For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं व विवशताओं के कारण पूर्व की भाँति न तो लिख पा रहा हूँ और न ही प्रतिक्रिया ही प्रकट कर पा रहा हूँ किन्तु ओबीओ पर पोस्ट रचनायें प्रतिदिन नियमित तौर पर पढ़ रहा हूँ. हाँ ! मासिक आयोजनों में सक्रिय रहने की यथा शक्ति कोशिश अवश्य कर रहा हूँ.

पहले हर सदस्य हर विधा पर प्रयासरत दिखता था.इन्हीं विविध विधाओं के कारण जहाँ यह मंच बहुरंगी छटा बिखेरता था वहीं मुझ जैसे रचनाकार ने भी कविता, गीत, छन्द, गज़ल, बाल गीत, आंचलिक गीत, लघु कथा जैसी विभिन्न विधाओं पर रचना कर पाने का गौरव प्राप्त किया.

इन रचनाओं की शुरुवात हुई सहज त्रुटियों के साथ फिर मंच के परस्पर सीखने-सिखाने के विशिष्ट तत्व के कारण वे परिमार्जित होती गईं."बहुत अच्छा" का गर्व तो नहीं किन्तु "कुछ अच्छा"  के आत्म विश्वास ने मुझे  अपने अंचल में भी पहचान दिलाई.

आज इस मंच पर न जाने क्यों मुझे एकरसता नजर आ रही है. जो जिस  विधा में लिख रहा है, वह उस विधा में ही रमा हुआ नजर आ रहा है. पहले सा बहुरंगी वातावरण न जाने क्यों मुझे नहीं दिखाई दे रहा है.

हो सकता है मेरा भ्रम हो. आप सुधि पाठकों से अनुरोध कर रहा हूँ कि अपने विचार प्रकट कर मेरे भ्रम का निवारण करने में मेरी सहायता करेंगे.

एक बात और ...जो मित्र "सुझाव शिकायत" समूह में इसी विषय पर अपनी टिप्पणी दे रखी है कृपया वहाँ से कॉपी कर यहाँ पेस्ट कर लें. 

Views: 1759

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय अरुणभाईजी, यह आपका भ्रम नहीं सच्चाई है कि ओबीओ का निराला बहुरंगी स्वरूप धूमिल तो नहीं परन्तु मद्धिम अवश्य हुआ है. आपके इस प्रश्न पर आज सार्थक सम्वाद आवश्यक है.

इस इनिशियेशन के लिए हार्दिक धन्यवाद

आदरणीय अरुण सर,
आपने बिलकुल सही कहा है, जो जिस  विधा में लिख रहा है, वह उस विधा में ही रमा हुआ नजर आ रहा है. 
और ऐसा करते हुए मंच की मूल भावना सीखने सिखाने की परंपरा और कार्यशाला की संकल्पना का उद्देश्य अपेक्षाकृत वैसा पूरा नहीं हो रहा है जैसा होना चाहिए.
जो जिस विधा में सिद्धहस्त है वह केवल उसी विधा में लिखकर केवल वाहवाही बटोर रहा है और अन्य विधाओं की तरफ झाँकने का प्रयास भी नहीं कर रहा है. जबकि प्रतिमाह आयोजित होने वाले चार लाइव आयोजन - लाइव महोत्सव, छंदोत्सव, तरही मुशायरा और लघुकथा गोष्ठी में सहभागिता निभा ली जाए तो मंच पर प्रचलित लगभग सभी विधाओं में रचनाकर्म हो जायेगा. लेकिन एक विधा में लिखने वाले दुसरी विधा आधारित आयोजन में भी शरीक नहीं होते. यहाँ तक कि ओबीओ मेनेजमेंट टीम के सदस्य भी सम्मिलित नहीं होते. भई समय का टोटा सबका है. यहाँ बात सीखने की उत्सुकता और इच्छाशक्ति की है. 
आपका कहना बिलकुल सही है. ओबीओ में पहले सा बहुरंगी वातावरण लाने के लिए सबसे पहले ओबीओ मेनेजमेंट टीम के सदस्यों को ही आगे आना होगा. और सभी साथियों को इस दिशा में प्रेरित करना होगा. और सभी लाइव आयोजनों में सहभागिता निभानी होगी. भले ही शुरूआती सहभागिता एक पाठक के रूप में हो जो धीरे धीरे स्वतः रचनाये करने के लिए प्रेरणा होगी.
साथ ही दागो और भागो वाली प्रवृत्ति को भी छोड़ना होगा. यहाँ  रचनाकारों की संख्या, पाठक संख्या से अधिक होती दिखाई दे रही है. जो किसी विधा का रचनाकार नहीं है वो कम अज कम पाठक तो बन ही सकता है रोज लेटेस्ट ब्लोग्स में 20 रचनाये प्रदर्शित होती है जिसमे किसी भी रचना पर 20 कमेंट्स भी नहीं आते. जब 20 रचनाकार है तो कम से कम 20 पाठक तो हो.
बातें बहुत है मगर आज इतनी ही .... शेष चर्चा के आगे बढ़ने के साथ साथ 
सादर

