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हार्दिक आभार आदरणीया नीरा कसर जी
वार्तालाप/संवाद और वर्णन आपस में ऐसे गड्ड-मड्ड हो गए हैं कि कुछ समझ में नहीं आ रहा।
आदरणीय सर, यदि ऐसे कर दें तो शायद और अधिक स्पष्ट हो जायेगी:
आधार (लघु कथा)
"तुम अकेले ही आये हो, बहु को नहीं लाये?"
"वह बच्चे को स्कूल छोड़ने व लाने तथा स्कूल में दिया गया होमवर्क कराने में व्यस्त रहती है और अभी स्कूल की छुटियाँ भी नहीं है”
केलिफोर्नियाँ से आये चचेरे भाई समीर ने जवाब देते हुए पूछा “ये बेबी कौन सी कक्षा में पढ़ रही है ?और भाभी कहाँ है ?”
मैंने समीर को मैंने बताया कि "तुम्हारी भाभी एक किटी पार्टी में गई है | घर में ट्यूटर लगाने के बाद भी बेबी कोमल नवीं कक्षा में फेल हो गई | पढ़ाई में बिलकुल मन न होने से अब पढ़ाई छुडा दी | अब माँ के साथ घर के काम में हाथ बटा घरका काम सीख लेगी तो बाद में ससुराल से ओलमा तो नहीं आयेगा |"
"ये तो ठीक है", समीर बोला, "पर आजकल अच्छे घर में विवाह के लिए लड़की का पढ़ा लिखा होना बहुत जरुरी है | माँ पढ़ी लिखी होती है तो बच्चे की अच्छी परवरिश कर पाती है और उनकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे पाती है | माँ-बाप समय निकाल जब तक बच्चों में पढ़ाई का माहौल नहीं बनाते, तब तक बहुत कम घरों में बच्चे पढ़ पाते है | माँ की समझ और उसकी पढ़ाई ही बच्चे के विकास का ठोस और बेसिक आधार होता है |"
तब मुझे लगा की मेरी पत्नी किटी पार्टी में जाने और टीवी पर सीरियल देखने में ही अधिक समय व्यतीत करती है, और मै भी कहाँ ध्यान दे पाता हूँ |
समीर जाते जाते बोला–“भाई,आजकल अधिक मकान बनाने के बजाय पक्की नीव पर कुटियाँ बनाने का समय आ गया ताकि भूकम्प के झटके झेल सके |”
भाई चंद्रेश जी ,
आप ने लघुकथा में सचमुच जान डाल दी. बस //मैंने समीर को मैंने बताया कि// जगह //मैंने समीर को बताया कि// करना बाकी है .
आदरणीय ओमप्रकाश जी सर, सुप्रभात, जी सर, आप सही कह रहे हैं, अभी इस लघुकथा को सही करने की आवश्यकता है, मैनें केवल पढने की दृष्टि से स्पष्ट करने की कोशिश की थी| सादर,
उतरोत्तर सुधार के बाद लघुकथा की रोचकता में बृद्धि हुई है पर अंतिम पंक्ति “भाई,आजकल अधिक मकान बनाने के बजाय पक्की नीव पर कुटियाँ बनाने का समय आ गया ताकि भूकम्प के झटके झेल सके |” लाजवाब है यही इस कथा की जान है इसे लगभग सभी लोगों ने समझा है. सादर
टंकण त्रुटियाँ सुधार लघुकथा प्रस्तुत करने के लिए शुकिर्या श्री चंद्रेश कुमार छजलानी जी
लघु कथा का सन्देश बहुत सार्थक एवं सटीक है बच्चों के लिए पापा के साथ साथ माँ का पढ़ा लिखा होना भी बहुत जरूरी है तभी बच्चों के लिए घर में पढ़ाई का माहौल बन पायेगा .बहुत बहुत बधाई आ० लक्ष्मण जी .
वैसे , तब मुझे लगा की मेरी पत्नी किटी पार्टी में जाने और टीवी पर सीरियल देखने में ही अधिक समय व्यतीत करती है, और मै भी कहाँ ध्यान दे पाता हूँ |इस वाक्य की आवश्यकता ही नहीं थी मन के भाव इस तरह भी प्रकट कर सकते थे------
समीर जाते जाते बोला–“भाई,आजकल अधिक मकान बनाने के बजाय पक्की नीव पर कुटियाँ बनाने का समय आ गया ताकि भूकम्प के झटके झेल सके |” और मैं अपनी जिन्दगी के पिछले पन्नों को पलटता हुआ सोच में डूब गया.
लघु कथा का सन्देश सार्थक और सटीक बता उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | लघुकथा में सुझाव उचित है आपका इससे लघुकथा में और निखार आयेगा | सादर
वाराल्लाप स्पष्ट करते हुए लघु कथा संशोधित कर पूर्णः प्रस्तुत है आदरनीय =
आधार (लघु कथा)
तुम अकेले ही आये हो, बहु को नहीं लाये ? “वह बच्चे को स्कूल छोड़ने व लाने तथा स्कूल में दिया गया होमवर्क कराने में व्यस्त रहती है और अभी स्कूल की छुटियाँ भी नहीं है” केलिफोर्नियाँ से आये चचेरे भाई समीर ने जवाब देते हुए पूछा -
“ये बेबी कौन सी कक्षा में पढ़ रही है ?और भाभी कहाँ है ?” मैंने समीर को मैंने बताया कि तुम्हारी भाभी एक किटी पार्टी में गई है | घर में ट्यूटर लगाने के बाद भी बेबी कोमल नवीं कक्षा में फेल हो गई | पढ़ाई में बिलकुल मन न होने से अब पढ़ाई छुडा दी | अब माँ के साथ घर के काम में हाथ बटा घरका काम सीख लेगी तो बाद में ससुराल से ओलमा तो नहीं आयेगा |
ये तो ठीक है समीर बोला, - पर आजकल अच्छे घर में विवाह के लिए लड़की का पढ़ा लिखा होना बहुत जरुरी है | माँ पढ़ी लिखी होती है तो बच्चे की अच्छी परवरिश कर पाती है और उनकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे पाती है | माँ-बाप समय निकाल जब तक बच्चों में पढ़ाई का माहौल नहीं बनाते, तब तक बहुत कम घरों में बच्चे पढ़ पाते है | माँ की समझ और उसकी पढ़ाई ही बच्चे के विकास का ठोस और बेसिक आधार होता है |
समीर जाते जाते बोला –“भाई,आजकल अधिक मकान बनाने के बजाय पक्की नीव पर कुटियाँ बनाने का समय आ गया ताकि भूकम्प के झटके झेल सके |” तभी पत्नी को किटी पार्टी से लौटी और मैं अपनी जिन्दगी के पिछले पन्नों को पलटता हुआ सोच में डूब गया |
(मौलिक व अप्रकाशित)
अपने चोंचलों से ही फुर्सत नहीं तो बच्चों पर क्या खाक ध्यान देंगे। बधाई आ. लक्ष्मण रामानुज जी।
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