For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिन भर खाक छान कर वो वापस घर लौट रहा था | चारो तरफ अँधेरा , सुनसान गलियां और गूंजती हुई बूटों की आवाज़ एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहीं थीं | आज भी निराशा हाथ लगी थी उसे , कई जगह उसे रिजेक्ट कर दिया गया था | गली में घुसते ही घर के सामने उसे भीड़ दिखाई पड़ी , उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा | लगभग दौड़ते हुए वो घर में घुसा , देखा एक किनारे माँ ज़मीन पर निढाल पड़ी थी |

उसने झकझोरते हुए पूछा " क्या हुआ माँ ", तभी पड़ोसी चाचा की आवाज़ आई " तुम्हारे भाई को पुलिस पकड़कर ले गयी है "|

उलटे पांव भागा वो थाने की तरफ , हाँफते हुए पहुंचा और अंदर पहुंचकर पूछने लगा कि उसका भाई कहाँ है | तभी कराहने की आवाज़ ने उसका ध्यान खींचा , भाई हवालात में एक किनारे लहूलुहान पड़ा हुआ था | बहुत गिड़गिड़ाया वो लेकिन दो टूक जवाब मिला कि कल सुबह ही उसके भाई की रिहाई हो सकती है | रात भर उसके भाई की कराह उसके दिल में नए नए जख्म पैदा करती रही |

सुबह उसने भाई को एक रिक्शे पर डाला और घर ले आया | माँ के हाँथ उसके घावों पर मरहम लगा रहे थे और उसके बहते आंसू बेटे के बदन पर लगे लहू को धो रहे थे | फिर एक कॉल आया उसके फोन पर लेकिन उसने उस नंबर को ब्लॉक कर दिया |

थोड़ी देर बाद उसके कदम फिर नौकरी की तलाश में निकल पड़े | उसने माँ की आँखों में एक आतंकवादी की पत्नी होने के दर्द को बहुत गहरे महसूस किया था और उसको एक बार फिर ऐसे दर्द के एहसास से गुजरने नहीं देना चाहता था |

.

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 676

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on March 12, 2015 at 8:11pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 12, 2015 at 6:36pm

बहुत सुंदर. आजकल आपकी लघुकथाएं पूर्ण रूप से भाव प्रधान , पढने को मिल रहीं है. यह लघुकथा बहुत अच्छी लगी आदरणीय विनय जी. बहुत-बहुत बधाई आपको

Comment by विनय कुमार on March 11, 2015 at 6:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 11, 2015 at 4:25pm

आदरणीय विनय भाई , आतंकवादियों के करीबी रिश्तेदारों  की मानसिक स्थिति को बहुत खूब सूरती से शब्द दिये हैं । हार्दिक बधाई ॥

Comment by विनय कुमार on March 10, 2015 at 10:29pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 10:16pm

बहुत खूब एक संदेशपरक प्रस्तुति माँ किसी की भी हो अपने का दर्द नहीं देख सकती एक सुकून की जिन्दगी चाहती है बस|बहुत बहुत बधाई आपको एक अलग विषय चयन किया पढ़कर अच्छा लगा.  

Comment by विनय कुमार on March 10, 2015 at 7:20pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी..

Comment by विनय कुमार on March 10, 2015 at 7:20pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी ..

Comment by maharshi tripathi on March 10, 2015 at 7:07pm

बहुत अच्छी प्रस्तुति आ.विनय कुमार जी ,,,मन प्रसन्न हुआ ,,,हार्दिक बधाई |

Comment by Hari Prakash Dubey on March 10, 2015 at 7:01pm

आदरणीय विनय जी, सुन्दर प्रस्तुति ,संदेशप्रद रचना ,बधाई आपको !सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
14 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
15 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service