आदरणीय अरुण भाई , भ्रम तो आपका ये है ही नहीं , एक क्टु सत्य ज़रूर है , जिसे इस पटल को प्यार करने वाले पीने को मज़बूर हैं । सोच्ने की बात है , 3000 करीब के मेंबर वाले इस पटल के  लगभग 20 के करीब सदस्य क्रिया शील लगते हैं । उसमे से भी कई दागो और भागो तबीयत के हैं । बाक़ी के सद्स्य एक एक विधा छँट कर के वल उसी विधा से जुड़े हुये हैं , उनकी उपस्थिति दूसरी विधा मे एक पाठक के तौर भी नहीं है । और कुछ तो विधा के साथ आदमी भी छाँटे हुये लगते हैं , कि हम बस फलाने की पोस्ट ही पढ़ेंगे । दुख तो होगा ही ।

                                                             मै फोन में कई टीम मेंबर से बात कर चुका हूँ , सिई विषय पर और मै ये कह सकता हूँ कि कमो बेश सभी सदस्यों के इस व्यवहार से दुखी हैं ।

मै ये मानता हूँ कि ( ज़रूरी नहीं ये अनुभव मेरा एक मात्र सच हो )

1- जिस कक्षा के शिक्षक कक्षा मे प्रवेश कर किताब खोलो और पढो बच्चों कह कर ऊँघने लगे तो क्लास की यही हालत होती है ।

2- मै यह मानता हूँ कि , स्वतंत्रता उसे मिलनी चाहिये जो स्वंत्रता का सहीअर्थ समझता हो और स्वतंत्रता के साथ स्व्तः आजाने वाली ज़िम्मेदारियों  को भी स्वीकार करता हो ।

3- मै ये मानता हूँ कि , सजा का प्रावधान न हो या सही न हो तो अराजकता आयेगी ही

4- मै ये मानता हूँ कि मरे हुये बच्चे को बँदरिया की तरह ले के घूमना सही नहीं होता , उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाना चाहिये

5- है ये मानता हूँ कि , जो सुधार ऊपर से शुरू न हो वो कभी कारगर नही हो सकती

अंत मे मै ये कहना चाहता हूँ कि , '' मै ईश्वर नहीं हूँ ''  मेरे एक अतुकांत रचना इसी दुख का प्रतिफलन थी , मै ने अपने ढंग से उन मुर्दों  को इशारा किया था कि , अब मै आप की रचना में मे आना बन्द करने वाला हूँ ॥

इस ऊम्मीद में कि  इस मंच में जहाँ अच्छे, और सक्रिय  सद्स्यों के लिये इनाम तय है  वहाँ  इसके विपरीत भी हो !! सादर ॥

आ० अरुण सर! सादर प्रणाम!

