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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" गोल्डन जुबली अंक

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 49 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" गोल्डन जुबली अंक

विषय - "भारत बनाम इंडिया"

आयोजन की अवधि- 12 दिसम्बर 2014, दिन शुक्रवार से 13 14 दिसम्बर 2014, शनिवार रविवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो तीन दिन)


बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. गोल्डन जुबली अंक हेतु इस कंडिका को शिथिल किया जाता है, अर्थात सदस्यगण प्रदत्त विषय से न्याय करती हुई 2 से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं ।  
  •  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 12 दिसम्बर 2014,दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

भारत को इण्डिया कर गया,खुद से पूछूँ ,कौन ?

 जी यही तो प्रश्न है अगर कोई कर गया तो स्वीकार किसने किया ....निःसंदेह हम लोगों ने ही न 

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...बहुत बहुत बधाई आपको आ० अरुण निगम जी 

आपको इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई आदरणीय अरुण जी

वाह वाह वाह अति सुन्दर प्रस्तुति आ० अरुण निगम भाई जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें।

एबीसीडी  सिर चढ बैठी , पश्चिम वाली डॉल

असहाय - सी अआइई ,  भटक रही बदहाल

गोरे - मैकाले से आहत , संस्कार  हैं  मौन

भारत को इण्डिया कर गया,खुद से पूछूँ ,कौन ?................वाह ! वाह ! सही कहा है. लार्ड मेकाले की शिक्षा पद्दति ने देश की शिक्षा पद्दति  को बहुत पीड़ा पहुंचाई है और अब यह प्रभाव पूरी तरह हावी है.

आदरणीय अरुण निगम साहब सादर, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना की है. आपको बहुत-बहुत बधाई. सादर.

आदरणीय अरुण भाईजी, आपकी रचना के भारत और इण्डिया व्यवहार रूप में समक्ष दिख रहे हैं. एक सुगढ़ और समृद्ध प्रस्तुति के लिए हृदय से बधाइयाँ तथा शुभकामनाएँ.

वैसे, ’छुक-छुक करती रेल’ भी अपने शुरुआती दिनों में आम भारतीयो के लिए किसी ’भयंकर काला जादू’ से कम नहीं थी, जिसे गोरे आका ’साध’ कर ले आये थे ! तभी उस रेल को ’कलकत्ता की काली माई’ से जोड़ कर देखा जाता था जो खप्पर लिये लहू पीती है. कहते हैं कि आती रेल को देख गाँव के लोग-बाग ट्रैक के पास से भाग जाते थे.. ’छुक-छुक काली, कलकत्ते वाली’.. ..  :-))
हा हा हा हा...........

भारतीय.. बेचारों ने क्या-क्या नहीं झेले हैं.. :-))))))))))))))))))

//भारतीय.. बेचारों ने क्या-क्या नहीं झेले हैं.. :-))))))))))))))))))//
समेत "लौहपथगामिनी" जैसे भीमकाय शब्द के आ० सौरभ भाई जी। :)))))))))))))))))))

आदरणीय योगराजभाईजी, ’लौहपथगामिनी’ जैसे शब्द !!.. :-)))

सही कहा आपने आदरणीय, यही है ’इण्डियावालों’ का हिन्दी भाषा के प्रति असीम अनुराग.. !

ऐसे अनेकानेक शब्द आपको किसी कोश या थेसर में नहीं मिलेंगे. लेकिन हिन्दी भाषा की भद पीटने वाले या इसका माखौल उड़ाने वाले और ’तारी दइ-दइ हँसे बाल सब’ की कभी कमी रही ही कहाँ है ?
लेकिन हम हिन्दी प्रेमियों ने हर कुछ को सहा है.

और आगे रास्ता बनाया है..   
जय ओबीओ ! .. :-))

आदरणीय , //  लौह गाड़ी //  या  // लोहा गाड़ी //  कह देते तो भी बात बन जाती लेकिन हिंदी का  मजाक बनाने वालों को क्या कहें।

आज़ादी के आस पास गांव के बुजुर्ग भाप से चलने के कारण  //  भभका भवानी // कहते थे। सुनने में अच्छा लगता था । 

भभका भवानी! सुन्दर शब्द! तब जरूर यह रेल भवानी के तरह लगती होगी

आदरणीय अरुण भाई , विषयानुकूल बहुत खूबसूरत रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाई ।

प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय अरुण कुमार निगम जी , सादर

आदरणीय निगम साहब, अभी तक प्रस्तुत रचनाओं मे से यदि ३-४ रचनाओं को शॉर्ट लिस्टेड करूँ जो अधिक पसंद आयी तो उनमे आपकी प्रस्तुति निश्चित शामिल होगी, बहुत ही उम्दा, बधाई इस अभिव्यक्ति पर.

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