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धन्यवाद ,आदरणीय नीरज जी ,आपकी टिप्पणी ने मेरे भाव को बल प्रदान किया .
प्रभावशाली व संदेशपरक रचना प्रेषण हेतु आपको साधूवाद आदरणीय रीता गुप्ता जी ।
आदरणीय रवि जी धन्यवाद ,यदि मैंने विषय के साथ न्याय किया है और आपको ऐसा महसूस हुआ हो तो .
बिलकुल सही लिखा है आपने , आज के व्यस्त जिंदगी में बुज़ुर्ग ही आने वाली पीढ़ी की बुनियाद मज़बूत कर सकते हैं | बषई इस रचना के लिए आदरणीया रीता गुप्ता जी ..
आदरणीय विनय जी आपकी बधाई के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ रीता गुप्ता जी आप ने बहुत ही शानदार बात कही है.// “कुछ दिनों से जब भी अंकुर से फोन पर बातें होती वह अजीब अजीब शब्द बोलता,हम समझ गएँ कि नौकरों की सोहबत हमारे परिवार की बुनियाद कमजोर कर रही है ///
धन्यवाद आदरणीय omprakash जी , यदि मेरी रचना ने आपके मर्म को छुआ .
धन्यवाद आदरणीय नीता जी ,आपको कथ्य भाव रुचिकर लगे .
ऐसी मजबूत और वजनी बुनियादे आजकल बोझ लगती है स्लिम होते मोबाइल के प्रेमी पीढ़ी को .. सही समय पर समझ आ जाना भी सौभाग्य होता है | डॉक्टर मनीष सौभाग्यशाली हुए | बधाई प्रेषित कर रहा हूँ |सादर
धन्यवाद आदरणीय सुधीर जी , यही तो उस परिवार की बुनियादी बात है .दादा ने बिन किसी के कहे पोते की कुसंगति भांप लिया ,पिता -माता ने दो-चार पहली गाली में ही स्तिथी भांप लिया .सबसे बड़ी बात पिता का साधिकार बेटे के घर अपने पोते के भविष्य की खातिर आ जाना ,उस परिवार कि मजबूत रिश्तों की बुनियाद की ओर इंगित कर रही है .
'नौकरों की सोहबत' ज़रूर एक बिंदु है इस समस्या का ,पर कई बार so called ,refined ,cultured और ,educated माता पिता के आपसी संवाद और भाषा चाहे ढकी छुपी हो , कुछ ऐसी होती है कि बच्चा पकड़ ही लेता है I अच्छी कथा के लिए बधाई आ०रीता गुप्ता जी
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