''जो जिस विधा में लिख रहा है, वह उस विधा में ही रमा हुआ नजर आ रहा है'' बहुत ही सार्थक प्रश्न  है आ० इस प्रश्न के उत्तर में आदरणीय मिथिलेश सर ने जिन बातों और सुझावों को मंच पर रक्खा है मेरे मन में भी वही उत्तर आते है! व्यक्तिगत रूप से मेरा प्रयास रहता है के मै obo के सभी आयोजन और रचनाओं पर जा सकू सहभागिता करूँ या अपने विचार रक्खूँ..हालांकि पहले की तरह समयाभाव के कारण अब मै obo पर उतना सक्रिय नही हूँ फिर भी जितना समय मिलता है,उसके अनुरूप सभी रचनाओं पर जाता हूँ!रचनाकर्म के लिहाज से व्यक्ति स्वाभाविक रूप से जिस विधा को पसंद करता है उसी को ओर् अधिक अग्रसर रहता है,यह बात मुझपे भी लागू है,पर मेरा प्रयास यह रहता है के रचनाकर्म न सही पर अन्य के रचनाओं पर अवश्य जाऊं,पढू जिससे बहुत कुछ सिखने को मिलता है! चाहकर भी अन्य विधाओ को ओर अग्रसर नही हो पा रहा !कारण एक तो समयाभाव है और दूसरा ये कि मै कछुआचाल हूँ बहुत धीरे धीरे समझ पता हूँ,इसलिये ''एकै साधे सब सधे,सब साधे सब जाये'' के मंत्र का पालन करना ही मुझे उचित जान पड़ता है!हाँ कुछ संतुष्ट होने के बाद अन्य विधाओं को जानने सीखने की प्रबल इच्छा है उस ओर् भी समयानुसार जरूर  अग्रसर होऊंगा!जीवनयापन की समस्याए अलग हैं इस सम्बन्ध में मै कितना  भविष्य में obo पर सक्रिय रहूँगा,कह नही सकता पर ये निश्चित है जैसे भी समय मिलेगा मैं  इस अद्भुत मंच पर सीखने आता रहूँगा !

मंच को नमन!

आ.  arun kumar nigam जी ,,आपकी बात शत प्रतिशत सही है ,,,लगभग हर रचना पर सभी गुनीजनों की टिपण्णी की बात मैं आ.गिरिराज सर जी से पहले भी कर चुका हूँ ,उन्होंने उस वक़्त भी इस पर चिंता जतायी थी ,,परन्तु आपने इस मुद्दे को सब के बीच लाकर सही प्रयास किया है ,,शायद  अब इस समस्या का निवारण संभव हो ,,,मेरी खुद यही इच्छा है की लगभग हर पाठक सभी रचनाओ को समय दें खास्कर् आ.बागी सर,योगराज सर और अन्य गुणीजन ,,,आप सभी की प्रतिक्रिया पाकर कुछ सीखने की प्रवित्ति और जागृत होती है ,अगर आप सभी की प्रतिक्रिया पोस्ट पर नही आती तो रचना में फीकापन सा लगता है ,,मुझे मालूम है ,,ये सभी के लिए आसान नही पर जहाँ तक हो सके ,इस पर विचार अवश्य करिएँ ,,,,और रही बात नयी विधा सीखने की तो शायद कोई किसी को जबरदस्ती प्रेरित नही कर सकता ये लेखकों के रूचि पर निर्भर है ,,,शायद मेरी विचार से सभी सहमत न हों पर ,,मुझे यही लग रहा है |

आदरणीय अरुण भाईजी एवं प्रबंधन टीम,

              आपके और अन्य सभी के विचारों से मैं भी सहमत हूँ। कोई वस्तु हो सेवा हो या ज्ञान की बातें  निःशुल्क मिले तो उसका महत्व कम हो जाता है यह मानवीय स्वभाव है। ओबीओ में सब कुछ निःशुल्क होता है।
छंद गीत गज़ल कथा लेख आदि पर सार्थक जानकारियाँ हमें मुफ्त मिलती हैं क्योंकि ओबीओ के सदस्यों से कोई सदस्यता शुल्क नहीं ली जाती। न्यूनतम शुल्क रख दें तो मंच की महत्ता बढ़ जाएगी। सुझाव निम्नानुसार है।

जुलाई 2015 में एक आम सूचना जारी करें और अगस्त 2015 से शुल्क के साथ सदस्यता अभियान

