ली । 

अप्रकाशित और मौलिक 

अन्नपूर्णा बाजपेई 

Views: 671

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 10, 2014 at 6:15pm

व्यभिचार पर चोट करती रचना में जात-पाँत के भेद भाव पर भी जोरदार तमाचा मारा है | बहुत सुंदर सन्देश देती लघु कथा 

के लिए हार्दिक बधाई आद अन्नपूर्ण बाजपाई जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 10, 2014 at 10:04am

समाज के ऊँच नीच के मुद्दे पर बढ़िया व्यंगात्मक लघु कथा लिखी है प्रिय अन्नापूर्णा जी,किन्तु इस कहानी का अंत कजरी के रिएक्शन से  होता तो ज्यादा  बेहतर होता ,अभी तो कहानी का अंत ये सोचने को विवश कर रहा है की जब लाली को वहां के माहौल का पता था तो वो अपनी सखी कजरी को जबरदस्ती वहां क्यों लाई? इसके अंत को थोडा ट्विस्ट करके बहुत ही रोचक कहानी बनाई जा सकती है ..बहुत बढ़िया विषय  चुना है आपने हार्दिक बाधाई आपको.   

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 10:56am
बहुत ही सटीक व्यंग आदरणीया अन्नपूर्णा जी।।। बहुत बहुत बधाई आपको।। सादर
Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 11:07pm

आपको कथा पसंद आई आ0 आकुल जी , मेरा मनोबल बढ़ा , आपका हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 7, 2014 at 8:43pm

छोटे बड़े की खाई आज भी जस की तस है। ईश्‍वर जाने कब बदलेंगे हालात। प्रेमचंद की लघुकथायें याद हो आईं। सुंदर लिखा है आपने, बधाई हो अन्‍नपूर्णा जी। 

Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 4:49pm

आ0 गोपाल नारायण जी आपने अपनी स्नेह मई उपस्थिति से मुझे कृतार्थ किया है आपके मशविरे का शुक्रिया । 

Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 4:47pm

आ0 शिजू जी आपकी स्नेही प्रतिक्रिया और मशविरे का हृदय से स्वागत करती हूँ , आपका आभार 

Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 4:46pm

आ0 वंदना जी आपका आभार 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 7, 2014 at 12:55pm

अनुपमा जी

आपकी कथा का व्यंग्यार्थ बहुत अच्छा है i शिज्जू शकूर जी ने जो कहा वह भी विचारणीय है i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 7, 2014 at 9:39am

विषय बहुत अच्छा लिया है आपने प्रस्तुति भी अच्छी है मगर क्षमा कीजियेगा लघुकथा के विषय में मेरा अल्पज्ञानी मस्तिष्क कह रहा है कि थोड़ा और इसे कसा जा सकता है। प्रयास के लिये सादर बधाई,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' joined Admin's group
Thumbnail

धार्मिक साहित्य

इस ग्रुप मे धार्मिक साहित्य और धर्म से सम्बंधित बाते लिखी जा सकती है,See More
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"गजल (विषय- पर्यावरण) 2122/ 2122/212 ******* धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी नीर को इत उत…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सादर अभिवादन।"
19 hours ago
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service