For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदत-मजबूरी (लघुकथा)

आदत-मज़बूरी

जाम में फंसी गाड़ी पर उस लड़के ने कपड़ा रगड़ा और मुहँ-पेट की तरफ़ ईशारा किया तो उसने उसकी तरफ़ ध्यान ना देते हुए अपनी 5 मासी गर्भवती पत्नी से कहा –“सालों की आदत है ,भिखमंगे कहीं के “

एक बुढ़ा अगरबत्ती के पैक्ट लेकर पहुँचा और मुँह-पेट की तरफ ईशारा किया – “30 की दो ले लो - - -“

“ऊँह ,भावनाओं के नाम पर लुट रहा है बुड्ढा - - ” उसने पत्नी को देखकर धीरे से कहा |

गजरे बेचने वाली जब वो मलिन औरत आई तो पत्नी की आँखों में आई चमक को देखकर कहा

“बासी फूल हैं और जाने कौन-कौन से इन्फेक्शन हो इसे- -  “ पत्नी ने कुछ ना कहा

तभी ताली बजाते हुए वो आया –“राम जी बेटा देंगे ,चलों 50 निकालों - - “

उसने पत्नी की तरफ देखा और 20 का नोट बढ़ाने लगा |

“इतने में तो मेरे जैसा आएगा “उसने नोट ठुकराते हुए कहा

उसने घबराकर 50 रुपए बढ़ा दिए |

जाम खुल गया था |

.

सोमेश कुमार

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 485

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 3, 2014 at 7:53pm

बेटे की कामना ....मनोकामना पूरी हो इसके लिए कुछ भी दान पुन्य करने को तैयार दीखते हैं ...अच्छा चित्रण!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:43am

दान पुण्य या गरीब का सहायता नहीं बल्कि, अपनी मनोकामनाए पूरी हो इस भाव से मदद करते है |

मनुष्य के मन के स्वार्थ को दर्शाने में सफल रही है कहानी | बहुत बहुत बधाई श्री सोमेश कुमार जी 

Comment by khursheed khairadi on November 3, 2014 at 10:42am

आदरणीय सोमेश कुमार जी , बहुत सुन्दर चित्रण है|दया और भय दोनों में जब जब प्रतिस्पर्धा हुई है ,भय की विजय हुई है |सादर अभिनन्दन 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 10:41am

सुन्दर लघुकथा, हार्दिक बधाई।

Comment by somesh kumar on November 2, 2014 at 1:00pm

स्नेह और आशीष के लिए सभी मनीषी मित्रों एवं अग्रजों का साधुवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:32pm

आदरणीय सोमेश भाई , रोजमर्रा की घटना से आपने बढिया बात निकाली है , भय के बिना आदमी की आदमीयत भी बाहर नही आती , सच है । बधाई स्वीकार करें ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 1, 2014 at 10:15am

बहुत सुंदर चित्रण. एक पिता के मन के डर को बहुत सार्थक प्रस्तुति मिली. बधाई आदरणीय सोमेश जी

Comment by Sushil Sarna on October 31, 2014 at 8:09pm

वाह आदरणीय सोमेश जी एक सुंदर कटाक्ष , दिन प्रतिदिन होने वाली घटना का सुंदर चित्रण किया है आपने। … इस सुंदर लघु कथा का मर्म स्वयं के मन का भीरु होना है  बात जब स्वयं पर आती है तो हर बात जायज़ लगती है वरना दूसरे की मज़बूरी भी नाज़ायज़ लगती है   … हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति हेतु आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 31, 2014 at 3:47pm

वाह बहुत अच्छी बहुत अच्छी लघु कथा ...एक चुभता हुआ सन्देश देने में सफल कहानी .हार्दिक बधाई सोमेश कुमार जी. 

Comment by Shyam Narain Verma on October 31, 2014 at 11:33am

बहुत अच्छी लघुकथा , बधाई..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service