प्रारम्भ करें।

सदस्यता शुल्क 2 वर्ष [ अगस्त 2015 से जुलाई 2017 तक ] के लिए ........... रु. 200

इस बीच जो नये सदस्य बनेंगे उनसे भी 200 रु. शुल्क ली जाएगी चाहे वह अगस्त 2015 में बनें 2016 में बनें या 2017 में, लेकिन सभी की सदस्यता जुलाई 2017 तक ही रहेगी। अगस्त 2017 में फिर 200 रु. शुल्क के साथ सदस्यता का नवीनीकरण होगा, आगामी 24 माह के लिए। अगस्त तक जिनका शुल्क प्राप्त नहीं होगा उनकी सदस्यता निरस्त हो जाएगी। लेकिन शुल्क देकर वे फिर सदस्य बन सकते हैं। आजकल पैसे भेजना सरल है बस एक खाता खोल दीजिए ओबीओ के नाम से। शुल्क वार्षिक रखेंगे तो हर साल यही परेशानी होगी। इसलिए 2 वर्ष [ अगस्त 2015 से जुलाई 2017 तक ] ही रखिए। प्रबंधन टीम चाहे तो 2 वर्ष का शुल्क 300 या 400 भी कर सकती है। पहले ही बहुत देर हो चुकी है इसलिए कृपया अब और देर न करें।

सादर 

जय हो.. :-))

मैं अबतक के सभी विन्दु बटोर रहा हूँ. फिर आऊँगा सभी विन्दुओं के साथ.

सादर

आदरणीय अखिलेशभाईजी,

क्या आपको भान है, कि अपने समाज में आज ज्ञान प्राप्ति और इस हेतु होता हुआ कोई प्रयास दोयम दर्जे की आवश्यकता समझी जाती है ? ज्ञान को मात्र देह, देह से जुड़ी प्रतिष्ठा और दैहिक पोषण, जिसमें परिवार और परिवार की समृद्धि को गिना जाता है, तक सीमित कर दिया गया है ? सनद की शिक्षा ही ध्येय है ? विद्या, जो कि ज्ञान का मूल है, को कई विश्वविद्यालयों के परिसरों में पुरातनपंथियों की शेखचिल्लीपना समझी जाती है ? एक बड़ा वर्ग भारतीय संस्कृति और इसके विशद ज्ञान से तथाकथित ’अग्रसोची समाज’ को अलग रखने के लिए आग्रही है? किसी भारतीय सोच पर असहज महसूस करता है ? आदरणीय, इसी विद्या का एक भाग साहित्य है, जो अनिवार्य आवश्यकता नहीं रहने दिया गया है. या, साहित्य के नाम पर एक विशेष रंग और उसके शेड में रंगी विचारधारा को ही प्रश्रय मिलता है. ऐसे में किस विद्या,  या साहित्य ही, की बात कर रहे हैं जो मोल दे कर लोग लेना चाहेंगे ? क्या भाईजी ? आज पचास-पचहत्तर सदस्य किसी तरह सक्रिय भी हैं, सदस्यता शुल्क लग जाने पर इनमें से कुछेक तो अभी के अभी भूतकाल के सदस्यों की श्रेणी में गिने जाने लगेंगे.

इस मंच पर होता हुआ सारा प्रयास यदस्माभिरंगीकृतं पुण्य कार्यं, अर्थात, यत (जो) अस्माभिः (हमारे द्वारा) अंगीकृतं (अंगीकृत किया हुआ) पुण्य कार्यं (पुण्य कार्य है), की श्रेणी का है. लोग बाग अपनी साहित्यिक धरोहर के प्रति जागरुक रहें, इसी की अलख जलाये यह मंच कार्यशील है.
सादर

