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वाह भाई साहब ! आप ने तो अपने मनोभावों और कृतित्व को बखूबी बयान किया है. साथ ही उन तथाकथित मठाधीशों पर करारा व्यंग भी किया है. आप के इस परोपकार को सादर प्रणाम,
आदरणीय योगराज सर, आज इस लघुकथा का होना और इस लघुकथा से गुजरना कहीं भीतर तक नम कर रहा है. स्वानुभूति को जब शाब्दिक किया जाता है तो उससे जुड़े हुए कई कई लोग बस मुग्ध हुआ करते है, भावविभोर हुआ करते है. शब्द गुजर चुके होते है, शब्द नहीं मिलते है. इस मंच से जुड़ने का सौभाग्य का कारण ग़ज़ल विधा और मुशायरा ही रहा है, शायद यहीं कारण है कि इस लघुकथा की अनुभूति और मर्म को गहराई तक महसूस कर रहा हूँ. साहित्य के क्षेत्र में मील के पत्थर बहुत हुआ करते है लेकिन नीव का पत्थर होना सहज नहीं है. इस प्रस्तुति से अनायास ही भीग सा गया. और क्या लिखूं ....बस नमन कर सकता हूँ इस नीव के पत्थर को. आपको इस प्रस्तुति के लिए आभार. आज लघुकथा के महाकाव्यत्व के दर्शन कर लिए. एक एपिक लघुकथा,.... नमन
आदरनीय योगराज जी, सर जी , जिस महामानव के आधार पर आप जी ने इतनी बढिया लगुकथा कही , इसी लिए वो पंजाब के गज़ल संसार में अभी भी जिन्दा है ।
गुरु-शिष्य परम्परा पर आपने बहुत खूब रचना किया . आदरणीय योगराज सर जी,बुनियाद विषय पर सार्थक रचना .वाह !
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि - गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
( गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार - मारकर और गढ़ - गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं। )
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥३॥
( गुरु में और पारस - पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है।)
गुरु पूर्णिमा जैसे पावन अवसर पर गुरूजी के द्वारा सच्चे गुरु की गुणवत्ता और गुरु द्वारा शिष्यों की एक मज़बूत बुनियाद खड़ी करने की बात कहने से बढ़ कर क्या हो सकता है| आपके किसी भी शब्द पर कुछ भी कहने की धृष्टता करने की बजाय इन सारे शब्दों को आत्मसात करने का प्रयत्न कर रहा हूँ| नमन आपको सर |
नौजवान तैयार हो जाय तो समझो नीव पक्की हो रही है | यावा शायर तैयार होरहे है इस बात की ख़ुशी भले ही मठाधीशों को न पाच रही हो | असली वीं के पत्थर तो देश समाज के नौजवान ही है | अति उत्तम और सार्थक सन्देश देती लघु कथा के हार्दिक बधाई आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी | लघुकथा का गुरुत्तर दायित्व निर्वाह के लिए आपको गुरुपूर्णिमा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ | सादर
लघुकथा को मान एवं अपना बहुमूल्य समय देने हेतु सभी सुधि साथियों का दिल से शुक्रिया. यह कहानी दरअसल पंजाबी के महान गज़लकार स्व० दीपक जेतोई साहिब के बारे में हैं जिन्होंने अपने रचनाकर्म से अधिक अपने शिष्यों के लिए समय सर्फ किया. उन्होंने पंजाबी गज़ल को ऐसी मज़बूत बुनियाद प्रदान कर दी की आज उनके सिखाये हुए शायर ग़ज़ल विधा के मीर बन चुके हैं. दीपक जी खुद तो आज नहीं हैं, लेकिन दीपक ग़ज़ल स्कूल आज भी किसी ध्रुव तारे की तरह सबको दिशा दिखा रहा है. यह लघुकथा भी उसी दरवेश को समर्पित है.
आ. योगराज प्रभाकरजी .... आप के कमेन्ट की तरह ही आप की लघु कथा का बेसब्री से इंतजार रहता है हम सभी को. बहुत ही सुन्दर लघु कथा बनी है. बधाई स्वीकार करे.
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