For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आई भोर कोयलिया बोले मीठे गान में

पारिजात बागान में।

उषा ने अपना आँचल बाँधा

अरुण ने अपना वेग सम्हाला

चला दिवाकर बिहंसी किरणें

जग में सुंदर जादू है डाला । 

दिन सुस्ताता तुम्हें देख पहले पहल विहान में

पारिजात बागान में।

देख मुझे वो देहरी ठिठ्की

केशर हार वो हाथ में लाई

अभी-अभी बचपन बीता है

लेकिन गई नहीं तरुणाई। 

पाला नहीं पड़ा है जब तक रूप और अभिमान में

पारिजात बागान में।

स्वर्णप्रभा सा जगमग करता

बर्फ़ीला सा कौमार्य तुम्हारा

प्रणय और अर्चन दोनों के

बीचों-बीच में भाव हमारा। 

मैं जपती जब प्राणों को तब तुम आती हो ध्यान में

पारिजात बागान में।       

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई "कल्प "

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kalpna mishra bajpai on January 20, 2015 at 9:01am

आ०  जितेन्द्र पस्टारिया भाई जी सादर आभार !!

Comment by kalpna mishra bajpai on January 20, 2015 at 9:01am

आ0 Hari Prakash Dubey जी सादर आभार !!

Comment by kalpna mishra bajpai on January 20, 2015 at 9:00am

आ० लक्ष्मण रामानुज लडीवाला  जी सादर आभार !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 7:32pm

मधुमास के  आगमन से पूर्व रची सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 7:18pm

आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी बहुत ही सुंदर रचना ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 19, 2015 at 5:35pm

बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति, आदरणीया कल्पना दीदी. हार्दिक बधाई

Comment by kalpna mishra bajpai on January 19, 2015 at 9:35am

आ० somesh kumar जी बहुत आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on January 19, 2015 at 9:35am

आ० मिथिलेश वामनकर जी आभार आप का /सादर 

Comment by somesh kumar on January 18, 2015 at 11:15pm

सुंदर गीत |बहुत बधाई इस रचना हेतू 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2015 at 10:42pm

आदरणीया कल्पना जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
3 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service