आदरणीय  अरुण  कुमार निगम साहब सादर, सच है जो आप महसूस कर रहे हैं पिछले एक वर्ष से तो यह  साफ़  नजर  आ  रहा  है की सदस्यों  की रूचि  किसी  एक विधा में ही  रह  गई. मेरा  कहना  शायद  किसी को बुरा  भी  लगे  किन्तु  जो मैंने महसूस  किया  है  वह इसतरह  है  की मंच  पर  जब कई  सदस्य  रूचि  लेकर  लिख  और सीख  रहे हते, तब एक  तात्कालीन सक्रीय  सदस्य  द्वारा  नव रचनाकारों को उनकी त्रुटियों पर  मंच की परंपरा  के  विपरीत  सुझाव  की बजाय  प्रश्न  दागकर हतोत्साहित  किया गया. इसकारण उन सदस्यों की सक्रियता कम हुई और दुर्भाग्य से पिछले एक वर्ष में आये  नए सदस्यों में छंद रचनाओं के प्रति रूचि कम ही रही है.

 

दूसरा कारण फेसबुक जिसे शुरूआती दौर में ‘वाह और लाइक’ पाने का स्थान माना गया. वहाँ आज कई साहित्यिक समूह  बन गए हैं. भले ही कोई एक समूह उत्कृष्ट नहीं कहा जाए तब भी वहाँ प्रति सप्ताह छंद, गजल या अन्य विधा पर  रचनाओं  के कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं. जिससे नव रचनाकारों का अच्छा अभ्यास हो जाता है. सबकी रूचि  अच्छा  लिखने में हो यह आवश्यक नहीं है किन्तु जो रचनाकार शुद्ध रचनाएं करना चाहता है वह एन केन प्रकारेण उस रचना शिल्प के आस पास तक पहुँच ही जाता है. वहीँ हमने ओबीओ के उत्सवों को सदस्यों की सक्रीयता में कमी के कारण  तीन दिन से घटाकर  दो दिन  का कर  दिया है. किन्तु  इन कार्यक्रमों की आवृतियाँ नहीं बढाई. इससे संवाद की निरंतरता में कमी आयी है.

 

मैं आदरणीय गिरिराज भंडारी जी द्वारा बताये कारणों में से पहले कारण पर सहमत हूँ. क्योंकि जहाँ किसी विधा की  कक्षा  लिखा है वहाँ कई सदस्यों के प्रश्न लम्बे समय तक अनुत्तरित पड़े मैंने भी देखे हैं. यह किसी भी सदस्य की अरुचि का कारण हो सकता है.सादर.  

//मेरा  कहना  शायद  किसी को बुरा  भी  लगे  किन्तु  जो मैंने महसूस  किया  है  वह इसतरह  है  //

आदरणीय अशोकभाईजी, आप इस बात के प्रति संवेदनशील न हों कि किसी को कुछ कहना बुरा लग रहा है. बशर्ते आपकी भाषा, मंच पर आपका आचरण, तथ्यात्मक सच्चाई, समस्याओं के प्रति गहराई सर्वसमाही तथा मंच की बेहतरी केलिए है. मन की भड़ास निकालना एक बात है और किसी वैद्य या हक़ीम की तरह रोग़ से निजात दिलाने की मंशा के तहत कारणॊं पर मीमांसा करना एक अलग ही बात है.  

हमें भान है, कि जबतक हम एक दूसरे की सकारात्मक और बातों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, कोई प्रयास समीचीन नहीं हो सकता.

सादर

आदरणीय  सौरभ  जी सादर प्रणाम, मैंने  जो  लिखा  है  वह किसी एक सदस्य के  साथ हुए  व्यवहार के  आधार  पर नहीं लिखा  है जिससे  यह  लगे की यह भड़ास  निकालना हुआ. मेरी भाषा  में कोई कुरूपता है  तो  उसके  लिए  मैं  क्षमाप्रार्थी  हूँ. किन्तु मैंने जो  लिखा  है पूरी  सच्चाई  के  साथ  लिखा  है और  मंच  की बेहतरी  को ध्यान  में रखकर  ही लिखा  है.सादर.

 

यही तो आवश्यक है, आदरणीय. इसी की हमें चाहना है.  आप इस मंच के अत्यंत उर्वर एवं सम्मानीय सदस्य हैं. आपके विचारों तथा रचनाओं से यह मंच सदा ही समृद्ध होता रहा है .

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
5 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service