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आदरणीय Ravi Prabhakar जी
प्रणाम.
आप ने डॉ पर बहुत ही शानदार रचना लिखी है. शायद ऐसी ही जबरदस्त लघुकथा हम पहले भी पढ़ चुके है. आप ने बहुत ही शानदार व कसी हुई लघुकथा लिखी है. बधाई आप को आदरणीय .
दिल का डॉक्टर और भावना शून्य ..लानत है ऐसी संतानों पर | बेहतरीन कथा हेतु बधाई आ. रवि प्रभाकर जी | नमन
लघुकथा बहुत गहरे तक अपना असर छोड़ती है डॉ रवि प्रभाकर जी। कथ्य संतुलित, वार्तालाप चुस्त और शिल्प सधा हुआ, सन्देश साफ़ तथा पंच लाइन ज़बरदस्त। कुल मिलाकर प्रदत्त विषय को अनूठे ढंग से परिभाषित किया गया है। जिस हेतु हार्दिक प्रशस्तिवाद स्वीकारें। रचना को पूरे अंक देना चाहता था किन्तु, कुछ बचकाना गलतियों की वजह से 10 में से 3 अंक काट रहा हूँ।
//‘आज भी’// इसको इन्वर्टेड कौमास में लिखने का क्या औचित्य है ? इस तरह किसी चीज़ को हाईलाइट नहीं किया जाता। प्रभावशाली कहन स्वयं बोल्ड और अंडरलाइन होकर पाठक की आँखों के सामने आ खड़ा हुआ करता है। (१ अंक कट गया)
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//कौन निकलेगा भला घर से इस भरी दुपहरिया में... लगता है भगवान ने तुम्हारी सुन ली चचा ! देखो लगता है सवारी आ रही है ...।’//
यहाँ दो जगह पर अनावश्यक डॉट्स का प्रयोग, आप जैसे गंभीर रचनाकार की गरिमा के अनुरूप नहीं है। (२ अंक गए)
आदरणीय बड़े भ्राता, इस लघुकथा के माध्यम से समाज में एक श्रेणी के पढ़े-लिखे अनपढ़ों का और फिर उनके ऊपर निकलने' वाले frustration को किस बढ़िया ढंग से दर्शाया है| फिर बहुत कुछ सीखने को मिला इस लघुकथा से| नमन आपको |
वो जो डाॅक्टर हैं ना... वो उसका बेटा है.. इसलिए----उफ्फ्फ्फ़ झंझोड़ कर रख दिया इस पञ्च लाइन ने सारी कथा इस एक लाइन में ही निहित है जिस पेड़ के फल होते हैं उस पेड़ की सूखती जड़ कभी नहीं दिखाई देती किस किस तरह से उस मुकाम तक पहुंचाते है उनके माँ बाप और उन्ही की अनदेखी करते हैं ...बहुत कुछ कहती है बहुत से सवाल खड़े करती है समाज के समक्ष ये सफल लघु कथा |
हार्दिक बधाई आपको आ० रवि प्रभाकर जी|
झिंझोड़ दिया अंतिम पंक्ति ने. मन तुरंत विरोध कर बैठा- एक मशहूर दो. के पिता इतने मजबूर? क्या डॉ. को अपने नाम की परवाह भी नहीं है? लेकिन फिर लगा ये दुनिया है यहाँ सब संभव है. बहुत सशक्त लघुकथा आदरणीय.
आदरणीय रवि जी, बहुत ही पीडा दायक लघुकथा,हार्दिक बधाई!आपकी लघुकथा को पढने के बाद गरीब आदमी अपनी औलाद को ऊंची शिक्षा दिलाने से पहले चार बार सोचेगा!बेहद कसी हुई लघुकथा!पुनः बधाई!
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