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काश ये प्रेम रसायन असरदार साबित हो | बधाई आ. धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुधीर जी
वाह्ह वाह आ० धर्मेन्द्र जी,आपकी रचनाएँ हमेशा मुझे इसी लिए प्रभावित करती हैं की उनमे कुछ लीक से हट कर अलग बात होती है किसी में विज्ञान का तड़का तो किसी में गणित का तड़का लगा होता है इसमें तो सीधे रसायन का तड़का ही लगा दिया ...खैर बिम्बों के आधार पर आपने बहुत ही गंभीर बात कही है समाज को विघटित करने वाली बुनियादे केवल आपसी समझदारी या परम भाव से ही गलाई जा सकती है|आपकी कल्पना शक्ति और कलम को नमन |
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी। आपने जिन शब्दों में प्रशंसा की है पता नहीं लघुकथा उसकी हक़दार भी है या नहीं। बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई
प्रोफेसर ने बड़े ही सुंदर शब्दों में समझाया, सचमुच ऐसा हो तो भारत की सारी समस्याओं का हल निकल आएगा।
प्रस्तुति भी सुंदर , हार्दिक बधाई
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अखिलेश जी
"प्रेम रसायन" का प्रयास सराहनीय है. एक नई सोच कथा मे है. ईस लघुकथा के लिऐ बधाई स्वीकार करे.
आदरनीय धर्मेन्द्र जी, बहुत उम्दा लघुकथा हुई
जातिगत रिश्तों के बुनियाद केवल नौजवानों द्वारा ही वह भी प्रेम रसायन द्वारा गला कर ही हटाई जा सकती है " बहुत सुंदर सदेश देती लघु कथा हुई है | हार्दिक बधाई श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
संस्कारों की बुनियाद
“साले कमीने कुत्तें .....”
अपने चार वर्षीय पुत्र अंकुर के मुख से ये सुन डॉक्टर मनीष और डॉक्टर महिमा सन्न से रह गए .
अपनी सारी पढाई-लिखाई और संस्कारों की उन्हें धज्जी उड़ते दिख रही थी .दोनों के आँखों से नींद उड़ गयी कि अतिव्यस्तता का खामियाजा यूं भुगतना होगा.
दुसरे दिन जब दोनों अस्पताल से वापस आये तो देखा, माँ –बाबूजी आयें हुए हैं और नन्हा अंकुर दादी की गोद में बैठ कोई कविता याद कर रहा है
“कुछ दिनों से जब भी अंकुर से फोन पर बातें होती वह अजीब अजीब शब्द बोलता,हम समझ गएँ कि नौकरों की सोहबत हमारे परिवार की बुनियाद कमजोर कर रही है “,बाबूजी ने कहा .
“अब हम दोनों की जिम्मेदारी है अंकुर “
महिमा और मनीष दौड़ कर माँ बाबूजी से लिपट गएँ .
सोते वक़्त दादी संग अंकुर की आवाजें आ रहीं थी ,” नन्हा मुन्ना राही हूँ ......”.
अपने जीवन की नींव मजबूत करने वालों के हाथों में अपने भविष्य की मजबूत बुनियाद बनती देख मनीष अब निश्चिन्त था .
( मौलिक और अप्रकाशित )
संयुक्त परिवार में बड़े बुजुर्ग बच्चों में संस्कार डालते ही हैं| सकारात्मक सन्देश लिए इस रचना हेतु बधाई आपको, आदरणीय रीता गुप्ता जी|
आदरणीय चंद्रेश कुमार जी बहुत आभार टिपण्णी हेतु .
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